सतना। देश की रक्षा के लिए जब-जब कदम आगे बढ़ाने की जरूरत पड़ी है, तब-तब सतना जिले के शहीदों के गांव चूंद के सपूत सीना तान कर खड़े हुए और दुश्मनों के दांत खट्टे कर दिए. द्वितीय विश्व युद्ध को लेकर 1962 में चाइना वार, 1965 और 1971 में इंडिया-पाकिस्तान वार, ऑपरेशन मेघदूत और कारगिल में यहां के वीर सपूतों ने अपना योगदान दिया है.
गांव के दो सगे भाई कारगिल युद्ध में हुए थे शहीद
इस गांव के निवासी दो सगे भाइयों ने कारगिल युद्ध में अपने प्राणों की आहुति दी थी. गांव के अंदर आज भी हर युवा सेना में जाने का शौक रखता है. कारगिल युद्ध में शामिल होकर दोनों सगे भाई शहीद हुए थे, इन दोनों सगे भाइयों का नाम कन्हैया लाल सिंह और बाबूलाल सिंह है, आइए सतना ईटीवी भारत के माध्यम से आपको इन दोनों सगे भाइयों की वीरगाथा बताते हैं.
26 जुलाई 1999 के दिन भारत पाकिस्तान का युद्ध हुआ था. भारतीय सेना ने पाकिस्तान के छक्के छुड़ा दिए थे और वहां के सैकड़ों जवानों को मार गिराया था. भारत के वीर सपूतों ने कारगिल की चोटियों से पाकिस्तान की फौज को खदेड़ कर तिरंगा फहराया था. इसी कारगिल युद्ध के दौरान मध्यप्रदेश के सतना जिले के जांबाज वीर सपूतों ने दुश्मनों के नापाक इरादे को नेस्तनाबूद किए थे.
शहीदों के नाम से जाना जाता है चूंद गांव
यही वजह है कि सतना के चूंद गांव शहीदों के गांव के नाम से भी जाना जाता है. इस गांव का बच्चा-बच्चा आज भी सेना में जाने का शौक रखता है. चूंद गांव की मिट्टी में पैदा हुए जाबाजों ने कारगिल युद्ध के दौरान दुश्मनों के दांत खट्टे कर दिए थे और देश के लिए अपने प्राणों की आहुति दी थी. कारगिल युद्ध के दौरान शहीद हुए दो सगे भाई कन्हैया लाल सिंह और बाबूलाल सिंह के जज्बे की कहानी आज भी गांव के लोग सुनाते हैं. इस गांव में करीब 150 से अधिक लोग सेना में अपनी सेवाएं दे रहे हैं. तो वही 200 के करीब सैनिक सेना से रिटायर हो चुके हैं.
सतना जिला मुख्यालय से महज 40 किलोमीटर दूर स्थित चूंद गांव इस गांव के लोगों की सेना में भर्ती होने की परंपरा रीवा स्टेट के जमाने से शुरू हुई थी. करीब 3 हजार की आबादी वाले इस गांव को सैनिकों का गांव माना जाता है. चूंद ने देश को सिपाही से लेकर ब्रिगेडियर और मरीन कमांडो तक दिए हैं. यहां ऐसे कई परिवार भी हैं जिनके चार पुस्तों से लोग सरहद निगहबानी कर रहे हैं. इस गांव की ज्यादातर आबादी सोमवंशी ठाकुरों की है. जिनके पूर्वज कभी यहां आकर बस गए थे. होश संभालते ही गांव का हर युवा सबसे पहले फौज में जाने के सपने संजोता है.
दसवीं कक्षा पास करने के बाद लड़के दौड़ना और व्यायाम करना शुरू कर देते हैं. वर्ष 1999 में जब पाकिस्तानी रिजल्ट ने कारगिल हील्स पर कब्जा कर भारत के साथ युद्ध छेड़ दिया था तो अलग-अलग सेक्टरों के चूंद के जाबाजों ने भी मोर्चा संभाल रखा था. ऐसे ही जांबाज से बाबूलाल सिंह और कन्हैया लाल सिंह यह दोनों सगे भाई थे. जम्मू-कश्मीर के पुंछ राजौरी सेक्टर में दुश्मन से लोहा लेते शहीद हुए बाबूलाल और कन्हैया लाल की याद में गांव की सीमा में बनाए गए शहीद स्मारक में दोनों सगे भाइयों को श्रद्धांजलि देने के लिए गांव वालों ने इसे बनवाया था.
कन्हैया लाल सिंह और बाबूलाल सिंह यह दोनों सगे भाई हैं, इनके पिता का नाम स्वर्गीय श्रीपाल सिंह और माता का नाम बुटैया सिंह है. यह चार भाई थे, इनमें से सबसे बड़े कन्हैया लाल सिंह, दूसरे बाबूलाल सिंह, तीसरे बृजेश सिंह, चौथे चंद्र राज सिंह जो कि वर्तमान में मेरठ 14 राजरिफ में सूबेदार पद में पदस्थ हैं. कन्हैयालाल और बाबूलाल दोनों ने ही अपनी शिक्षा-दीक्षा बिरसिंहपुर शासकीय हाई सेकेंडरी स्कूल से पूर्ण की थी, दसवीं पास होने के बाद दोनों ने ही आर्मी ज्वाइन की थी.
कन्हैया लाल सिंह का जन्म 10 अगस्त 1965 को हुआ था, कन्हैया लाल सन 1983 में सेना में भर्ती हुए थे. और 11 मई 1998 में कारगिल युद्ध में शहीद हुए थे, यह पुंज राजौरी सेक्टर में शहीद हुए थे. कन्हैया लाल का एक बेटा और दो बेटियां हैं. जब कन्हैया लाल शहीद हुए थे, तो इनकी दोनों बेटियां पूजा सिंह 10 साल की थी और प्रियंका सिंह 5 साल की थी, सबसे छोटा बेटा विनय सिंह 6 साल का था.विनय सिंह अब सेना में अपनी सेवाएं दे रहा है, विनय ने वर्ष 2012 में आर्मी ज्वाइन की है. 9 आरआर श्रीनगर में अपनी सेवाएं दे रहे हैं. और दोनों बेटियों की शादी हो चुकी है.
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शहीद कन्हैयालाल की पत्नी सुधा सिंह का स्वास्थ्य भी अब ठीक नहीं रहता है. पति के शहीद होने के बाद सुधा सिंह ने बच्चों की शिक्षा दीक्षा के बाद दोनों बेटियों की शादी भी की और बेटा अभी आर्मी में सेवाएं दे रहा है. उनके भतीजे ने बताया कि उन्हें अपने चाचा पर बहुत गर्व है, वह देश की सेवा के लिए शहीद हुए. हम अपने शब्दों से उनकी वीरगाथा को बयां नहीं कर सकते.
शहीद बाबूलाल सिंह ने 23 जनवरी 1987 को ज्वाइन की थी सेना
छोटे भाई शहीद बाबूलाल सिंह का जन्म 26 जनवरी 1967 को हुआ था. 23 जनवरी 1987 को बाबूलाल सिंह सेना में भर्ती हुए थे. 31 अक्टूबर 2000 को कारगिल युद्ध में शहीद हुए थे. बाबूलाल सिंह के शहीद होने के बाद उनकी पत्नी राज दुलारी सिंह ने और संभाला. इनके दो बेटे और एक बेटी थी. बड़े बेटा रोहित सिंह छोटा चंदन सिंह और बेटी रेशमा सिंह की पूरी शिक्षा दीक्षा का भार उनकी पत्नी ने संभाला.
पिता के शहीद होने के बाद माता ने किया पालन-पोषण
बाबूलाल सिंह की पहली पोस्टिंग गंगा नगर इसके बाद झांसी, राजस्थान और पुंज राजौरी सेक्टर में आखिरी पोस्टिंग थी, जहां वह शहीद हो गए. बाबूलाल सिंह के बेटे को अपने पिता पर बहुत गर्व है. उनका कहना है कि पिता के शहीद होने के बाद उनका पालन-पोषण उनकी माता ने ही किया, आज दोनों बेटे शिक्षा दीक्षा में सबसे आगे हैं और बहन की शादी भी हो चुकी है.