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ये कैसी मजबूरी? दो वक्त की रोटी के लिए ब्रेड बेच रहे मासूम

बालाघाट से मानवता को झकझोर देने वाली एक तस्वीर सामने आई है. जहां पेट की आग शांत करने दो मासूम शहर की सड़कों पर ब्रेड बेचने के लिए मजबूर है. लॉकडाउन के चलते ब्रेड बेचकर घर का राशन जुटाने की कवायद में जूटे हुए है. मामले की जानकारी लगने पर कलेक्टर ने कहा है कि हम सभी की मदद करेंगे.

Innocents selling bread for two days' bread
दो वक्त की रोटी के लिए ब्रेड बेच रहे मासूम
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Published : May 8, 2021, 3:37 PM IST

बालाघाट। भूखें रहने पर पेट की आग कुछ भी करने पर मजबूर कर देती है, हालात कोरोना कर्फ्यू और लाॅकडाउन के हो तो मनोदशा कुछ और ही होती है. आज हम आपको उन बच्चों से परिचय करा रहे है, जिन्होंने भूख की तड़प महसूस की और इसी भूख ने इन्हें पढ़ने-लिखने की उम्र में ब्रेड बेचने पर मजबूर कर दिया. शहर के समीपस्थ ग्राम आलेझरी के रहने वाले यह दोनों भाई शहर की सड़कों पर ब्रेड बेचते है. घर के हालात और इनकी पीड़ा जब सुनी तो मन सिहर उठा.

दो वक्त की रोटी के लिए ब्रेड बेच रहे मासूम
  • साइकल पर ब्रेड बेचने को मजबूर है दोनों भाई

बालाघाट शहर की सड़कों पर जब सन्नाटा है और व्यापार, दुकानों के शटर जब बंद है, तो आलेझरी के रहने वाले धनपाल और अंकपाल यह दोनों भाई इस उम्मीद में ब्रेड बेचने निकल पड़ते है, कि शायद इसे बेचकर वह अपने घर में राशन लेकर जाएंगे और पेट में लगी भूख की आग को शांत करेंगे. कोरोना महामारी ऐसे-ऐसे चेहरों से रूबरू करवा रही है, जो समाज के भीतर ना जाने कैसे हालात में गुजर-बसर कर रहे है. यही कुछ कहानी इन दोनों भाईयों की भी है. साईकिल पर ब्रेड का थैला लेकर घुमते हुए ब्रेड बेचने के पीछे इनके घर के हालात जिम्मेदार है, पिता नहीं है घर में केवल मां है और जब कोरोना संकट ने भूखमरी के हालात पैदा किए तो इन्हें ब्रेड बेचने के अलावा और कुछ नहीं सूझा और साइकिल उठाकर शहर की ओर निकल पड़े.

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  • एक वक्त की रोटी के लिए करते है काम

धनपाल ने बताया कि ब्रेड बेचने के लिए शहर इसलिए आते है कि घर में अनाज नहीं है और ब्रेड बेचकर जो भी रुपए मिलते है, वही इनके एक वक्त की रोटी के लिए काम आते है. चावल-दाल और तेल जो भी जरूरत की चीजें है, वह खरीदकर घर लेकर जाते है. उन्होंने बताया कि घर में मां है, जो कमाती थी लेकिन तालाबंदी ने यह सहारा भी छीन लिया.

  • स्कूल में पढ़ते है दोनों भाई

धनपाल 9 वीं कक्षा में है, और उसका भाई भी उसी स्कूल में पढ़ता है. जिन हाथों में किताबें होनी चाहिए आज हालात की मजबूरी ने उन्हें ब्रेड बेचने पर मजबूर कर दिया. यह हमारे समाज का हिस्सा है और धनपाल जैसी ना जाने कितनी कहानियां लाॅकडाउन की खामोशी के बीच सुनसान सड़कों में मदद की आस लिए भटक रही है, इनकी हमसे मुलाकात हो गई, लेकिन अब भी कई ऐसे चेहरें है जो पर्दे के पीछे है समाज की दुष्वारियों को बर्दाश्त कर रहे है और आर्थिक संकटों के बीच इनके हालात झकझोर देते है.

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  • प्रशासन करेगा हर संभव मदद

इस मामले पर कलेक्टर दीपक आर्य का कहना रहा कि भरवेली टोला सहित कुछ गावों में राशन दिलाया गया है और अगर कोई ऐसे जरूरतमंद मिलते है, तो प्रशासन को सूचित किया जा सकता है, हम उन्हें राशन और भोजन पहुंचाने में पूरी मदद करेंगे.

बालाघाट। भूखें रहने पर पेट की आग कुछ भी करने पर मजबूर कर देती है, हालात कोरोना कर्फ्यू और लाॅकडाउन के हो तो मनोदशा कुछ और ही होती है. आज हम आपको उन बच्चों से परिचय करा रहे है, जिन्होंने भूख की तड़प महसूस की और इसी भूख ने इन्हें पढ़ने-लिखने की उम्र में ब्रेड बेचने पर मजबूर कर दिया. शहर के समीपस्थ ग्राम आलेझरी के रहने वाले यह दोनों भाई शहर की सड़कों पर ब्रेड बेचते है. घर के हालात और इनकी पीड़ा जब सुनी तो मन सिहर उठा.

दो वक्त की रोटी के लिए ब्रेड बेच रहे मासूम
  • साइकल पर ब्रेड बेचने को मजबूर है दोनों भाई

बालाघाट शहर की सड़कों पर जब सन्नाटा है और व्यापार, दुकानों के शटर जब बंद है, तो आलेझरी के रहने वाले धनपाल और अंकपाल यह दोनों भाई इस उम्मीद में ब्रेड बेचने निकल पड़ते है, कि शायद इसे बेचकर वह अपने घर में राशन लेकर जाएंगे और पेट में लगी भूख की आग को शांत करेंगे. कोरोना महामारी ऐसे-ऐसे चेहरों से रूबरू करवा रही है, जो समाज के भीतर ना जाने कैसे हालात में गुजर-बसर कर रहे है. यही कुछ कहानी इन दोनों भाईयों की भी है. साईकिल पर ब्रेड का थैला लेकर घुमते हुए ब्रेड बेचने के पीछे इनके घर के हालात जिम्मेदार है, पिता नहीं है घर में केवल मां है और जब कोरोना संकट ने भूखमरी के हालात पैदा किए तो इन्हें ब्रेड बेचने के अलावा और कुछ नहीं सूझा और साइकिल उठाकर शहर की ओर निकल पड़े.

कोरोना महामारी के बीच भुखमरी की कगार पर मटका व्यापारी

  • एक वक्त की रोटी के लिए करते है काम

धनपाल ने बताया कि ब्रेड बेचने के लिए शहर इसलिए आते है कि घर में अनाज नहीं है और ब्रेड बेचकर जो भी रुपए मिलते है, वही इनके एक वक्त की रोटी के लिए काम आते है. चावल-दाल और तेल जो भी जरूरत की चीजें है, वह खरीदकर घर लेकर जाते है. उन्होंने बताया कि घर में मां है, जो कमाती थी लेकिन तालाबंदी ने यह सहारा भी छीन लिया.

  • स्कूल में पढ़ते है दोनों भाई

धनपाल 9 वीं कक्षा में है, और उसका भाई भी उसी स्कूल में पढ़ता है. जिन हाथों में किताबें होनी चाहिए आज हालात की मजबूरी ने उन्हें ब्रेड बेचने पर मजबूर कर दिया. यह हमारे समाज का हिस्सा है और धनपाल जैसी ना जाने कितनी कहानियां लाॅकडाउन की खामोशी के बीच सुनसान सड़कों में मदद की आस लिए भटक रही है, इनकी हमसे मुलाकात हो गई, लेकिन अब भी कई ऐसे चेहरें है जो पर्दे के पीछे है समाज की दुष्वारियों को बर्दाश्त कर रहे है और आर्थिक संकटों के बीच इनके हालात झकझोर देते है.

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  • प्रशासन करेगा हर संभव मदद

इस मामले पर कलेक्टर दीपक आर्य का कहना रहा कि भरवेली टोला सहित कुछ गावों में राशन दिलाया गया है और अगर कोई ऐसे जरूरतमंद मिलते है, तो प्रशासन को सूचित किया जा सकता है, हम उन्हें राशन और भोजन पहुंचाने में पूरी मदद करेंगे.

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