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आगर में 30 सालों से ये है सबसे बड़ा चुनावी मुद्दा, कब पूरी होगी मांग?

देवास संसदीय क्षेत्र में आने वाले आगर शहर में हर बार रेलवे लाइन का मुद्दा जोर पकड़ता है. इस बार भी शहर के दुकानदारों ने रेलवे की मांग के लिए अभियान चलाया है.

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Published : May 7, 2019, 3:34 PM IST

आगर में रेलवे लाइन के लिए दुकानदारों ने चलाया अभियान

आगर-मालवा। देवास संसदीय क्षेत्र के तहत आने वाले आगर शहर में रेलवे लाइन सबसे बड़ा चुनावी मुद्दा होता है. 1975 तक यहां नेरोगेज ट्रैन दौड़ा करती थी, जिसका टिकट घर आज भी आगर में मौजूद है लेकिन जनप्रतिनिधियों की अनदेखी के चलते आगर से यह सुविधा छिन गई. यही वजह है कि हर बार विधानसभा व लोकसभा चुनाव में यहां रेलवे सबसे बड़ा चुनावी मुद्दा होता है.

आगर के लोगों को पिछले 25 सालों से है रेल लाइन का इंतजार

25 से अधिक से आगर में हर बार चुनाव में रेलवे लाइन सबसे बड़ा मुद्दा होता है, सालों से क्षेत्रवासी रेल की मांग कर रहे हैं लेकिन इतने सालों बाद भी यहां सर्वे के आलावा अबतक कुछ भी नहीं हुआ. इस बार भी रेल के नाम पर नेता वोट मांग रहे हैं. मतदाताओं का एक वर्ग है जो कि रेल की उपलब्धता ही क्षेत्र के विकास के लिए सबसे जरुरी मान रहे हैं. रेलवे लाइन को लेकर अब आगर के 500 से अधिक दुकानदारों ने अभियान चलाया है.

उज्जैन से आगर होते हुवे झालवाड़ा तक रेल लाइन का सर्वे भी कई बार करवाया जा चुका है, लेकिन इससे ज्यादा अब कुछ भी नहीं हुआ. 1996 से 2009 तक सांसद रहे थावरचंद गहलोत ने पूर्व से प्रस्तावित उज्जैन-रामगंज मंडी वाया आगर-सुसनेर रेल लाइन के लिए 1998 में सर्वे कार्य को मंजूरी दिलाई थी, लेकिन मंत्रालय की गाइड लाइन अनुसार रेट ऑफ रिटर्न कम होने से फ़ाइल ठंडे बस्ते में चली गई.

आगर में साईं संस्था के सतीश शास्त्री ने बताया कि रेल की मांग वर्षों पुरानी है. हर बार चुनाव के समय आश्वासन दिया जाता है. रेल की सौगात आज तक नहीं मिली है. शहर के 500 से अधिक दुकानदारों ने रेल की मांग का अलग तरीका अपनाया है. दुकानदारों ने अपनी दुकानों के बाहर रेल की मांग के बैनर लगाया गया है.

आगर-मालवा। देवास संसदीय क्षेत्र के तहत आने वाले आगर शहर में रेलवे लाइन सबसे बड़ा चुनावी मुद्दा होता है. 1975 तक यहां नेरोगेज ट्रैन दौड़ा करती थी, जिसका टिकट घर आज भी आगर में मौजूद है लेकिन जनप्रतिनिधियों की अनदेखी के चलते आगर से यह सुविधा छिन गई. यही वजह है कि हर बार विधानसभा व लोकसभा चुनाव में यहां रेलवे सबसे बड़ा चुनावी मुद्दा होता है.

आगर के लोगों को पिछले 25 सालों से है रेल लाइन का इंतजार

25 से अधिक से आगर में हर बार चुनाव में रेलवे लाइन सबसे बड़ा मुद्दा होता है, सालों से क्षेत्रवासी रेल की मांग कर रहे हैं लेकिन इतने सालों बाद भी यहां सर्वे के आलावा अबतक कुछ भी नहीं हुआ. इस बार भी रेल के नाम पर नेता वोट मांग रहे हैं. मतदाताओं का एक वर्ग है जो कि रेल की उपलब्धता ही क्षेत्र के विकास के लिए सबसे जरुरी मान रहे हैं. रेलवे लाइन को लेकर अब आगर के 500 से अधिक दुकानदारों ने अभियान चलाया है.

उज्जैन से आगर होते हुवे झालवाड़ा तक रेल लाइन का सर्वे भी कई बार करवाया जा चुका है, लेकिन इससे ज्यादा अब कुछ भी नहीं हुआ. 1996 से 2009 तक सांसद रहे थावरचंद गहलोत ने पूर्व से प्रस्तावित उज्जैन-रामगंज मंडी वाया आगर-सुसनेर रेल लाइन के लिए 1998 में सर्वे कार्य को मंजूरी दिलाई थी, लेकिन मंत्रालय की गाइड लाइन अनुसार रेट ऑफ रिटर्न कम होने से फ़ाइल ठंडे बस्ते में चली गई.

आगर में साईं संस्था के सतीश शास्त्री ने बताया कि रेल की मांग वर्षों पुरानी है. हर बार चुनाव के समय आश्वासन दिया जाता है. रेल की सौगात आज तक नहीं मिली है. शहर के 500 से अधिक दुकानदारों ने रेल की मांग का अलग तरीका अपनाया है. दुकानदारों ने अपनी दुकानों के बाहर रेल की मांग के बैनर लगाया गया है.

Intro:आगर मालवा-- देवास संसदीय क्षेत्र में शामिल आगर विधानसभा में रेल हर बार सबसे बड़ा चुनावी मुद्दा रहता है। आजादी के बाद वर्ष 1975 तक यहां नेरोगेज ट्रैन दौड़ा करती थी लेकिन जनप्रतिनिधियों की अनदेखी के चलते आगर से यह सुविधा छीन गई आज भी टिकट घर यहां स्थापित है पिछले 25 से अधिक सालों से क्षेत्रवासी रेल की मांग कर रहे है लेकिन यहां धरातल पर इतने सालों से केवल रेल लाइन डालने के सर्वे की ही नौटंकी चल रही है। हर बार विधानसभा व लोकसभा चुनाव के समय नेताओ ने क्षेत्र की जनता से रेल के नाम पर ही वोट मांगे लेकिन जीत दर्ज करने कद बाद न तो सर्वे पूरा होता है और न ही दौड़ने की कोई आस दिखाई देती है। इस बार भी रेल के नाम पर नेता वोट मांग रहे है वही मतदाताओ का एक बड़ा समूह है जो कि रेल की उपलब्धता को ही क्षेत्र के विकास में सबसे जरूरी मानते है वो मतदाता अब खुलकर सामने भी आ रहे है। बता दे कि रेल की मांग को लेकर अब दुकानदारो ने आगर में हो रेल लाइन लिखे बैनर तक टांग। शहर के 500 से अधिक दुकानदारो ने इस प्रकार के बैनर अपनी दुकानो पर टांग रखे है।


Body:बता दे वर्ष 2103 में मप्र के 51 वे जिले के रूप में अस्तित्व में आने के बाद आगर में विधानसभा हो या लोकसभा हर बार रेल सबसे अहम मुद्दा होता है। नेता इस मुद्दे को भुनाते हुवे वोट भी बटोर लेते है लेकिन जितने के बाद केवल जनता से छल ही किया जाता है। बता दे कि पिछले दो दशक से रेल के नाम पर केवल सर्वे की नौटंकी जरूर की जा रही है उज्जैन से व्हाया आगर होते हुवे झालवाड़ तक रेल लाइन का सर्वे भी कई बार करवाया जा चुका है लेकिन जिम्मेदार परिणाम तक कभी पहुंचते ही नही है। केंद्र में ज्यादा समय काँग्रेस की सरकार रही हो लेकिन भाजपा का गढ़ होने के कारण यहां लोकसभा व विधानसभा अधिकांश बार भाजपा ही जीतती रही।1984 व 2009 के लोकसभा चुनाव को छोड़ दे तो बाकी समय लोकसभा चुनाव में भाजपा की ही जीत हुई। वर्ष 1996 से 2009 तक सांसद रहे थावरचंद गहलोत ने पूर्व से प्रस्तावित उज्जैन-रामगंज मंडी व्हाया आगर-सुसनेर रेल लाइन के लिए 1998 में सर्वे कार्य को मंजुरी दिलाई लेकिन मंत्रालय की गाइड लाइन अनुसार रेट ऑफ रिटर्न कम होने से फ़ाइल ठंडे बस्ते में चली गई। वर्ष 2009 में यहां से कांग्रेस के सज्जन सिंह वर्मा सांसद बने उन्होंने अपने कार्यकाल में सर्वे का पुनरीक्षण करवाया कोई हल नही निकल पाया। 2014 में भाजपा के मनोहर ऊंटवाल सांसद बने और केंद्र में सरकार भी भाजपा नेतृत्व की बनी चुनाव के पूर्व ऊंटवाल ने भी रेल लाने का वादा दोहराया था लेकिन क्षेत्रवासियों को रेल नसीब नही हुई।


Conclusion:साई संस्था के सतीश शास्त्री ने बताया कि रेल की मांग वर्षो पुरानी है हर बार चुनाव के समय आश्वासन दिया जाता है लेकिन रेल की सौगात आज तक नही मिली शहर के 500 से अधिक दुकानदारो ने रेल की मांग का अलग तरीका अपनाया है अपनी दुकानों के बाहर रेल की मांग के बैनर लगाया गया है।

बाइट- सतीश शास्त्री, सामाजिक कार्यकर्ता
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