उज्जैन: तीन दिवसीय उज्जैन प्रवास पर आए गोवर्धन मठ के शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती जी महाराज का आज नगर से प्रस्थान है. 23 दिसंबर को उज्जैन आये शंकाराचार्य ने महाकाल दर्शन के बाद 24 को महाकाल प्रवचन हाल में आध्यात्मिक प्रवचन एवं धर्मोपदेश दिया, जिसके बाद 25 दिसंब को उन्होंने उज्जैन से निकलने से पहले मीडिया से चर्चा की, इस चर्चा में उन्होंने केंद्र और राज्यों की सरकार पर जमकर निशाना साधा उन्होंने सिंहस्थ के मद्देनजर हो रहे कार्यों को भी देखा. वहीं राजनेताओं पर नाराजगी जताते हुए तीखी टिप्पणी कि और यूपी के प्रधानमंत्री मोदी सीएम योगी, गृहमंत्री अमित शाह, मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, सबको घेरा.
गोवर्धनमठ के शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती जी महाराज ने मीडिया से चर्चा के दौरान राजनेताओं पर तीखा वार किया, उन्होंने कहा शासन तंत्र में आजकल हर जगह उन्माद है, धार्मिक जगत का नेतृत्व भी अब सेक्यूरल शासन तंत्र के मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री अपने हाथ में ले चुके हैं और अपने राजनीतिक फायदे के लिए नेता संतों को एक मोहरे की तरह इस्तेमाल कर रहे हैं. शंंकराचार्य ने इसका उदाहरण देते हुए कहा कि योगी आदित्यनाथ संत के भेष में हैं और यूपी के सीएम हैं और 28 साल से मेरे परिचित हैं, उन्होंने इलाहबाद के अर्ध कुंभ को पूर्ण कुंभ घोषित कर दिया, इससे पहले किसी ऋषि मुनि ने ऐसा करने का साहस नहीं किया. उन्होंने कहा धार्मिक क्षेत्र में राजनेताओं का हस्तक्षेप ठीक नहीं है.
धार्मिक क्षेत्र हम लोगों के अधीन हैं, धार्मिक स्थानों को लेकर कोई निर्णय लेने से पहले शासन तंत्र को हम लोगों से एक सलाह लेना चाहिए, तीर्थ के विकास के नाम पर संतों को खड़ेदना का अभियान अभिशाप है. अगर संत महात्मा नहीं होंगे तो राजनेता क्या करेंगे क्या वे ही संत महात्मा का रूप धारण करेंगे, राजनेता अपने से उच्च संत को नहीं देखना चाहते वे उन्हें महज एक अपना प्रचारक बनाना चाहते हैं.
किसान आंदोलन को लेकर कहा
शासन को तय करना चाहिए कि जब कृषि हितैषियों के बीच बैठकर निर्णय लें और इसे व्यक्तिगत नहीं बनाएं, पहले कृषि विभाग, वाणिज्य विभाग एक होते थे तो फैंसले लेने में परेशानी आती थी, अब तो सब अलग-अलग हैं, जिससे सब कुछ दिशा हीन हो रहा है. पंजाब के किसान मुख्यमंत्री के दम पर नाचते थे, लेकिन वो पहले ही अमित शाह से मिल आए. किसानों को सरकार के साथ संवाद में शामिल होना चाहिये, उन्होंने कहा कि दिल्ली आंदोलन कर रहे किसान खालिस्तानी के जुड़ने से धोखे में हैं.