आगर-मालवा। देवास संसदीय क्षेत्र के तहत आने वाले आगर शहर में रेलवे लाइन सबसे बड़ा चुनावी मुद्दा होता है. 1975 तक यहां नेरोगेज ट्रैन दौड़ा करती थी, जिसका टिकट घर आज भी आगर में मौजूद है लेकिन जनप्रतिनिधियों की अनदेखी के चलते आगर से यह सुविधा छिन गई. यही वजह है कि हर बार विधानसभा व लोकसभा चुनाव में यहां रेलवे सबसे बड़ा चुनावी मुद्दा होता है.
25 से अधिक से आगर में हर बार चुनाव में रेलवे लाइन सबसे बड़ा मुद्दा होता है, सालों से क्षेत्रवासी रेल की मांग कर रहे हैं लेकिन इतने सालों बाद भी यहां सर्वे के आलावा अबतक कुछ भी नहीं हुआ. इस बार भी रेल के नाम पर नेता वोट मांग रहे हैं. मतदाताओं का एक वर्ग है जो कि रेल की उपलब्धता ही क्षेत्र के विकास के लिए सबसे जरुरी मान रहे हैं. रेलवे लाइन को लेकर अब आगर के 500 से अधिक दुकानदारों ने अभियान चलाया है.
उज्जैन से आगर होते हुवे झालवाड़ा तक रेल लाइन का सर्वे भी कई बार करवाया जा चुका है, लेकिन इससे ज्यादा अब कुछ भी नहीं हुआ. 1996 से 2009 तक सांसद रहे थावरचंद गहलोत ने पूर्व से प्रस्तावित उज्जैन-रामगंज मंडी वाया आगर-सुसनेर रेल लाइन के लिए 1998 में सर्वे कार्य को मंजूरी दिलाई थी, लेकिन मंत्रालय की गाइड लाइन अनुसार रेट ऑफ रिटर्न कम होने से फ़ाइल ठंडे बस्ते में चली गई.
आगर में साईं संस्था के सतीश शास्त्री ने बताया कि रेल की मांग वर्षों पुरानी है. हर बार चुनाव के समय आश्वासन दिया जाता है. रेल की सौगात आज तक नहीं मिली है. शहर के 500 से अधिक दुकानदारों ने रेल की मांग का अलग तरीका अपनाया है. दुकानदारों ने अपनी दुकानों के बाहर रेल की मांग के बैनर लगाया गया है.