ETV Bharat / state

स्वतंत्रता संग्राम सेनानी बिदरिचंद गोठी का 104 साल की उम्र में निधन, कोरोना को भी दे चुके थे मात

आजादी के आंदोलन में अग्रणी रहे स्वतंत्रता संग्राम सेनानी बिदरिचंद गोठी का शनिवार को 104 साल की उम्र में निधन हो गया. वे कुछ दिनों से बीमार चल रहे थे. उनकी अंत्येष्टि रविवार को की जाएगी.

Freedom fighter Bidrichand Gothi passes away
स्वतंत्रता सेनानी बिदरिचंद गोठी का निधन
author img

By

Published : Aug 22, 2021, 5:42 PM IST

बैतूल। बिदरी बाबाजी के नाम से पुकारे जाने वाले बिदरिचंद गोठी 2 नवंबर 1917 को बैतूल में ही जन्मे थे. उनके पिता का नाम मिश्रीलाल गोठी एवं माता का नाम केसरी बाई था. 1930 में जब महात्मा गांधी बैतूल आए थे, तो उनसे प्रेरित होकर वे आजादी के आंदोलन में कूद पड़े थे. उनके भाई स्वर्गीय गोकुलचंद गोठी भी स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे. उनके काका दीपचंद गोठी भी स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे और बैतूल के पहले विधायक भी थे.

Freedom Fighter Bidrichand Gothi
स्वतंत्रता सेनानी बिदरिचंद गोठी

महात्मा गांधी के नमक सत्याग्रह से हुए प्रेरित

महात्मा गांधी के नमक सत्याग्रह (दांडी यात्रा) से प्रेरित होकर बैतूल में जंगल सत्याग्रह की शुरुआत हुई थी. गोठी परिवार का निवास इस आंदोलन की लड़ाई का केंद्र बिंदु था. उनके घर स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों की आवाजाही, आंदोलन की रणनीति बना करती थी. इस तरह के माहौल का असर बिदरिचंद गोठी पर गहरा पड़ा. बिदरिचंद महज 17 साल की आयु में अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन में कूद पड़े थे और जेल भी गए.

भूटान आंदोलन के सहयोगी रहे बिदरी बाबाजी

गोठी आंदोलन के दौरान अपने जीवनकाल में दो बार जेल गए. उनपर हमेशा गांधीजी की विचारधारा का गहरा प्रभाव रहा. सदैव गांधी जी की अहिंसा, सहिष्णुता और भाई चारे की विचारधारा का प्रचार प्रसार करते रहे. उनपर अपने पिता स्वर्गीय मिश्रीलाल गोठी और चाचा दीपचंद गोठी के संघर्ष और विचारों को लेकर अटूट विश्वास रहा.

मोदी ने 'वेट एंड वॉच' की नीति अपनाई, पर अफगानिस्तान को लेकर क्या सोचते थे नेहरू, जानें

उनका जीवन त्याग, सादगी भरा और समाज के लिए समर्पित रहा. उन्होंने आजादी के बाद देश निर्माण और समाज कल्याण के लिए जीवन लगा दिया. वे आचार्य विनोभा भावे के भूटान आंदोलन के सहयोगी रहे और हमेशा समाजवाद के समर्थनक रहे.

104 साल की उम्र में कोरोना को भी दी मात

उनके ही परिवार के अनिल गोठी ने बताया कि सरकार द्वारा दी जाने वाली पेंशन मिलती थी, लेकिन उनके जीवनकाल में उन्होंने एक भी नहीं ली. बता दे कि कोरोना काल और 104 वर्ष की आयु में उन्होंने कोरोना को भी सहजता से मात दी और लोगों को कोविड से लड़ने की प्रेरणा भी दी. घर के मुखिया के नक्शे कदम पर आज भी उनके परिवार के 250 लोग तीज त्योहार एक साथ मनाते है. खासतौर पर रक्षाबंधन और भाईदूज का त्योहार.

बैतूल। बिदरी बाबाजी के नाम से पुकारे जाने वाले बिदरिचंद गोठी 2 नवंबर 1917 को बैतूल में ही जन्मे थे. उनके पिता का नाम मिश्रीलाल गोठी एवं माता का नाम केसरी बाई था. 1930 में जब महात्मा गांधी बैतूल आए थे, तो उनसे प्रेरित होकर वे आजादी के आंदोलन में कूद पड़े थे. उनके भाई स्वर्गीय गोकुलचंद गोठी भी स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे. उनके काका दीपचंद गोठी भी स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे और बैतूल के पहले विधायक भी थे.

Freedom Fighter Bidrichand Gothi
स्वतंत्रता सेनानी बिदरिचंद गोठी

महात्मा गांधी के नमक सत्याग्रह से हुए प्रेरित

महात्मा गांधी के नमक सत्याग्रह (दांडी यात्रा) से प्रेरित होकर बैतूल में जंगल सत्याग्रह की शुरुआत हुई थी. गोठी परिवार का निवास इस आंदोलन की लड़ाई का केंद्र बिंदु था. उनके घर स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों की आवाजाही, आंदोलन की रणनीति बना करती थी. इस तरह के माहौल का असर बिदरिचंद गोठी पर गहरा पड़ा. बिदरिचंद महज 17 साल की आयु में अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन में कूद पड़े थे और जेल भी गए.

भूटान आंदोलन के सहयोगी रहे बिदरी बाबाजी

गोठी आंदोलन के दौरान अपने जीवनकाल में दो बार जेल गए. उनपर हमेशा गांधीजी की विचारधारा का गहरा प्रभाव रहा. सदैव गांधी जी की अहिंसा, सहिष्णुता और भाई चारे की विचारधारा का प्रचार प्रसार करते रहे. उनपर अपने पिता स्वर्गीय मिश्रीलाल गोठी और चाचा दीपचंद गोठी के संघर्ष और विचारों को लेकर अटूट विश्वास रहा.

मोदी ने 'वेट एंड वॉच' की नीति अपनाई, पर अफगानिस्तान को लेकर क्या सोचते थे नेहरू, जानें

उनका जीवन त्याग, सादगी भरा और समाज के लिए समर्पित रहा. उन्होंने आजादी के बाद देश निर्माण और समाज कल्याण के लिए जीवन लगा दिया. वे आचार्य विनोभा भावे के भूटान आंदोलन के सहयोगी रहे और हमेशा समाजवाद के समर्थनक रहे.

104 साल की उम्र में कोरोना को भी दी मात

उनके ही परिवार के अनिल गोठी ने बताया कि सरकार द्वारा दी जाने वाली पेंशन मिलती थी, लेकिन उनके जीवनकाल में उन्होंने एक भी नहीं ली. बता दे कि कोरोना काल और 104 वर्ष की आयु में उन्होंने कोरोना को भी सहजता से मात दी और लोगों को कोविड से लड़ने की प्रेरणा भी दी. घर के मुखिया के नक्शे कदम पर आज भी उनके परिवार के 250 लोग तीज त्योहार एक साथ मनाते है. खासतौर पर रक्षाबंधन और भाईदूज का त्योहार.

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.