भिंड। नारी शक्ति है, सम्मान है. नारी गौरव है, अभिमान है. नारी ने ही ये रचा विधान है, हमारा नतमस्तक इसको प्रणाम है. लखीमपुर खेरी उत्तरप्रदेश के कवि लवविवेक मौर्या की ये पंक्तियां आज की नारी और उसके हौसले और कुछ कर गुज़रने के संकल्प से प्रेरित हैं. इन शब्दों की माला आज की बेटियों की सोच और आगे बढ़ने की चाहत को दर्शाती हैं. जो समाज में अपना, अपने माता- पिता और देश का नाम रोशन करना चाहती हैं. कुछ इसी सोच के साथ आगे बढ़ रही है चंबल की बेटी अंजलि शिवहरे.
लगन से जीता मेडल : अंजलि हाल ही में वाटर स्पोर्ट्स के दूसरे सबसे खतरनाक खेल रोइंग में नेशनल मेडलिस्ट बन चुकी हैं. बोट की मदद से पानी पर अपना भविष्य लिख रही हैं. भिंड के युवाओं का जोश ही अलग है. अंजलि शिवहरे ने हाल ही में हुए नेशनल गेम्स में मध्यप्रदेश की तरफ़ से खेलते हुए वाटर स्पोर्ट्स के रोईंग गेम में डबल्स खेला और दोनों खिलाड़ियों ने बेहतर प्रदर्शन करते हुए ब्रॉन्ज मेडल हासिल किया. अंजलि कहती हैं कि वैसे तो वाटर स्पोर्ट्स बहुत ख़तरनाक होते हैं लेकिन खतरों में मज़ा भी अलग है. भिंड वाले तो होते ही ख़तरों के खिलाड़ी हैं. कोच दलवीर सिंह भी मानते हैं कि भिंड के युवाओं में अलग ही जुनून है. बस उन्हें सही गाइडेंस मिल जाये तो वे कुछ भी कर सकते हैं. यही सोच अंजलि की भी है. वे बचपन से ही कुछ अलग करा चाहती थीं. समाज में साबित करना चाहती थीं कि वे लड़की हैं तो क्या हुआ वो जो देन लेंगी वह करके दिखायेंगी.
इस मेडल का था बहुत इंतज़ार : अंजलि कहती हैं कि इन पलों का उन्हें बहुत दिनों से इंतज़ार था. क्योंकि इस मेडल के लिए उन्होंने बहुत मेहनत की है. भोपाल जाने के बाद तीन साल पहले उन्होंने रोईंग गेम चुना, जो दुनिया का दूसरा सबसे ख़तरनाक खेल माना जाता है. लेकिन उसके कुछ समय बाद ही कोरोना आ गया, जिसकी वजह से प्रैक्टिस सेशन नहीं हो सके. हालांकि उनके कोच लगातार ऑनलाइन माध्यम से गाइडेंस और क्लासेस लेते रहे. लेकिन कोरोना की वजह से कोई भी इवेंट नहीं हुआ. जनवरी में सीनियर नेशनल चैंपियनशिप आयोजित हुई थी लेकिन चंद माइक्रो सेंकेंड की वजह से वे चौथे पायदान पर पहुँच गई और आता हुआ मेडल दूर चला गया था. इसका भी एक गिल्ट था कि मेडल नहीं मिल सका लेकिन इस बार ये प्रूफ करना था कि हम मेडल जीतकर लाएंगे. अंजलि कहती हैं कि अब अगला टारगेट एशियन गेम्स खेलने का है.
भिंड से शुरू चैंपियन बनने सफर : अंजलि कहती हैं कि शुरुआत में भिंड शहर में बने गौरी सरोवर स्थित बोट क्लब पर केनो और कयाक सीखा. कुछ इवेंट्स में हिस्सा भी लिया. कोच को भरोसा था कि अंजलि आगे तक जा सकती हैं. उन्होंने अचानक एक दिन भोपाल में मौजूद मप्र खेल अकादमी में चयन के लिए हुए ट्राइल्स में हिस्सा दिलाया और काम बन गया. खेल एकेडमी में जॉइनिंग मिल गई लेकिन अब घर और घरवालों से दूर प्रदेश की राजधानी में अकेले रहना टास्क जैसा था और उससे भी बड़ा चैलेंज था माता पिता को इस बात के लिए मनाना कि वे लोग अंजलि को तैयारी के लिए भोपाल भेज दें.
प्रेरणा बनी मां : एक मध्यम परिवार में पली- बढ़ी हुई अंजलि के पास सुख- सुविधाएं सीमित थीं. पिता किराने की दुकान चलाते हैं तो मां आंगनबाड़ी कार्यकर्ता हैं. एक तरह से घर की आजीविका चलाना भी किसी चुनौती से कम नहीं था. ऐसे में जब अंजलि ने अपने बड़े सपनों को पूरा करने में घरवालों की मदद चाही तो मजबूरन उनके हाथ सिकुड़ गए. एक तरफ़ जहां खर्च बढ़ने जा रहा था, वहीं समाज की सोच आड़े आ रही थी. लेकिन मां का सपोर्ट हमेशा अपनी बेटी पर भरोसे के रूप में रहा.
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डर के आगे जीत है : अंजलि शिवहरे की मां कहती हैं कि शुरू से ही बेटी की बाहर भेजने में बड़े तालाबों में पानी में हादसों का भी एक डर लगा रहता था. इसलिए में उसे बाहर नहीं भेजना चाहती थी. जब पता चला कि बेटी को बाहर भेजना है तो मैंने साफ़ इंकार कर दिया लेकिन इसके बाद पहले कोच राधेगोपाल का फ़ोन आया जिन्होंने भरोसा दिलाया और अपनी बेटी भी साथ भेजने की बात कही. उसके बाद जाकर कहीं हमने उसे जाने देने का फ़ैसला लिया. वे आज उसकी उपलब्धि से बहुत खुश हैं. (MP Bhind Girls Power) (Charisma of daughters Bhind) (Water sports Bhind girls) (Anjali Shivhare National Medal Rowing)