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नवरात्र स्पेशल: ऐसी है पावई वाली माता की महिमा, किसी भक्त ने चढ़ाई जीभ तो किसी ने सिर

चम्बल अंचल में दतिया की मां पिताम्बरा माई, रतनगढ़ वाली माता और भिंड की पावई वाली माता की प्रसिद्धी दूर-दूर तक है. कहा जाता है कि भिंड की पावई वाली माता के दर्शन कर नवरात्रों में डकैत भी घंटा चढ़ाने आते थे.

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Published : Oct 11, 2021, 11:14 AM IST

Powai wali mata
पावई वाली माता

भिंड। नवरात्र में भक्तों और आराध्य माता के बीच असीम प्रेम सदियों से चला आ रहा है. यही वजह है कि नवरात्रि में पूरे भारत देश के प्रसिद्ध और तीर्थ देवियों के मंदिरों में श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है. चम्बल अंचल में भी दतिया की मां पिताम्बरा माई, रतनगढ़ वाली माता (Ratangarh Wali Mata) और भिंड की पावई वाली माता (Pawai Wali Mata) की प्रसिद्धी दूर-दूर तक है. कहा जाता है कि भिंड की पावई वाली माता के दर्शन कर नवरात्रों में डकैत भी घंटा चढ़ाने आते थे. मां की महिमा से जुड़े किस्सों के बारे में जानिए इस खास रिपोर्ट में...

कैला देवी से है पावई वाली माता का नाता
भिंड जिला मुख्यालय से करीब 30 किलोमीटर दूर बीहड़ों में अटेर का पावई गांव बसा है. इस गांव में ही पावई वाली माता का मंदिर है. कहा जाता है कि राजस्थान के करौली धाम में बैठी मां कैला देवी और भिंड की पावई वाली माता दोनों बहनें हैं. इस जगह को छोटी करौली भी कहते हैं. पावई वाली माता पर क्षेत्र के लोगों की तो श्रद्धा है ही साथ ही दूर-दूर से आने वाले श्रद्धालु भी मां की भक्ति में लीन रहते हैं. नवरात्र में नवमी के दिन मंदिर में भक्तों का जमावड़ा देखने लायक होता है. कई वर्षों से नवमी के दिन मंदिर के पास ही मेला भी लगाया जाता है. हालाँकि पिछले साल की तरह ही इस साल भी कोरोना महामारी के चलते मेला स्थगित कर दिया गया.

कुएं में विराजमान हैं माता
मंदिर के पुजारी बताते हैं कि यह मंदिर 10 सदियां देख चुका है. हर साल नवरात्र में यहां हजारों श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं और अपनी मनोकामनाएं और मन्नतें मांगते हैं. जब उनकी मन्नत पूरी होती है, तो नवरात्र की नवमी के दिन जौं चढ़ाने आते हैं. उन्होंने बताया की मंदिर में विराजी माता कुएं में रहती हैं.

मंदिर पर मुगलों ने किया था हमला
मंदिर का इतिहास बताते हुए उन्होंने कहा कि जब मुगलों ने सभी मंदिरों पर हमला किया था. उस दौरान पावई वाली माता मठ के बगल बने कुएं में विराजमान हो गयीं थीं. जब मुगल शासक वहां आए तो माता ने आवाज लगायी कि वे कुएं में हैं, लेकिन तू पहुंच नहीं पाएगा. काफ़ी कोशिश के बाद भी वह माता तक नही पहुंच पाए. अंत में हार मानकर वहां से चले गए.

माता को कुएं से बाहर निकालने की कोशिश हुई नाकामयाब
तब से ही माता उस कुएं में ही रहती हैं. हालांकि कई लोगों ने माता को निकालने की कोशिश की, लेकिन वे हर बर कुएं में ही लौट जाती हैं. इसलिए प्रतिगामी उनकी प्रतिमा कुएं के पस बने मठ में स्थापित करायी गयी है. उनके साथ ही करौली वली माता भी विराजमान हैं. वहीं मुग़लों द्वारा खंडित की गयीं प्रतिमाओं के अवशेष आज भी मंदिर में देखने को मिलते हैं.

भदावर राजा ने कराया था निर्माण
मंदिर में दर्शन को आए पावई के पूर्व सरपंच ने बताया कि पहले यह क्षेत्र बीहड़ और जंगल हुआ करता था. उस दौरान अटेर के भदावर राजा यहां शिकार के लिए आए थे. तब माता ने उन्हें दर्शन दिए थे. उन्होंने ही इस मंदिर का निर्माण कराया था. उन्होंने यह भी बताया कि इस मदिर पर दशकों पहले मानसिंह, रूपा, पुतली जैसे डकैत भी काफी सक्रिय थे और मंदिर पर आते थे. यहां पूजा अर्चना करते और घंटा चढ़ाते थे. इसी के चलते मंदिर के अंदर ही एक पुलिस चौकी भी स्थापित करायी गयी.

जब भक्त ने काट कर चढ़ा दी थी जीभ
पावई वाली माता के भक्तों की आस्था भी बहुत है. यही वजह है कि भक्त उनके लिए कुछ भी कर जाते हैं. पावई गांव के एक शख्स श्यामलाल कोरी ने तो नवरात्र में मां को अपनी जीभ काट कर चढ़ा दी थी. गांव के लोगों का कहना है कि आज भी वह शख्स जीवित है. मैया के चमत्कार से उसे न तो बोलने में समस्या है न खाना खाने में.

भक्त ने अर्पित किया सिर, मैया ने वापस जोड़ा
माता से जुड़ा एक और किस्सा मशहूर है. कहा जाता है कि पावई माता मंदिर में लोग जौं चढ़ाने आते हैं. साथ ही तलवार भी लेकर आते हैं, लेकिन मंदिर के अंदर किसी को तलवार ले जाने की अनुमति नहीं है. सिवाय मृगपुरा गांव के लोगों के. इसके पीछे का कारण बताया जाता है कि, मृगपुरा गांव के एक व्यक्ति ने मंदिर में माता को अपना सिर काट के चढ़ा दिया था, जिसकी भक्ति से प्रसन्न माता ने उसका सिर धड़ से जोड़ दिया और वह वापस ज़िंदा हो गया. तब से ही मंदिर में तलवार के साथ सिर्फ मृगपुरा के लोग ही जाते हैं. उनके अलवा किसी भी गांव का कोई भी व्यक्ति तलवार के साथ अंदर नही जा सकता है. पावई वाली माता की महिमा के ऐसे ही न जाने कितने ही किस्से हैं जो दर्शाते हैं कि मां अपने भक्तों का कितना ध्यान रखती हैं. भक्त भी उनके दर्शन उनकी श्रद्धा में अपना जीवन समेट लेते हैं.

भिंड। नवरात्र में भक्तों और आराध्य माता के बीच असीम प्रेम सदियों से चला आ रहा है. यही वजह है कि नवरात्रि में पूरे भारत देश के प्रसिद्ध और तीर्थ देवियों के मंदिरों में श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है. चम्बल अंचल में भी दतिया की मां पिताम्बरा माई, रतनगढ़ वाली माता (Ratangarh Wali Mata) और भिंड की पावई वाली माता (Pawai Wali Mata) की प्रसिद्धी दूर-दूर तक है. कहा जाता है कि भिंड की पावई वाली माता के दर्शन कर नवरात्रों में डकैत भी घंटा चढ़ाने आते थे. मां की महिमा से जुड़े किस्सों के बारे में जानिए इस खास रिपोर्ट में...

कैला देवी से है पावई वाली माता का नाता
भिंड जिला मुख्यालय से करीब 30 किलोमीटर दूर बीहड़ों में अटेर का पावई गांव बसा है. इस गांव में ही पावई वाली माता का मंदिर है. कहा जाता है कि राजस्थान के करौली धाम में बैठी मां कैला देवी और भिंड की पावई वाली माता दोनों बहनें हैं. इस जगह को छोटी करौली भी कहते हैं. पावई वाली माता पर क्षेत्र के लोगों की तो श्रद्धा है ही साथ ही दूर-दूर से आने वाले श्रद्धालु भी मां की भक्ति में लीन रहते हैं. नवरात्र में नवमी के दिन मंदिर में भक्तों का जमावड़ा देखने लायक होता है. कई वर्षों से नवमी के दिन मंदिर के पास ही मेला भी लगाया जाता है. हालाँकि पिछले साल की तरह ही इस साल भी कोरोना महामारी के चलते मेला स्थगित कर दिया गया.

कुएं में विराजमान हैं माता
मंदिर के पुजारी बताते हैं कि यह मंदिर 10 सदियां देख चुका है. हर साल नवरात्र में यहां हजारों श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं और अपनी मनोकामनाएं और मन्नतें मांगते हैं. जब उनकी मन्नत पूरी होती है, तो नवरात्र की नवमी के दिन जौं चढ़ाने आते हैं. उन्होंने बताया की मंदिर में विराजी माता कुएं में रहती हैं.

मंदिर पर मुगलों ने किया था हमला
मंदिर का इतिहास बताते हुए उन्होंने कहा कि जब मुगलों ने सभी मंदिरों पर हमला किया था. उस दौरान पावई वाली माता मठ के बगल बने कुएं में विराजमान हो गयीं थीं. जब मुगल शासक वहां आए तो माता ने आवाज लगायी कि वे कुएं में हैं, लेकिन तू पहुंच नहीं पाएगा. काफ़ी कोशिश के बाद भी वह माता तक नही पहुंच पाए. अंत में हार मानकर वहां से चले गए.

माता को कुएं से बाहर निकालने की कोशिश हुई नाकामयाब
तब से ही माता उस कुएं में ही रहती हैं. हालांकि कई लोगों ने माता को निकालने की कोशिश की, लेकिन वे हर बर कुएं में ही लौट जाती हैं. इसलिए प्रतिगामी उनकी प्रतिमा कुएं के पस बने मठ में स्थापित करायी गयी है. उनके साथ ही करौली वली माता भी विराजमान हैं. वहीं मुग़लों द्वारा खंडित की गयीं प्रतिमाओं के अवशेष आज भी मंदिर में देखने को मिलते हैं.

भदावर राजा ने कराया था निर्माण
मंदिर में दर्शन को आए पावई के पूर्व सरपंच ने बताया कि पहले यह क्षेत्र बीहड़ और जंगल हुआ करता था. उस दौरान अटेर के भदावर राजा यहां शिकार के लिए आए थे. तब माता ने उन्हें दर्शन दिए थे. उन्होंने ही इस मंदिर का निर्माण कराया था. उन्होंने यह भी बताया कि इस मदिर पर दशकों पहले मानसिंह, रूपा, पुतली जैसे डकैत भी काफी सक्रिय थे और मंदिर पर आते थे. यहां पूजा अर्चना करते और घंटा चढ़ाते थे. इसी के चलते मंदिर के अंदर ही एक पुलिस चौकी भी स्थापित करायी गयी.

जब भक्त ने काट कर चढ़ा दी थी जीभ
पावई वाली माता के भक्तों की आस्था भी बहुत है. यही वजह है कि भक्त उनके लिए कुछ भी कर जाते हैं. पावई गांव के एक शख्स श्यामलाल कोरी ने तो नवरात्र में मां को अपनी जीभ काट कर चढ़ा दी थी. गांव के लोगों का कहना है कि आज भी वह शख्स जीवित है. मैया के चमत्कार से उसे न तो बोलने में समस्या है न खाना खाने में.

भक्त ने अर्पित किया सिर, मैया ने वापस जोड़ा
माता से जुड़ा एक और किस्सा मशहूर है. कहा जाता है कि पावई माता मंदिर में लोग जौं चढ़ाने आते हैं. साथ ही तलवार भी लेकर आते हैं, लेकिन मंदिर के अंदर किसी को तलवार ले जाने की अनुमति नहीं है. सिवाय मृगपुरा गांव के लोगों के. इसके पीछे का कारण बताया जाता है कि, मृगपुरा गांव के एक व्यक्ति ने मंदिर में माता को अपना सिर काट के चढ़ा दिया था, जिसकी भक्ति से प्रसन्न माता ने उसका सिर धड़ से जोड़ दिया और वह वापस ज़िंदा हो गया. तब से ही मंदिर में तलवार के साथ सिर्फ मृगपुरा के लोग ही जाते हैं. उनके अलवा किसी भी गांव का कोई भी व्यक्ति तलवार के साथ अंदर नही जा सकता है. पावई वाली माता की महिमा के ऐसे ही न जाने कितने ही किस्से हैं जो दर्शाते हैं कि मां अपने भक्तों का कितना ध्यान रखती हैं. भक्त भी उनके दर्शन उनकी श्रद्धा में अपना जीवन समेट लेते हैं.

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