बालाघाट। बालाघाट से मण्डला मार्ग पर मगरदर्रा ग्राम के समीप एक पहाड़ी पर इस समय नवरात्रि का आयोजन किया जा रहा है. यहां पर पारम्परिक तरीके से भक्ति भाव के साथ पूजा आराधना करते हुए नवरात्रि का पर्व मनाया जा रहा है. आदिवासी बाहुल्य इस वनांचल क्षेत्र में मगरदर्रा ग्राम के समीप मांडवगढ़ की पहाड़ी पर विराजी माता महामाया की क्या महिमा है, लोग यहां किस तरह से भक्ति की आराधना करते है, और इस धार्मिक स्थल को लेकर यहां के क्षेत्रजनों में किस तरह की मान्यताये हैं, देखिए ईटीवी भारत ग्राउंड रिपोर्ट. (Navaratri 2022)
3 हजार फीट की ऊंचाई पर है मां का दरबार: मांडवगढ़ पहाड़ी पर तकरीबन 3 हजार फीट की ऊंचाई पर महामाया देवी का दरबार है. यहां पर आदिवासी समुदाय सहित अन्य लोगों के द्वारा मिलजुलकर नवरात्रि का पर्व मनाया जाता है. घने जंगलों के बीच, पथरीले रास्तों से होकर लंबी चढ़ाई चढ़ने के बाद मातारानी का दरबार आता है. आदिवासी वनांचल क्षेत्र होने के कारण यहां पर आज भी सुविधाओं का अभाव बना हुआ है. हालांकि इसी क्षेत्र से आदिवासी समुदाय के विधायक दरबू सिंह उइके के द्वारा बिजली की व्यवस्था की गई. लेकिन उसके बाद से किसी तरह की सुध नहीं लिए जाने के कारण यहां सुविधाओं का अभाव बना हुआ है. बावजूद इसके दूर दूर से श्रद्धालुओं का तांता यहां लगा रहता है. सीढ़ीयों के अभाव में पत्थरों को पकड़ कर श्रद्धालु इस कठिन डगर को पार कर दरबार में हाजरी लगाने पहुचते हैं. (mahamaya devi temple on mandavgarh hill)
ये है मान्यता: घने जंगलों के बीच पथरीले रास्तों से होकर इतनी ऊंचाई पर पहाड़ी में बसे इस प्राचीन धार्मिक स्थल की मान्यता के बारे में आदिवासी समुदाय का कहना है कि, प्राचीन काल से उनके बुजुर्गों के द्वारा यहां देवी की पूजा आराधना परम्परागत रूप से की जाती रही है, जो आज भी प्रचलित है. (mandavgarh hill in Balaghat)
देवी को प्रसन्न करने के लिए करते थे शैला नृत्य: आदिवासी समुदाय के अनुसार उनकी मान्यता है कि, पहले जब कभी बारिश नहीं होती थी तो ग्राम के बुजुर्ग यहां पर आकर देवी को प्रसन्न करने के लिए पारम्परिक शैला नृत्य किया करते थे. शैला नृत्य आदिवासियों का पारम्परिक नृत्य है. साथ ही रामायण का पाठ भी यहां करते थे, जिससे बारिश हो जाती थी. हालांकि उस समय यहां पर किसी भी प्रकार का मंदिर नहीं था. फिर भी घने जंगलों के बीच पहाड़ी के दुर्गम स्थल पर आकर आदिवासी समुदाय के बुजुर्ग यहां पूजा आराधना पारम्परिक तरीके से करते आए हैं, जो आज भी जारी है.
बाद में प्रकट हुई मूर्ति: लोगों के बताए अनुसार किसी आदिवासी को स्वप्न में माता ने दर्शन दिए और बताया कि मांडवगढ़ पहाड़ी पर माता स्वयं विराजमान हुई है, जिसकी लोगों ने बताए अनुसार खोज की तो वहां पर प्रतिमा मिली. इसकी स्थापना के बाद मंदिर निर्माण कर स्थल को भव्यता प्रदान की गई. तब से लगातार यहां पर आयोजन किया जा रहा है, और भारी संख्या में दूर दूर से श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है. (balaghat mahamaya devi temple)