बड़वानी। सिर्फ देश में ही नहीं बल्कि विदेशों की रसोई में भी धाक जमाने वाली निमाड़ की रानी यानी तीखी सुर्ख लाल मिर्च इन दिनों औंधे मुंह गिर पड़ी है. इस साल हुई अतिवृष्टि के कारण निमाड़ में हजारों हेक्टेयर में लगने वाली लाल मिर्च उगाने वाले किसान परेशान हैं. बड़वानी जिले में हजारों हेक्टेयर में लाल मिर्च की खेती करने वाले किसानों को पहले कोरोना वायरस ने अपनी चपेट में जकड़ा और अब कुकड़ा नामक वायरस अटैक के कारण वे परेशान हैं.
निमाड़ की रानी का अलग है जायका
मिर्च उत्पादन में निमाड़ पहला और कारोबार के क्षेत्र में एशिया में दूसरे नंबर पर है. नर्मदा किनारे की उर्वरक भूमि में बोई जाने वाली मिर्च में लाल सुर्ख रंग और तीखापन होने के कारण यहां की मिर्च का स्वाद लाजवाब होता है, जिसके चलते विदेशों में भी इसकी मांग बनी रहती है. यहां मिर्च की अलग-अलग प्रकार की कई किस्में बोई जाती हैं, जो अलग-अलग व्यंजनों में उपयोग में ली जाती हैं इसलिए रसोई में मसालों के बीच यहां की मिर्च को निमाड़ की रानी का दर्जा प्राप्त है.
सफेद मक्खी से आए वायरस ने जकड़ा
फसलों का रस चूसने वाले कीटों के हमले के चलते मिर्च में कुकड़ा रोग यानि लिपकर्ल वायरस फैल गया और इसका वाहक सफेद मक्खी होती है. किसान अगर शुरुआत में ध्यान दें और शुरुआत में ही कुछ पौधे, जिन पर अटैक होता है, उखाड़ फेंक दें, तो हालात काबू में लाए जा सकते हैं. निमाड़ की मिर्ची में नर्मदा किनारे खेतीवाली भूमि में कैप्सेसिन नामक पदार्थ के चलते कई जगहों की मिर्ची से बेहतर होती है. उत्पादन कम होने से बाजार में इस बार दाम में तेजी रहेगी.
व्यापक पैमाने में बोई जाती है मिर्च
बड़वानी जिले में करीब 7 हजार हेक्टेयर से ज्यादा कृषि भूमि पर इस बार मिर्च व्यापक पैमाने पर बोई गई थी, लेकिन वायरस अटैक के चलते किसानों के हाथ अब निराशा ही आई है. जिले में अतिवृष्टि का असर खरीफ की सभी फसलों पर देखने को मिला है. ऐसे में मिर्च की फसल कैसे अछूती रहती. निमाड़ में सर्वाधिक मिर्च उत्पादन को देखते हुए किसानों को और ज्यादा आर्थिक लाभ, नई तकनीक, नवाचार के साथ-साथ मिर्च पर लगने वाली बीमारी और सफेद मक्खी के प्रकोप से फसल को बचाने के लिए पूर्व कांग्रेस सरकार के कृषि मंत्री ने देश में पहली बार 'चिली फेस्टिवल' यानी 'मिर्च महोत्सव' की शुरुआत की थी.
चार लाख की लागत से लगी फसल बर्बाद
किसान गौतम राठौड़ ने बताया कि उन्होंने करीब 25 एकड़ खेत में करीब 20 एकड़ में सानिया किस्म और 5 एकड़ में आर्मर किस्म नामक मिर्च लगाई थी, लेकिन कीट और वायरस अटैक के चलते पूरी फसल बर्बाद हो गई. बीज लाने के बाद खेत-नर्सरी में रोपा यानी पौधा तैयार किया जाता है. इसमें ही चार लाख तक का खर्च बैठता है और महंगे कीटनाशकों का छिड़काव किया जाता है, जिसके चलते अब तक करीब 20 लाख रुपए खर्च हो चुके हैं. किसान गौतम ने बताया कि रोजाना पंप से स्प्रे किया जाता है, जिसका खर्च प्रतिदिन 15 हजार रुपए बैठता है. इतनी मेहनत व लागत के बाद अब खेतों से मिर्च की फसल उखाड़ फेंकने की नौबत आ गई है.
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अतिवृष्टि ने अरमानों पर फेरा पानी
करीब 10 एकड़ में मिर्च की फसल लगाने वाले किसान राकेश ने इस आशा से मिर्च बोई थी, कि अच्छी फसल आने पर वह अपना कर्ज चुका देगा लेकिन अतिवृष्टि ने अरमानों पर पानी फेर दिया. किसानों ने लाखों रुपए खर्च किए थे लेकिन मिर्च का उत्पादन खराब होने के चलते अब उन्हें भाव नहीं मिल रहे हैं, जबकि बाजार में मांग के अनुरूप हरी मिर्च का भाव 50 रुपए किलो तक है. किसान को सरकार से कोई आस नहीं है, क्योंकि अब तक उनके खेतों का सर्वे ही नहीं हुआ है. वहीं मुआवजा इतना कम मिलता है कि मजदूरी भी नहीं निकल पाती है. बढ़ते कर्ज की परेशानी उन्हें खाए जा रही है.
विशेषता के कारण हमेशा रहती हैं ईऑन डिमांड
उद्यानिकी वैज्ञानिक दिनेश जैन का कहना है कि निमाड़ की मिर्च अपनी विशिष्टता के चलते सदैव बाजार में हाई डिमांड में रहती है. और यह खरीफ की फसल में शुमार है. विशेष क्वॉलिटी होने के चलते यहां की मिर्च को अच्छा दाम मिलता है. वर्तमान में किसान महंगे कीटनाशकों का अंधाधुंध प्रयोग करने लगे हैं, जिससे मिर्ची की फसल की लागत बढ़ जाती है. इसके लिए किसानों को कृषि अनुसंधान केंद्र की विकसित तकनीकी अपनाना चाहिए.
बारिश ने बिगाड़ा खेल
कृषि विज्ञान केंद्र के प्रधान कृषि वैज्ञानिक बताते हैं की जिले में वर्तमान में मिर्च की फसल का उत्पादन पिछले सालों की तुलना में ठीक नहीं है. जून के महीने में अच्छी बारिश के बाद जरूर मौसम ने साथ दिया था तब मिर्ची की स्थिति बेहतर थी, लेकिन बाद में लगातार हुई भारी बारिश ने खेल बिगाड़ दिया.