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आमों की मल्लिका Noor Jahan की चमक पड़ी फीकी, अलीराजपुर में बचे मात्र इतने पेड़

अपने वजन के चलते 'आमों की मल्लिका' के रूप में मशहूर 'नूरजहां' किस्म के स्वाद के शौकीनों को बता दें कि अब अलीराजपुर में इसके सिर्फ 8 पेड़ बचे हैं. इस साल हो रही बेमौसम बारिश की वजह से इस फल पर काफी असर पड़ सकता है.

noor jahan mango 39 shine faded
नूरजहां आम 39 की चमक फीकी
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Published : Apr 10, 2023, 12:09 PM IST

Updated : Apr 10, 2023, 12:22 PM IST

अलीराजपुर/पीटीआई। मध्य प्रदेश के आदिवासी बहुल अलीराजपुर जिले के कट्ठीवाड़ा क्षेत्र का दुर्लभ नूरजहां आम इन दिनों अपनी बेनूरी पर आंसू बहा रहा है. अपने भारी-भरकम फलों के चलते मुंह मांगे दामों पर बिकने वाला नूरजहां आम इंदौर से करीब 250 किलोमीटर दूर कट्ठीवाड़ा क्षेत्र में ही पाया जाता है. कट्ठीवाड़ा में नूरजहां आम का रकबा साल-दर-साल सिकुड़ता जा रहा है, आलम यह है कि क्षेत्र में इसके महज 8 फलदार पेड़ बचे हैं.

नूरजहां आम की चमक पड़ी फीकी: अलीराजपुर के कृषि विज्ञान केंद्र के प्रमुख डॉ.आरके यादव ने बताया कि "कट्ठीवाड़ा क्षेत्र के निजी बागों में नूरजहां आम के सिर्फ 8 फलदार पेड़ बचे हैं. यह हमारे लिए निश्चित तौर पर चिंता का विषय है. कुछ दशक पहले नूरजहां आम का अधिकतम वजन 4.5 किलोग्राम तक हुआ करता था, जो अब घटकर 3.5 किलोग्राम के आसपास रह गया है. हम नूरजहां आम को आने वाली पीढ़ियों के लिए बचाना चाहते हैं, हमने कलम के जरिए इसके 2 पेड़ लगाए हैं, जिन पर तीन-चार साल में फल आने की उम्मीद है. इसके बाद हम और कलम तैयार कर पेड़ों का रकबा बढ़ाएंगे." उन्होंने बताया कि नूरजहां का फल आकार में बहुत बड़ा होता है, लेकिन आमों की अन्य किस्मों की तुलना में इसका स्वाद उतना अच्छा नहीं है.

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सोने की खान से कम नहीं नूरजहां आम: वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक ने कहा कि "हम अनुसंधान के जरिए नूरजहां की किस्म में सुधार कर इसका स्वाद भी बढ़ाना चाहते हैं. चूंकि, नूरजहां आम में काफी गूदा होता है इसी वजह से खाद्य प्रसंस्करण उद्योग में इसके इस्तेमाल की अच्छी संभावनाएं हैं. कट्ठीवाड़ा क्षेत्र की नम जलवायु और मुरम वाली मिट्टी नूरजहां आम की बागवानी के लिए बेहद मुफीद है. इस इलाके में पैदा होने वाले अन्य प्रजातियों के आमों का वजन भी देश के दूसरे हिस्सों में पैदा होने वाले आमों के मुकाबले ज्यादा रहता है. आमों के मौसम में कट्ठीवाड़ा क्षेत्र की मंडी में हर रोज अलग-अलग किस्म के 80 से 100 टन आम बिकने आते हैं."

अब बचे केवल 8 पेड़: कट्ठीवाड़ा नूरजहां की बागवानी के लिए खासतौर पर पहचाना जाता है. इसके पेड़ आम उत्पादकों के लिए सोने की खान साबित होते आए हैं. कट्ठीवाड़ा के अग्रणी आम उत्पादक शिवराज सिंह जाधव ने कहा कि "पिछले साल बाग में नूरजहां के सबसे भारी फल का वजन 3.8 किलोग्राम था और इस 1 फल को मैंने 2 हजार रुपए में बेचा था." बरसों से आमों की बागवानी कर रहे इशाक मंसूरी बताते हैं कि "नूरजहां आम की प्रजाति मौसमी उतार-चढ़ाव के प्रति बेहद संवेदनशील होती है. इस बार बेमौसम बारिश और ओलावृष्टि ने हमारे बाग में नूरजहां की बौरों को तबाह कर दिया है. मंसूरी ने बताया कि नूरजहां के पेड़ों पर जनवरी से बौर आने शुरू होते हैं और इसके फल जून तक पककर तैयार हो जाते हैं.

अलीराजपुर/पीटीआई। मध्य प्रदेश के आदिवासी बहुल अलीराजपुर जिले के कट्ठीवाड़ा क्षेत्र का दुर्लभ नूरजहां आम इन दिनों अपनी बेनूरी पर आंसू बहा रहा है. अपने भारी-भरकम फलों के चलते मुंह मांगे दामों पर बिकने वाला नूरजहां आम इंदौर से करीब 250 किलोमीटर दूर कट्ठीवाड़ा क्षेत्र में ही पाया जाता है. कट्ठीवाड़ा में नूरजहां आम का रकबा साल-दर-साल सिकुड़ता जा रहा है, आलम यह है कि क्षेत्र में इसके महज 8 फलदार पेड़ बचे हैं.

नूरजहां आम की चमक पड़ी फीकी: अलीराजपुर के कृषि विज्ञान केंद्र के प्रमुख डॉ.आरके यादव ने बताया कि "कट्ठीवाड़ा क्षेत्र के निजी बागों में नूरजहां आम के सिर्फ 8 फलदार पेड़ बचे हैं. यह हमारे लिए निश्चित तौर पर चिंता का विषय है. कुछ दशक पहले नूरजहां आम का अधिकतम वजन 4.5 किलोग्राम तक हुआ करता था, जो अब घटकर 3.5 किलोग्राम के आसपास रह गया है. हम नूरजहां आम को आने वाली पीढ़ियों के लिए बचाना चाहते हैं, हमने कलम के जरिए इसके 2 पेड़ लगाए हैं, जिन पर तीन-चार साल में फल आने की उम्मीद है. इसके बाद हम और कलम तैयार कर पेड़ों का रकबा बढ़ाएंगे." उन्होंने बताया कि नूरजहां का फल आकार में बहुत बड़ा होता है, लेकिन आमों की अन्य किस्मों की तुलना में इसका स्वाद उतना अच्छा नहीं है.

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सोने की खान से कम नहीं नूरजहां आम: वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक ने कहा कि "हम अनुसंधान के जरिए नूरजहां की किस्म में सुधार कर इसका स्वाद भी बढ़ाना चाहते हैं. चूंकि, नूरजहां आम में काफी गूदा होता है इसी वजह से खाद्य प्रसंस्करण उद्योग में इसके इस्तेमाल की अच्छी संभावनाएं हैं. कट्ठीवाड़ा क्षेत्र की नम जलवायु और मुरम वाली मिट्टी नूरजहां आम की बागवानी के लिए बेहद मुफीद है. इस इलाके में पैदा होने वाले अन्य प्रजातियों के आमों का वजन भी देश के दूसरे हिस्सों में पैदा होने वाले आमों के मुकाबले ज्यादा रहता है. आमों के मौसम में कट्ठीवाड़ा क्षेत्र की मंडी में हर रोज अलग-अलग किस्म के 80 से 100 टन आम बिकने आते हैं."

अब बचे केवल 8 पेड़: कट्ठीवाड़ा नूरजहां की बागवानी के लिए खासतौर पर पहचाना जाता है. इसके पेड़ आम उत्पादकों के लिए सोने की खान साबित होते आए हैं. कट्ठीवाड़ा के अग्रणी आम उत्पादक शिवराज सिंह जाधव ने कहा कि "पिछले साल बाग में नूरजहां के सबसे भारी फल का वजन 3.8 किलोग्राम था और इस 1 फल को मैंने 2 हजार रुपए में बेचा था." बरसों से आमों की बागवानी कर रहे इशाक मंसूरी बताते हैं कि "नूरजहां आम की प्रजाति मौसमी उतार-चढ़ाव के प्रति बेहद संवेदनशील होती है. इस बार बेमौसम बारिश और ओलावृष्टि ने हमारे बाग में नूरजहां की बौरों को तबाह कर दिया है. मंसूरी ने बताया कि नूरजहां के पेड़ों पर जनवरी से बौर आने शुरू होते हैं और इसके फल जून तक पककर तैयार हो जाते हैं.

Last Updated : Apr 10, 2023, 12:22 PM IST
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