भोपाल। मार्गशीर्ष (अगहन मास) कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को उतपन्ना एकादशी है. उत्पन्ना एकादशी का सनातन धर्म में विशेष महत्व है. एक वर्ष में कुल 24 से 27 तक एकादशी हो सकती हैं जो अलग अलग नामों से जानी जाती हैं. इनमें से ही एक एकादशी विशेष होती है, जिससे आप एकादशी व्रत की शुरुआत कर सकते हैं. उत्पन्ना एकादशी (Utpanna Ekadashi 2022) का व्रत करने से व्यक्ति को एक हजार एकादशी का व्रत करने का पवित्र फल प्राप्त होता है, वहीं सभी प्रकार के पापों से मुक्ति के लिए भी इस एकादशी पर उपवास रखा जाता है. कहते हैं कि उत्पन्ना एकादशी भगवान विष्णु को समर्पित है. इस दिन भगवान विष्णु की सच्चे दिल से पूजा-अर्चना की जाए, तो जीवन की सभी समस्याएं दूर हो जाती हैं. घर में धन की कभी कमी नहीं रहती.
उत्पन्ना एकादशी की मान्यता: शास्त्रों में सभी व्रतों में एकादशी के व्रत को महत्वपूर्ण बताया गया है. उत्पन्ना एकादशी सबसे बड़ी एकादशी है. मान्यता है कि इस दिन माता एकादशी का जन्म हुआ था और माता एकादशी ने मुर नामक राक्षस का वध कर धरती को उसके अत्याचारों से मुक्त किया था. आपको बता दें माता एकादशी भगवान श्री हरि विष्णु (Lord Shri Hari Vishnu) की शक्ति का एक रूप हैं.माता एकादशी के जन्म के कारण एकादशी व्रत की शुरुआत करने के लिए यह उत्पन्ना एकादशी (Utpanna Ekadashi) श्रेष्ठ होती है. उतपन्ना एकादशी व्रत कथा में भगवान विष्णु जी ने कहा था कि, सूर्योदय के समय एकादशी तिथि फिर दिनभर द्वादशी और रात्रि के अंतिम प्रहर में त्रयोदशी तिथि का योग आता है. वो त्रिस्पर्शा उत्पन्ना एकादशी कहलाती है. उत्पन्ना एकादशी (utpanna ekadashi significance) के शुभ दिन में पुंसवन, सीमंतोन्नयन संस्कार व अन्य वैदिक संस्कारों का शुभ विधान है. इस एकादशी को बहुत पवित्र माना गया है. यह अगहन की एकादशी भी कहलाती है. वहीं, इस बार 20 नवंबर को एकादशी में त्रिपुष्कर योग भी बन रहा है. हस्त नक्षत्र, आयुष्मान योग बव तथा बालव करण और सौम्य नामक सुंदर संयोग में यह एकादशी परिलक्षित हो रही है.
ऐसे करें उत्पन्ना एकादशी व्रत: इस दिन प्रातः काल में सूर्योदय से पहले स्नान कर नवीन या साफ धुले हुए वस्त्र धारण करके व्रत का संकल्प लें. इसके बाद भगवान श्री हरि विष्णु (Shri Hari Vishnu) और माता एकादशी का पूजन किया जाता है. (utpanna ekadashi date time puja vidhi) इस दिन पीपल के पेड़ की भी पूजा कर उसकी जड़ में जल चढ़ाएं और घी का दीपक जलाएं. ऐसा करने से आपकी मनोकामनाएं जल्द ही पूर्ण होंगी और जीवन में सुख-समृद्धि की प्राप्ति होगी. इस दिन भगवान विष्णु के द्वादश अक्षर मंत्र महामंत्र ओम नमो भगवते वासुदेवाय का जाप करना चाहिए. विष्णु सहस्त्रनाम, श्री नारायण स्त्रोत (Vishnu Sahastranama, Shree Narayana stotra) आदि का भी पाठ करना शुभ माना गया है. पुरुष सूक्त, लक्ष्मी सूक्त का पाठ करना भी विशेष फल देता है. इस शुभ दिन ओम नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र का पाठ करना चाहिए. इस दिन पीले, सफेद आदि शुभ वस्त्रों को धारण करना चाहिए. भगवान श्री हरि विष्णु को पीले पुष्पों की माला आदि चढ़ाई जानी चाहिए. पूरी निष्ठा श्रद्धा और मनोयोग से उत्पन्ना एकादशी का व्रत करने पर अनेक यज्ञों के बराबर परिणाम प्राप्त होते हैं.
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सभी मनोकामना पूर्ण करेगा उत्पन्ना एकादशी व्रत: उत्पन्ना एकादशी का उपवास रखने से मोक्ष की प्राप्ति होती है. वहीं हजार अश्वमेध यज्ञ और सौ यज्ञ करने का पुण्य प्राप्त करता है, जो इस व्रत को करता है. साथ ही वह अपने पिता के वंश, माता के वंश और पत्नी के वंश के साथ विष्णु लोक में स्थापित होता है. उपवास समाप्त होने पर ब्राह्मण भोज करवाना चाहिए या इसके स्थान पर कुछ दान करना फलदायी रहता है. क्योंकि एकादशी का व्रत सभी मनोकामनाओं को पूर्ण करने वाला माना गया है.
उत्पन्ना है विशेष एकादशी: उत्पन्ना एकादशी का अपने आप में विशिष्ट महत्व माना गया है. इस व्रत को करने पर अनेक कन्यादान के बराबर के पुण्य फल का लाभ मिलता है और मनुष्य मोक्ष की प्राप्ति होती है. आज के दिन अनुशासित और संयमित होकर जीवन जीना चाहिए. यह व्रत अगहन मास में होने की वजह से बहुत ही पावन और कल्याणकारी माना गया है. मंगलवार (Tuesday) का शुभ दिन होने से शुभता का बोध होता है. मंगलवार का दिन होने की वजह से श्री हनुमान जी (Lord Hanuman ji) की भी आराधना करना श्रेष्ठ रहेगा.आज के दिन हनुमान चालीसा, बजरंग बाण, सुंदरकांड (Hanuman Chalisa, Bajrang Baan, Sunderkand) का भी पाठ करना चाहिए.
उतपन्ना एकादशी व्रत का मुहूर्त और पारण समय:
उत्पन्ना एकादशी तिथि प्रारंभ– 19 नवंबर, 2022 को सुबह 10:29 बजे से.
पारण का समय और तिथि– 20 नवंबर, 2022 को सुबह 10:41 बजे तक. (utpanna ekadashi shubh muhurat)
हरिवासर समाप्त होने का समय– पारण के दिन हरि वासर समाप्त होने का समय- सुबह 06:48 बजे से 08:56 बजे तक.
उत्पन्ना एकादशी व्रत पारण नियम: इस व्रत का पारण द्वादशी तिथि लगने के बाद किया जाता है और व्रत का पारण द्वादशी तिथि खत्म होने से पहले ही किया जाना चाहिए. यदि द्वादशी तिथि सूर्योदय से पहले खत्म हो गई है तो एकादशी व्रत का पारण सूर्योदय के बाद होगा.