बैतूल। प्रदेश सरकार द्वारा आदिवासियाें के हित व छात्रों को सर्वसुविधायुक्त शिक्षा दिए जाने का दावा किया जाता है, लेकिन बैतूल जिले के आदिवासी बाहुल्य गांव सुरनादेही से आई तस्वीरें सरकारी दावे की पोल खोलती नजर आ रही है. जहां की पाठशाला में लगभग 69 छात्र पढ़ाई करने आते हैं, लेकिन सालों पुराने इर जर्जर भवन में पढ़ाई के दौरान छात्रों को शिक्षकों को हमेशा किसी अनहोनी का डर बना रहता है.
बल्लियों पर टिका भवन, जिम्मेदार अनजान
खस्ताहाल बल्लियों पर टिका यह भवन आदिवासी बहुल गांव सुरनादेही की प्राथमिक पाठशाला है, जहां सरकार कि तरफ से सपना साकार करने के लिए वादे तो कई किए गए, लेकिन वे आजतक हकीकत में नहीं बदले. वहीं कक्षा संचालित करने के लिए शिक्षकों को काफी जद्दोजहद करनी पड़ रही है. किसी अनहोनी से बचने के लिए खुले आसमान के नीचे विपरीत परिस्थितियों में मजबूरन छात्रों को पढ़ाया जाता है. स्थानीय ग्रामीणों की मानें तो जर्जर प्राथमिक पाठशाला के भवन की मरम्मत या नए भवन के निर्माण को लेकर कई बार जिम्मेदारों से गुहार लगाई जा चुकी है, लेकिन स्थानीय जनप्रतिनिधियों के साथ-साथ प्रशासनिक अमले का भी ध्यान अभी तक इस ओर नहीं गया है.
कभी भी घट सकती बड़ी दुर्घटना
पाठशाला के प्रधानाध्यापक चरणसिंह उइके बताते हैं कि, पाठशाला में 69 छात्र हैं, लेकिन भवन के जर्जर होने के कारण छात्रों की सुरक्षा को ध्यान में रखकर कक्षाऐं खुले आसमान के नीचे संचालित की जाती है. वहीं बीआरसी मनीष धोटे के मुताबिक पाठशाला के अतिरिक्त कक्ष निर्माण के लिए प्रस्ताव भेजा गया है, पीडब्ल्यूडी द्वारा जल्द ही इसे डिसमेंटल करवाया जाएगा. जिसके बाद शिक्षा विभाग का यहां नया भवन बनाने का प्रस्ताव है. शिक्षकों, ग्रामीणों और छात्रों के परिजनों का कहना है कि पाठशाला भवन के निर्माण का फैसला जल्द लिया जाना चाहिए, क्योंकि इमारत काफी जर्जर है और कभी भी कोई बड़ा हादसा हो सकता है.