भिंड। चंबल नदी एक बार फिर अपने रौद्र रूप में है. चंबल का यह रौद्र रूप गांधी सागर बांध से 12500 क्यूमैक्स पानी छोड़े जाने के चलते बना है. उदी घाट पर चंबल नदी के खतरे का निशान 119 मीटर है, लेकिन वर्तमान स्थिति में चंबल नदी 10 मीटर ऊपर 129 मीटर पर बह रही है. सैकड़ों गांव ऐसे हैं जो बाढ़ के पानी से पूरी तरह तबाह हो चुके हैं. चंबल इलाके में स्थित गांव पूरी तरह बाढ़ के पानी से तालाब बन चुके हैं, इसलिए ग्रामीण घर की छतों पर जिंदा रहने के लिए मजबूर हैं. हर तरफ सिर्फ पानी ही पानी, गांव टापू बन गए हैं. भिंड के बाढ़ से सबसे प्रभावित क्षेत्र अटेर ईटीवी भारत की टीम ग्राउंड रिपोर्ट करने पहुंची, जहां पर बाढ़ ने सब कुछ बर्बाद कर दिया है. छतों पर अटके लोगों को देखें इस रिपोर्ट के जरिए, (Bhind Flood)
हर तरफ पानी ही पानी: चंबल नदी उफान पर है जिसके चलते अटेर मुख्यालय समेत इलाके के कई गांव बाढ़ से प्रभावित हो चुके हैं. नदी खतरे के निशान से 10 मीटर से ज्यादा ऊपर बह रही है. नतीजा घाट से खेतों के जरिए पानी आसपास के कई गांव में घुस चुका है. अटेर मुख्यालय का भी अब बाढ़ के चलते जिला मुख्यालय से संपर्क टूट गया है. अटेर से तीन किलोमीटर दूर बसे देवालय गांव (Bhind Devalaya Village) में अब भी 350 से ज्यादा लोग फंसे हुए हैं. लेकिन मजबूरी गांव छोड़ने नहीं दे रही. देवालय गांव तक पहुंचने के लिए ईटीवी भारत ने SDRF की मदद ली और ग्राउंड जीरो पर बाढ़ प्रभावितों के बीच पहुंच कर उनके हालत जाने. (MP Flood Tragedy)
दूसरों के घरों में शरण लेने को मजबूर गरीब: खेतों में 30 से 40 फीट बाढ़ का पानी है. गांव ऊंचाई पर है लेकिन घरों में पानी घुस चुका है. लोग अपनी गृहस्ती समेट रहे हैं. आधे से ज्यादा गांव में लोग अपना अनाज, फर्नीचर बिस्तर और मवेशियों को बचाने में लगे हैं. खेती पूरी तरह बर्बाद हो चुकी है और गांव का विकास दशकों पीछे चल गया है. देवालय गांव की हर छत पर बाढ़ से बचने का प्रयास कर रहे ग्रामीण और उनका सामान है. जिन गरीबों के घर पूरी तरह डूब गए है वे ऊंचाई पर बने दूसरों के घरों में शरण ले रहे हैं. (Bhind Chambal Flood)
घरों में पानी छत पर सिमटी देवालय की गृहस्ती: जब ईटीवी भारत की टीम गांव के नजदीक पहुंची तो घर की छतों से बाढ़ में फंसे लोग, बच्चे सभी अपनी समस्याएं हालात बताने की आस में टक टकी लागए झांकते नजर आए. मौके पर हालातों का मुआयना करने के बाद ईटीवी भारत की टीम ने लोगों से बातचीत की, जहां उनका दर्द साफ झलकता नजर आया. गांव के एक बुजुर्ग ग्रामीण ने बताया कि, गांव में पानी घुसता जा रहा है. लोग अपना बोरिया बिस्तर उठा कर छतों पर और दूसरों के घरों में रख रहे हैं. शासन से कोई मदद नहीं मिल रही लोग अपनी छतों पर रहने को मजबूर हैं. वहीं खाना पका रहे हैं और गुजारा करने को मजबूर हैं. बुजुर्ग का कहना है कि पूरे गांव में एक ही दो घर ऐसे हैं जो ऊंचाई पर बने रहने की वजह से बचे हुए हैं, ऐसे में सामान रखने के साथ अपने मवेशियों को भी वहीं बांधा गया है.
फसल नुकसान पर नहीं मिली सहायता राशि: जब ग्रामीणों से बीते सालों में आई बाढ़ से हुए नुकसान के बारे में चर्चा की, तो बुजुर्ग ग्रामीण ने बताया कि हर साल बाढ़ में उनकी फसलों का भारी नुकसान होता है. लेकिन सर्वे के बाद भी उन्हें फसल का मुआवजा नहीं मिलता. उन्होंने कहा कि मदद के तौर पर पांच हजार रुपए प्रशासन की तरफ से दिए गए थे, लेकिन वह भी पटवारी ने उनके खाते में ट्रांसफर नहीं किए. उन्हें इस बात का दुख है कि वह क्षेत्र के विधायक और प्रदेश के सहकारिता मंत्री अरविंद भदौरिया के साथ लंबे समय से जुड़े हुए हैं, बावजूद उसके उन्हें अपनी ही सरकार में इस तरह की परेशानियां उठानी पड़ रही है. (MP Flood Tragedy Destroyed Many Villages)
भगवान भरोसे ग्रामीण: गांव के ही एक युवक से बात करने पर उसने बताया कि जैसे ही पानी गांव में घुसना शुरू हुआ तब से ही अफरा-तफरी की स्थिति बनी हुई है. लोग अपने अपने घरों से सामान शिफ्ट करने में लगे हैं. पूरे गांव में पानी भरा हुआ है, जिसकी वजह से ऊंचे स्थानों पर मवेशियों को बांधना पड़ रहा है. लेकिन लगातार जल स्तर बढ़ने से वह भी ज्यादा समय तक सुरक्षित नहीं रहेंगे. यहां सब लोग फिलहाल भगवान भरोसे हैं ऐसे में एक दूसरे की मदद करने में जुटे हुए हैं. ग्रामीण मानते हैं कि प्रशासन और सरकार ने ठीक से प्लानिंग नहीं की, इसलिए ऐसे हालात हो गए हैं. वह कहते हैं कि सरकारी मदद तो मिलती है लेकिन वह काफी नहीं होती. सरकार जितना पैसा बाढ़ उतरने के बाद मुआवजे के तौर पर बांट देता है उससे बेहतर होता कि वे बाढ़ पीड़ितों को विस्थापित करने के लिए किसी सुरक्षित स्थान पर कुछ जमीन देकर उन्हें घर बनाने देते. ग्रामीणों का कहना है कि सरकार चाहे तो विकल्प के तौर 20 से तीस फुट ऊंची सड़क या ओवरहेड ब्रिज का निर्माण भी कर सकती है जो सीधा अटेर तक जाए. उनका मानना है कि सरकार हर साल बाढ़ के बाद मुआवजा देने में भी करोड़ों रुपये खर्च कर देती है ऐसे में इन दोनों विकल्पों पर भी विचार किया जा सकता है.