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महिला दिवस विशेषः शिक्षिका ने बदल दी सरकारी स्कूल की परिभाषा

बालाघाट जिले के बगड़मारा गांव में एक शिक्षिका सरकारी स्कूल के बच्चों को पढ़ाने के लिए हर संभव प्रयास कर रही है. शिक्षिका ने बच्चों को स्कूल में सभी सुविधाएं उपलब्ध करवाने के लिए अपने वेतन से एक लाख रुपए की राशि लगा दी. शिक्षिका की कड़ी मेहनत से आज बगड़मारा के सरकारी स्कूल में प्राइवेट स्कूल जैसी सुविधाएं उपलब्ध हो पाई है. शिक्षिका का कहना है कि यदि बच्चे अभाव में पढ़ेंगे तो देश का भविष्य नहीं सुधर पाएगा.

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Published : Mar 8, 2021, 1:24 AM IST

Updated : Mar 8, 2021, 9:33 AM IST

Teacher changed the definition of government school
शिक्षिका ने बदल दी सरकारी स्कूल की परिभाषा

बालाघाट। राष्ट्र की प्रगति और सामाजिक स्वतंत्रता में शिक्षित महिलाओं की भूमिका उतनी ही अहम है, जितनी कि पुरुषों की. इतिहास इस बात का प्रमाण है कि जब-जब नारी ने आगे बढ़कर अपनी बात सही तरीके से रखी है, समाज और राष्ट्र ने उसे पूरा सम्मान दिया है. आज समाज में लैंगिक समानता को प्राथमिकता देने से भी लोगों की सोच में भारी बदलाव आया है. आधिकारिक तौर पर भी अब नारी को पुरुष से कमतर नहीं आंका जाता. यही कारण है कि महिलाएं पहले से अधिक सशक्त और आत्मनिर्भर हुई हैं. अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर आज हम आपको ऐसी ही निष्ठावान और कर्तव्यपरायण एक शिक्षिका के जोश, जुनुज और जज्बे से वाकिफ करवा रहे है, जिसने सरकारी स्कूल की परिभाषा को ही बदलकर रख दिया.

बालाघाट जिले में एक ऐसा स्कूल है, जो मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र सीमा पर स्थित रजेगांव के समीप लगा हुए बगड़मारा गांव में है. जहां पर शिक्षिका तिलोत्तमा कटरे ने ऐसा ही कमाल कोरोना काल में भी कर दिखाया है. सुबह से शाम और रात तक इनके जीवन का सिर्फ एक ही उद्देश्य और एक ही लक्ष्य है. सिर्फ अपने स्कूल के बच्चों का सर्वांगीण विकास. यहां शिक्षिका के संबंध में वह बात कही जा सकती है जो फिल्म दंगल में महावीर फोगाट के रोल में आमिर खान के स्वरों में दिखाया गया कि 'म्हारी बेटियां छोरों से कम है के' ठीक उसी अंदाज में शिक्षिका तिलोत्तमा कटरे के लिए कहा जा सकता है कि, 'उनके स्कूल के बच्चे प्रायवेट स्कूलों से कम है के'.

बदल दी क्लास रूम की तस्वीर
  • स्कूल के उत्थान में लगाए वेतन के पैसे

तीन वर्षों से बगड़मारा स्कूल में पदस्थ तिलोत्तमा कटरे ने पहले अपने वेतन के पचास हजार रुपए लगाकर स्कूल भवन की मरम्मत करवाई, और उसे आकर्षक स्वरुप देने का प्रयास किया. वहीं जब कोरोना काल में स्कूलों में बच्चों का आना बंद करवा दिया गया. तब भी तिलोत्तमा कटरे ने प्रयास जारी रखे, अपने क्लासरुम को विविध साजो सामान से सजाते हुए लगभाग पचास हजार रुपए दोबारा अपने वेतन से खर्च कर स्कूल का स्वरुप बदल दिया.

जुबां नहीं फिर भी गौरांशी का हुनर बोलता है, बैडमिंटन कोर्ट में कर देती है सबकी बोलती बंद

  • मोहल्ला क्लासेस लेकर पढ़ा रही शिक्षिका

जहां छोटे बच्चों की पढ़ाई के लिए शासन द्वारा मोहल्ला क्लासेस और घर जाकर बच्चों को पढ़ाने की गाइडलाइन तैयार की, तो तिलोत्तम कटरे बगड़मारा पहुंचकर प्रतिदिन बच्चों को पढ़ाती है. तिलोत्तमा का कुछ महीनों पूर्व दुर्घटना में पैर टूट गया था. तब भी पैर में दर्द और चलने फिरने में तकलीफ होने के बाद भी कदमों को कठिनाईयां रोक नहीं पाई. कोरोना काल में भी शिक्षा का दीपक लेकर बगड़मारा के बच्चों का जीवन रोशन करने में तिलोत्तम कटरे लगी हुई है.

  • राष्ट्रनिर्माण के लिए बच्चों को योग्य बनाना आवश्यक- शिक्षिका

शिक्षिका तिलोत्तमा कटरे ने कहा कि सरकारी स्कूलों में ज्यादातर गरीब घरों के बच्चे पढ़ते हैं. इन बच्चों में प्रायवेट स्कूलों के बच्चों के लिए हीन भावना भी जन्म लेती है. क्योंकि विभिन्न तरह के अभावग्रस्त जिंदगी ये जीते हैं. इन बच्चों का कॉन्फिडेंस लेवल बढ़ाने के लिए क्लासरुम को ऐसा तैयार किया है. शिक्षिका ने यह भी कहा कि राष्ट्रनिर्माण के लिए बच्चों को योग्य बनाना भी आवश्यक है, इसके लिए केंद्रित होकर प्रयास किए जा रहे हैं. आज के बच्चे कल के भविष्य है, इन्ही में से कोई डॉक्टर, इंजीनियर, तो कोई राजनेता बन देश के सर्वांगीण विकास में अपनी महती भूमिका अदा करेगा. इसलिए इनके शैक्षणिक स्तर को बेहतर बनाने को लेकर वे कृतसंकल्पित है.

बालाघाट। राष्ट्र की प्रगति और सामाजिक स्वतंत्रता में शिक्षित महिलाओं की भूमिका उतनी ही अहम है, जितनी कि पुरुषों की. इतिहास इस बात का प्रमाण है कि जब-जब नारी ने आगे बढ़कर अपनी बात सही तरीके से रखी है, समाज और राष्ट्र ने उसे पूरा सम्मान दिया है. आज समाज में लैंगिक समानता को प्राथमिकता देने से भी लोगों की सोच में भारी बदलाव आया है. आधिकारिक तौर पर भी अब नारी को पुरुष से कमतर नहीं आंका जाता. यही कारण है कि महिलाएं पहले से अधिक सशक्त और आत्मनिर्भर हुई हैं. अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर आज हम आपको ऐसी ही निष्ठावान और कर्तव्यपरायण एक शिक्षिका के जोश, जुनुज और जज्बे से वाकिफ करवा रहे है, जिसने सरकारी स्कूल की परिभाषा को ही बदलकर रख दिया.

बालाघाट जिले में एक ऐसा स्कूल है, जो मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र सीमा पर स्थित रजेगांव के समीप लगा हुए बगड़मारा गांव में है. जहां पर शिक्षिका तिलोत्तमा कटरे ने ऐसा ही कमाल कोरोना काल में भी कर दिखाया है. सुबह से शाम और रात तक इनके जीवन का सिर्फ एक ही उद्देश्य और एक ही लक्ष्य है. सिर्फ अपने स्कूल के बच्चों का सर्वांगीण विकास. यहां शिक्षिका के संबंध में वह बात कही जा सकती है जो फिल्म दंगल में महावीर फोगाट के रोल में आमिर खान के स्वरों में दिखाया गया कि 'म्हारी बेटियां छोरों से कम है के' ठीक उसी अंदाज में शिक्षिका तिलोत्तमा कटरे के लिए कहा जा सकता है कि, 'उनके स्कूल के बच्चे प्रायवेट स्कूलों से कम है के'.

बदल दी क्लास रूम की तस्वीर
  • स्कूल के उत्थान में लगाए वेतन के पैसे

तीन वर्षों से बगड़मारा स्कूल में पदस्थ तिलोत्तमा कटरे ने पहले अपने वेतन के पचास हजार रुपए लगाकर स्कूल भवन की मरम्मत करवाई, और उसे आकर्षक स्वरुप देने का प्रयास किया. वहीं जब कोरोना काल में स्कूलों में बच्चों का आना बंद करवा दिया गया. तब भी तिलोत्तमा कटरे ने प्रयास जारी रखे, अपने क्लासरुम को विविध साजो सामान से सजाते हुए लगभाग पचास हजार रुपए दोबारा अपने वेतन से खर्च कर स्कूल का स्वरुप बदल दिया.

जुबां नहीं फिर भी गौरांशी का हुनर बोलता है, बैडमिंटन कोर्ट में कर देती है सबकी बोलती बंद

  • मोहल्ला क्लासेस लेकर पढ़ा रही शिक्षिका

जहां छोटे बच्चों की पढ़ाई के लिए शासन द्वारा मोहल्ला क्लासेस और घर जाकर बच्चों को पढ़ाने की गाइडलाइन तैयार की, तो तिलोत्तम कटरे बगड़मारा पहुंचकर प्रतिदिन बच्चों को पढ़ाती है. तिलोत्तमा का कुछ महीनों पूर्व दुर्घटना में पैर टूट गया था. तब भी पैर में दर्द और चलने फिरने में तकलीफ होने के बाद भी कदमों को कठिनाईयां रोक नहीं पाई. कोरोना काल में भी शिक्षा का दीपक लेकर बगड़मारा के बच्चों का जीवन रोशन करने में तिलोत्तम कटरे लगी हुई है.

  • राष्ट्रनिर्माण के लिए बच्चों को योग्य बनाना आवश्यक- शिक्षिका

शिक्षिका तिलोत्तमा कटरे ने कहा कि सरकारी स्कूलों में ज्यादातर गरीब घरों के बच्चे पढ़ते हैं. इन बच्चों में प्रायवेट स्कूलों के बच्चों के लिए हीन भावना भी जन्म लेती है. क्योंकि विभिन्न तरह के अभावग्रस्त जिंदगी ये जीते हैं. इन बच्चों का कॉन्फिडेंस लेवल बढ़ाने के लिए क्लासरुम को ऐसा तैयार किया है. शिक्षिका ने यह भी कहा कि राष्ट्रनिर्माण के लिए बच्चों को योग्य बनाना भी आवश्यक है, इसके लिए केंद्रित होकर प्रयास किए जा रहे हैं. आज के बच्चे कल के भविष्य है, इन्ही में से कोई डॉक्टर, इंजीनियर, तो कोई राजनेता बन देश के सर्वांगीण विकास में अपनी महती भूमिका अदा करेगा. इसलिए इनके शैक्षणिक स्तर को बेहतर बनाने को लेकर वे कृतसंकल्पित है.

Last Updated : Mar 8, 2021, 9:33 AM IST
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