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रानी मणिमाला ने 1600 महिलाओं के साथ किया था जौहर, जानें खूनी दरवाजे की कहानी

बाबर के द्वारा किए गए नरसंहार के 500 वर्ष गुजर जाने के बाद भी चंदेरी किले के पास बने जौहर कुंड पर प्रत्येक सुबह कोहरे की धुंध महारानी मणि माला की जौहर की याद को जीवंत कर देती हैं. (history of Chanderi Fort)

history of khooni darwaja
खूनी दरवाजे का इतिहास
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Published : Feb 4, 2022, 3:03 PM IST

अशोकनगर। वैभवशाली शोर्य पूर्ण जिले की इतिहास ऐतिहासिक नगरी चंदेरी का भी रहा है. जिसे चंदेरी के लोगों और इतिहासकारों ने ज्यादा महत्व न देते हुए वीरांगनाओं के जौहर को भुला ही दिया है. बर्बर आक्रांता बाबर के द्वारा किए गए नरसंहार के 500 वर्ष गुजर जाने के बाद भी चंदेरी किले के पास बने जौहर कुंड पर प्रत्येक सुबह कोहरे की धुंध महारानी मणि माला की जौहर की याद को जीवंत कर देती है. (history of chandari fort)

खूनी दरवाजे का इतिहास

1528 में बाबर ने किया था हमला
चंदेरी के इतिहास में 29 जनवरी सन 1528 के दिन बर्बर आक्रांता बाबर द्वारा अपनी सेना के साथ मालवा का प्रवेश द्वार कही जाने वाली चंदेरी पर आक्रमण किया था. उस समय के तत्कालीन राजा मेदिनी राय की सेना बाबर की सेना के आगे काफी कम थी. उस वक्त बहादुरी से अपने साम्राज्य की रक्षा करते हुए हार गई. जैसे ही राजा मेदिनी राय की हारने की सूचना उनकी रानी मणिमाला तक पहुंची, तो उन्होंने अपने सतित्व की रक्षा के लिए महल के पास बने ताल में सोलह सौ राजपूत वीरांगनाओं के साथ मय बच्चों ने अग्नि स्नान कर अपनी रक्षा की. (ashoknagar Jauhar kund)

1588 में बनवाया था जौहर स्मारक
वीरांगनाओं की याद में ग्वालियर के पुरातत्व विभाग ने श्रीमंत सदाशिव राव पवार होम मेंबर के कहने पर विक्रम संवत् 1588 में ग्वालियर नरेश जीवाजी राव शिंदे आलीजाह बहादुर के शासनकाल में एक जौहर स्मारक बनाया. इस स्मारक के अंदर एक पत्थर लगाया गया, जिसमें 29 जनवरी सन 1528 की यादें यादें ताजा करती हुई आकृति बनाई गई, जिसमें की सबसे नीचे रानियों का जोहर मध्य में बाबर और मेदिनी राय की सेना का युद्ध और सबसे ऊपर स्वर्ग में राजा और रानी का भगवान शिव का पूजन करते हुए चित्रण किया गया है. (babar attack on medini rai in ashoknagar)

MP के तीन स्थानों का नाम बदला: होशंगाबाद को अब नर्मदापुरम, शिवपुरी को कुंडेश्वर धाम और बाबई को माखन नगर के नाम से जाना जाएगा

किले परिसर तक पहुंचने के लिए दो बड़े-बड़े दरवाजे बने हुए हैं. उन्हें खूनी दरवाजा के नाम से पहचाना जाता है. उस समय इतना नरसंहार हुआ कि इन दरवाजों से खून की धारा बह निकली. इस कारण इसे खूनी दरवाजा भी कहा जाने लगा. इसके बाद वर्ष 2005 में पुरातत्व विभाग द्वारा इसके चारों तरफ सौंदर्यीकरण कराकर कैक्टस के पौधे लगाए गए. कैक्टस के पौधे लगाने के पीछे भी तर्क यह था कि यह कटीले पौधे उस समय की हृदय विदारक घटना क्रम की यादें जीवित रखने में सहायक होंगे.

अशोकनगर। वैभवशाली शोर्य पूर्ण जिले की इतिहास ऐतिहासिक नगरी चंदेरी का भी रहा है. जिसे चंदेरी के लोगों और इतिहासकारों ने ज्यादा महत्व न देते हुए वीरांगनाओं के जौहर को भुला ही दिया है. बर्बर आक्रांता बाबर के द्वारा किए गए नरसंहार के 500 वर्ष गुजर जाने के बाद भी चंदेरी किले के पास बने जौहर कुंड पर प्रत्येक सुबह कोहरे की धुंध महारानी मणि माला की जौहर की याद को जीवंत कर देती है. (history of chandari fort)

खूनी दरवाजे का इतिहास

1528 में बाबर ने किया था हमला
चंदेरी के इतिहास में 29 जनवरी सन 1528 के दिन बर्बर आक्रांता बाबर द्वारा अपनी सेना के साथ मालवा का प्रवेश द्वार कही जाने वाली चंदेरी पर आक्रमण किया था. उस समय के तत्कालीन राजा मेदिनी राय की सेना बाबर की सेना के आगे काफी कम थी. उस वक्त बहादुरी से अपने साम्राज्य की रक्षा करते हुए हार गई. जैसे ही राजा मेदिनी राय की हारने की सूचना उनकी रानी मणिमाला तक पहुंची, तो उन्होंने अपने सतित्व की रक्षा के लिए महल के पास बने ताल में सोलह सौ राजपूत वीरांगनाओं के साथ मय बच्चों ने अग्नि स्नान कर अपनी रक्षा की. (ashoknagar Jauhar kund)

1588 में बनवाया था जौहर स्मारक
वीरांगनाओं की याद में ग्वालियर के पुरातत्व विभाग ने श्रीमंत सदाशिव राव पवार होम मेंबर के कहने पर विक्रम संवत् 1588 में ग्वालियर नरेश जीवाजी राव शिंदे आलीजाह बहादुर के शासनकाल में एक जौहर स्मारक बनाया. इस स्मारक के अंदर एक पत्थर लगाया गया, जिसमें 29 जनवरी सन 1528 की यादें यादें ताजा करती हुई आकृति बनाई गई, जिसमें की सबसे नीचे रानियों का जोहर मध्य में बाबर और मेदिनी राय की सेना का युद्ध और सबसे ऊपर स्वर्ग में राजा और रानी का भगवान शिव का पूजन करते हुए चित्रण किया गया है. (babar attack on medini rai in ashoknagar)

MP के तीन स्थानों का नाम बदला: होशंगाबाद को अब नर्मदापुरम, शिवपुरी को कुंडेश्वर धाम और बाबई को माखन नगर के नाम से जाना जाएगा

किले परिसर तक पहुंचने के लिए दो बड़े-बड़े दरवाजे बने हुए हैं. उन्हें खूनी दरवाजा के नाम से पहचाना जाता है. उस समय इतना नरसंहार हुआ कि इन दरवाजों से खून की धारा बह निकली. इस कारण इसे खूनी दरवाजा भी कहा जाने लगा. इसके बाद वर्ष 2005 में पुरातत्व विभाग द्वारा इसके चारों तरफ सौंदर्यीकरण कराकर कैक्टस के पौधे लगाए गए. कैक्टस के पौधे लगाने के पीछे भी तर्क यह था कि यह कटीले पौधे उस समय की हृदय विदारक घटना क्रम की यादें जीवित रखने में सहायक होंगे.

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