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...तो संघ के भी खास हो जाएंगे सिंधिया ! आखिर क्यों 'संघम शरणम गच्छामि' हो रहे महाराज

जब से ज्योतिरादित्य सिंधिया ने बीजेपी का दामन थामा है, तब से ही लगातार उनकी सक्रियता संघ नेताओं के साथ भी नजर आने लगी है. जिस कारण अब राजनीतिक गलियारों में यह चर्चा तेजी से फैल रही है कि सिंधिया बीजेपी में पकड़ मजबूत करने के लिए संघम शरणम गच्छामि हो रहे हैं.

Scindia Sangham Sharanam Gachhami
सिंधिया संघम शरणम गच्छामि
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Published : Nov 24, 2020, 3:04 PM IST

भोपाल। राज्यसभा सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया ने भारतीय जनता पार्टी का दामन थामने के साथ ही अब संघ की शरण ले ली है. जबसे ज्योतिरादित्य सिंधिया ने बीजेपी का दामन थामा है, तब से ही लगातार उनकी सक्रियता संघ नेताओं के साथ भी नजर आने लगी है. हाल ही में भोपाल आए सिंधिया एयरपोर्ट से सीधे संघ कार्यलय पहुंचे थे. जिस कारण अब राजनीतिक गलियारों में यह चर्चा तेजी से फैल रही है कि सिंधिया बीजेपी में पकड़ मजबूत करने के लिए सिंधिया संघम शरणम गच्छामि हो रहे हैं.

सिंधिया संघम शरणम गच्छामि

मार्च 2020 में सिंधिया बीजेपी में शामिल हुए थे, उसके बाद सिंधिया ने संघ मुख्यालय नागपुर जाकर आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत से भी मुलाकात की थी और अब सिंधिया की संघ कार्यालय में जाकर पदाधिकारियों से मुलाकात करना एक परंपरा सी बन गई है. सिंधिया के संघ प्रेम को वर्तमान उपचुनाव के नतीजों से जोड़कर देखा जा रहा है.

ज्योतिरादित्य सिंधिया यह भली-भांति जानते हैं कि भारतीय जनता पार्टी संगठन और सरकार में कहीं ना कहीं अप्रत्यक्ष रूप से संघ की प्रमुख भूमिका होती है और अगर उन्हें सरकार के साथ-साथ संगठन में भी अपनी पकड़ मजबूत करनी है तो उसके लिए उन्हें संघ की शरण में जाना पड़ेगा. यही कारण है कि सिंधिया जब से बीजेपी में शामिल हुए हैं, तब से ही लगातार वह संघ कार्यालय जाकर संघ पदाधिकारियों से मुलाकात करते हैं.

ये भी पढ़ें- मध्यप्रदेश की सियासत में अचानक गाय की एंट्री के क्या हैं मायने ? शिवराज के मास्टर स्ट्रोक से कांग्रेस चित !

संघ की शरण में ही सिंधिया का कल्याण

सिंधिया के संघ प्रेम को लेकर कांग्रेस ने निशाना साधते हुए कहा कि सिंधिया को पता है कि यदि उन्हें संगठन और सरकार के साथ चलना है तो संघ की शरण में जाना पड़ेगा. यही वजह है कि संघ की शरण में जाकर वह अपने आप को संघ की पसंद बनाना चाह रहे हैं. वहीं वे अपने लोगों को उचित स्थान दिला सकेंगे, शायद यही वजह है कि सिंधिया संघम शरणम गच्छामि हो गए हैं.

ये भी पढ़ें- बीजेपी प्रदेश कार्यकारिणी में 55 पार की नो एंट्री, नेताओं की जोर आजमाइश शुरू

समर्थकों का विस्तार सिंधिया की चिंता

सिंधिया समर्थक तीन मंत्री इस उप चुनाव में हारे हैं और दो मंत्रियों ने उपचुनाव के नतीजे से पहले इस्तीफा दिया था. ऐसे में सिंधिया समर्थक पांच नेता अभी मंत्रिमंडल से बाहर हैं और मौजूदा समय में मंत्रिमंडल विस्तार के साथ ही संगठन का विस्तार भी होने जा रहा है. ऐसे में सिंधिया अपने उन खास समर्थकों को मंत्रिमंडल के साथ-साथ ही उप चुनाव में हारे हुए नेताओं को संगठन में मुख्य भूमिका दिलाना चाहते हैं.

सिंधिया समर्थक रघुराज कंसाना, गिर्राज दंडोतिया और इमरती देवी उपचुनाव हार चुकीं हैं. वहीं तुलसी सिलावट और गोविंद सिंह राजपूत ने संवैधानिक परिस्थितियों को देखते हुए मंत्री पद से इस्तीफा दिया था. ऐसे में अब सिंधिया के सामने अपने पांच चहेतों को मंत्रिमंडल और संगठन में एंट्री दिलाने की चिंता है.

संघ वैचारिक व्यवस्था का रूप

सिंधिया के संघ दफ्तर जाने पर बीजेपी प्रवक्ता राहुल कोठारी का कहना है कि आरएसएस एक विचारधारा है और हम सभी एक विचारधारा के आधार पर काम करते हैं. भारतीय जनता पार्टी में सभी कार्यकर्ता के रूप में अपनी जिम्मेदारी निभाते हैं. ऐसे में समय-समय पर सभी लोग उचित मार्गदर्शन लेते रहते हैं.

ये भी पढ़ें- विंध्य से संगठन और सरकार में किसको मिलेगी जगह ? सुहास भगत के दरबार में नेताओं की हाजिरी

सिंधिया अपनी दादी के पदचिन्हों पर हैं

सिंधिया के संघ प्रेम को उनकी दादी स्वर्गीय राजमाता विजयाराजे सिंधिया से भी जोड़कर देखा जा रहा है. संघ विचारक दीपक शर्मा का कहना है कि जिस तरीके से राजमाता सिंधिया ने जनसंघ और आरएसएस को अपनाया था सिंधिया भी अपनी दादी के पदचिन्हों पर चल रहे हैं.

जब कोई व्यक्ति पार्टी छोड़कर दूसरे दल में शामिल होता है, उस समय उसकी विचारधारा को समझना बहुत खास हो जाता है. ऐसे में सिंधिया अपने समर्थकों के साथ आरएसएस मुख्यालय जाकर भी यही जताना चाह रहे हैं कि वह बीजेपी की विचारधारा से घुल मिल गए हैं.

माना जाता है कि भारतीय जनता पार्टी में और सरकार में संघ के बिना पत्ता भी नहीं हिलता. अप्रत्यक्ष रूप से सरकार और संगठन में संघ का दखल रहता है. हालांकि बीजेपी और सरकार के लोग हमेशा से संघ को मात्र राष्ट्र निर्माण की संस्था बताते आए हैं. हालांकि जिस तरीके से सिंधिया संघ की शरण में जा रहे हैं, इससे साफ जाहिर है कि अब सिंधिया संघ के चहिते बनना चाहते हैं और संघ के ही रास्ते हो सरकार और संगठन में अपनी पकड़ मजबूत करने के फिराक में हैं.

भोपाल। राज्यसभा सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया ने भारतीय जनता पार्टी का दामन थामने के साथ ही अब संघ की शरण ले ली है. जबसे ज्योतिरादित्य सिंधिया ने बीजेपी का दामन थामा है, तब से ही लगातार उनकी सक्रियता संघ नेताओं के साथ भी नजर आने लगी है. हाल ही में भोपाल आए सिंधिया एयरपोर्ट से सीधे संघ कार्यलय पहुंचे थे. जिस कारण अब राजनीतिक गलियारों में यह चर्चा तेजी से फैल रही है कि सिंधिया बीजेपी में पकड़ मजबूत करने के लिए सिंधिया संघम शरणम गच्छामि हो रहे हैं.

सिंधिया संघम शरणम गच्छामि

मार्च 2020 में सिंधिया बीजेपी में शामिल हुए थे, उसके बाद सिंधिया ने संघ मुख्यालय नागपुर जाकर आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत से भी मुलाकात की थी और अब सिंधिया की संघ कार्यालय में जाकर पदाधिकारियों से मुलाकात करना एक परंपरा सी बन गई है. सिंधिया के संघ प्रेम को वर्तमान उपचुनाव के नतीजों से जोड़कर देखा जा रहा है.

ज्योतिरादित्य सिंधिया यह भली-भांति जानते हैं कि भारतीय जनता पार्टी संगठन और सरकार में कहीं ना कहीं अप्रत्यक्ष रूप से संघ की प्रमुख भूमिका होती है और अगर उन्हें सरकार के साथ-साथ संगठन में भी अपनी पकड़ मजबूत करनी है तो उसके लिए उन्हें संघ की शरण में जाना पड़ेगा. यही कारण है कि सिंधिया जब से बीजेपी में शामिल हुए हैं, तब से ही लगातार वह संघ कार्यालय जाकर संघ पदाधिकारियों से मुलाकात करते हैं.

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संघ की शरण में ही सिंधिया का कल्याण

सिंधिया के संघ प्रेम को लेकर कांग्रेस ने निशाना साधते हुए कहा कि सिंधिया को पता है कि यदि उन्हें संगठन और सरकार के साथ चलना है तो संघ की शरण में जाना पड़ेगा. यही वजह है कि संघ की शरण में जाकर वह अपने आप को संघ की पसंद बनाना चाह रहे हैं. वहीं वे अपने लोगों को उचित स्थान दिला सकेंगे, शायद यही वजह है कि सिंधिया संघम शरणम गच्छामि हो गए हैं.

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समर्थकों का विस्तार सिंधिया की चिंता

सिंधिया समर्थक तीन मंत्री इस उप चुनाव में हारे हैं और दो मंत्रियों ने उपचुनाव के नतीजे से पहले इस्तीफा दिया था. ऐसे में सिंधिया समर्थक पांच नेता अभी मंत्रिमंडल से बाहर हैं और मौजूदा समय में मंत्रिमंडल विस्तार के साथ ही संगठन का विस्तार भी होने जा रहा है. ऐसे में सिंधिया अपने उन खास समर्थकों को मंत्रिमंडल के साथ-साथ ही उप चुनाव में हारे हुए नेताओं को संगठन में मुख्य भूमिका दिलाना चाहते हैं.

सिंधिया समर्थक रघुराज कंसाना, गिर्राज दंडोतिया और इमरती देवी उपचुनाव हार चुकीं हैं. वहीं तुलसी सिलावट और गोविंद सिंह राजपूत ने संवैधानिक परिस्थितियों को देखते हुए मंत्री पद से इस्तीफा दिया था. ऐसे में अब सिंधिया के सामने अपने पांच चहेतों को मंत्रिमंडल और संगठन में एंट्री दिलाने की चिंता है.

संघ वैचारिक व्यवस्था का रूप

सिंधिया के संघ दफ्तर जाने पर बीजेपी प्रवक्ता राहुल कोठारी का कहना है कि आरएसएस एक विचारधारा है और हम सभी एक विचारधारा के आधार पर काम करते हैं. भारतीय जनता पार्टी में सभी कार्यकर्ता के रूप में अपनी जिम्मेदारी निभाते हैं. ऐसे में समय-समय पर सभी लोग उचित मार्गदर्शन लेते रहते हैं.

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सिंधिया अपनी दादी के पदचिन्हों पर हैं

सिंधिया के संघ प्रेम को उनकी दादी स्वर्गीय राजमाता विजयाराजे सिंधिया से भी जोड़कर देखा जा रहा है. संघ विचारक दीपक शर्मा का कहना है कि जिस तरीके से राजमाता सिंधिया ने जनसंघ और आरएसएस को अपनाया था सिंधिया भी अपनी दादी के पदचिन्हों पर चल रहे हैं.

जब कोई व्यक्ति पार्टी छोड़कर दूसरे दल में शामिल होता है, उस समय उसकी विचारधारा को समझना बहुत खास हो जाता है. ऐसे में सिंधिया अपने समर्थकों के साथ आरएसएस मुख्यालय जाकर भी यही जताना चाह रहे हैं कि वह बीजेपी की विचारधारा से घुल मिल गए हैं.

माना जाता है कि भारतीय जनता पार्टी में और सरकार में संघ के बिना पत्ता भी नहीं हिलता. अप्रत्यक्ष रूप से सरकार और संगठन में संघ का दखल रहता है. हालांकि बीजेपी और सरकार के लोग हमेशा से संघ को मात्र राष्ट्र निर्माण की संस्था बताते आए हैं. हालांकि जिस तरीके से सिंधिया संघ की शरण में जा रहे हैं, इससे साफ जाहिर है कि अब सिंधिया संघ के चहिते बनना चाहते हैं और संघ के ही रास्ते हो सरकार और संगठन में अपनी पकड़ मजबूत करने के फिराक में हैं.

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