भिंड। प्रदेश के कई हिस्सों में इन दिनों खाद का संकट गहराया हुआ है. खासकर डीएपी को लेकर आपूर्ति एक बड़ा सवाल बन रही है, जिसका खामियाजा अन्नदाता को भुगतना पड़ रहा है. खाद का इंतजार करतीं फसल खेतों में खड़ी हैं और अन्नदाता खाद लेने के लिए लाइन में खड़ा है. ऐसे में खाद वितरण केंद्र (Fertilizer Distribution Center) पर पहुंचकर ईटीवी भारत ने हालातों का जायजा लिया और प्रशासन के दावों का रियलिटी चेक किया.
सरकारी दावों की पोल खोल रही खाद की किल्लत
मध्यप्रदेश का छोटा से जिला भिंड कहने को 20 लाख की आबादी वाला जिला है, लेकिन इस क्षेत्र की आय का सबसे बड़ा जरिया खेती और तबका किसान है. हालिया स्थिति में दोनों की हालत ठीक नही है. इलाके के ज्यादातर खेतों में बाजरा और ज्वार की फसल तैयार हो रही है. खाद की कमी इन फसलों को बर्बाद करने पर तुली हैं. शासन और प्रशासन जिले में पर्याप्त मात्रा में फर्टिलाइजर उपलब्ध होने का दावा कर हैं, लेकिन लाइन में लगकर खाद लेने के लिए पहुंच रहे किसानों की पीड़ा उन दावों की पोल खोल रही है.
खाद वितरण केन्द्रों पर लम्बी कतारें
किसानों से खाद को लेकर स्थिति जानने के लिए ईटीवी भारत भिंड स्थित एमजेएस ग्राउंड के पास बनाए गए खाद वितरण केंद्र पर पहुंचा, तो पाया कि केंद्र पर किसानों और महिलाओं की लम्बी कतारें लगी थीं. कुछ लोग घंटों से खड़े थे, तो कई किसान सुबह 6 बजे से अपनी बारी का इंतजार कर रहे थे. किसानों ने बताया कि वह सुबह छह बजे से लाइन में लगे हैं, लेकिन केंद्र पर पर्याप्त व्यवस्थाएं न होने की वजह से उन्हें परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है. अमूमन केंद्र खोलने का समय सुबह 11 बजे है, लेकिन कर्मचारी 12 बजे के बाद ही पहुंचते हैं. इसी वजह से लाइन लंबी हो रही हैं.
रकबे के हिसाब से भी नहीं मिल पा रहा फर्टिलाइजर
DAP और यूरिया (DAP and Urea) लेने पहुंचे एक अन्य किसान ने बताया कि वे सुबह से अपनी बारी का इंतजार कर रहे हैं, लेकिन केंद्र पर डीएपी और यूरिया देने की सीमा तय कर दी गई है. उन्होंने बताया कि केंद्र पर आधार कार्ड (Aadhar Card) और किताब दोनों होने पर 2 बोरी DAP और एक बोरी यूरिया दिया जा रहा है. यह मात्रा उनके खेत के लिए पर्याप्त नहीं है. उनकी 15 बीघा जमीन के लिए कम से कम 10 बोरी DAP और पांच बोरी यूरिया चाहिए.
किसानों ने सेंटर पर लगाया ब्लैक में बेचने का आरोप
एक अन्य किसान ने बताया की वह पिछले 3 दिन से लगातार DAP लेने के लिए आ रहा है, लेकिन स्टॉक न होने से उसे खाली हाथ लौटना पड़ रहा था. उसने यह भी आरोप लगाया कि बाजार में प्रतीत दुकानों पर ब्लैक (Government Fertilizer Sold in black) में महंगा डीएपी उपलब्ध है. स्टॉक भरे पड़े हैं, लेकिन दो दिन पहले केंद्र पर रैक आने के बाद भी DAP नहीं दिया जा रहा है. किसान ने मिलीभगत कर किसानों को गुमराह करने का आरोप लगया. जमना रोड स्थित सोसाइटी पर पहुंचने पर खाद ले रहे एक किसान से जब हमने बात की तो उसका कहना था कि उसने दो आधारकार्ड लगाकर 10 बोरी यूरिया लिया है, लेकिन डीएपी नहीं है.
किसानों के खाते में सिर्फ 20% DAP
कृषि विभाग (Agriculture department bhind) के ADO जितेंद्र सिंह राठौर ने बताया कि जिले में यूरिया की कोई कमी नहीं है, लेकिन BSP स्टॉक के मुताबिक वितरण किया जा रहा है. उन्होंने बताया कि जिला प्रशासन द्वारा दिये गए फैसले के अनुसार जो किसान अपने आधार कार्ड और किताब लेकर आ रहे हैं, उनके लिए अधिकतम तीन बोरी DAP और पांच बोरी यूरिया देने का निर्देश हैं. वहीं जिन किसानों के पास किताब नहीं है उन्हें दो बोरी यूरिया दिया जा रहा है. डीएपी नही दे पा रहे हैं. उनका कहना था कि वर्तमान में 200 टन Dap उपलब्ध कराया गया था, जिसमें से 80 फीसदी क्रेडिट पर लेने वाली सोसायटियों को भेज दिया गया है. ऐसे में सिर्फ 40 टन DAP फर्टिलाइजर हमारे पास उपलब्ध है.
विकल्पों पर किया जा रहा फोकस
खाद की स्थिति को लेकर जब हमने कलेक्टर (Bhind Collector) सतीश कुमार से बात की तो उन्होंने बताया कि हाल ही में मेडिक्लेम फर्टिलाइजर की मांग तेजी से बढ़ी है, जोकि अक्टूबर तक जारी रहेगी. इसकी आपूर्ति के लिए पिछले हफ्ते में यूरिया मिले-जुले को प्राप्त हुआ है. अभी DAP की ज्यादा मांग सामने आ रही है जिसकी आपूर्ति का भी प्रयास किए जा रहे हैं. उन्होंने बताया कि DAP के के तौर पर NPK, ASP, GSP जैसे अन्य फर्टिलाइजर का भी उपयोग किया जा सकता है, जिसके लिए प्रशासन ने मांग भी की है. वर्तमान में जिले में NPK की करीब 900 मीट्रिक टन की उपलब्धता है, जबकि निजी और सहकारी मिलाकर ASP और MOB दोनों मिलकर करीब 900 मीट्रिक टन उपलब्ध है. वहीं DAP भी करीब 1200 मीट्रिक टन निजी और सहकारिता मिलाकर उपलब्ध है. वहीं यूरिया भी करीब 4 हजार मीट्रिक टन की उपलब्धता है.
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भिंड कलेक्टर ने भी यह माना है कि जिले में डीएपी की कमी है, और मांग अभी और बढ़ सकती है. उनका कहना है कि वे प्रयास कर हैं कि पर्याप्त मात्रा में इसकी व्यवस्था रहे, जिससे किसानों को परेशानी न हो. किसानों को प्रशासन की बातों पर भरोसा नहीं है. यही वजह है की वे अपनी फसल बचाने के लिए प्राइवेट दुकानों और सोसाइटियों की ओर रुख कर रहे हैं, क्योंकि समय रहते अगर खाद नहीं मिला तो उनकी पूरी मेहनत बर्बाद हो जाएगी.