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लोकसभा चुनावः सतना में कांग्रेस के मास्टर स्ट्रोक से बदले सियासी समीकरण, आसान नहीं बीजेपी की राह

सतना लोकसभा सीट पर कांग्रेस ने 42 साल बाद ब्राह्मण प्रत्याशी को मौका दिया है. पार्टी ने राजाराम त्रिपाठी को प्रत्याशी घोषित किया है. जिनका मुकाबला बीजेपी के गणेश सिंह से है. सियासी पंडितों का है कि कांग्रेस से ब्राह्मण प्रत्याशी उतारे जाने से सतना के सियासी समीकरण बदल गए हैं.

satna loksabha seat
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Published : Apr 10, 2019, 8:08 PM IST

Updated : Apr 11, 2019, 12:13 AM IST

सतना। 2019 के सियासी दंगल में विंध्य की धरती पर सियासत का अखाड़ा सज गया है. चुनावी समर में विंध्य की झलक सूबे में सबसे अलग होती है, क्योंकि यहां की सियासत में जातिगत राजनीति का सबसे ज्यादा दखल है. कांग्रेस ने सतना से ब्राह्मण प्रत्याशी राजाराम त्रिपाठी को चुनावी मैदान में उतारकर मुकाबले में टि्वस्ट ला दिया है. सियासी पंडितों का कहना है कि राजराम त्रिपाठी को कांग्रेस द्वारा प्रत्याशी बनाए जाने के बाद सतना सीट का सियासी समीकरण बदल गया है और बीजेपी के गणेश सिंह के लिए इस बार राह आसान नजर नहीं आ रही.

वरिष्ठ पत्रकार अशोक शुक्ला बताते हैं कि सतना में जातिगत समीकरण के आधार पर ही प्रत्याशी फतह करते आये हैं. लेकिन, इस बार कांग्रेस के ब्राह्मण प्रत्याशी के मैदान में होने से बीजेपी का सियासी समीकरण गड़बड़ा सकता है.सतना संसदीय क्षेत्र ब्राह्मण बाहुल्य होने के चलते यहां पर इस जाति के लोगों का जबरदस्त रुतबा और वर्चस्व कायम है. जिले भर में तकरीबन 3 लाख ब्राह्मण आबादी है. यही वजह है कि सियासी पार्टियों की नजर इस वोटबैंक पर रहती है. बात अगर सतना के ब्राह्मण चेहरों की बात की जाए तो शंकर लाल तिवारी, कमलाकर चतुर्वेदी, नारायण त्रिपाठी, राजाराम त्रिपाठी, नीलांशु चतुर्वेदी ये वो चेहरे है जो सतना की सियासत में ब्राह्मणों का नेतृत्व करते हैं.

सतना में ब्राह्राणों के वर्चस्व का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है. 1996 के चुनाव में ब्राह्राणों के विरोध के चलते सूबे के दो-दो पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह और वीरेंद्र सखलेचा को भी यहां हार का सामना करना पड़ा था. कांग्रेस ने सतना लोकसभा सीट पर 42 साल बाद ब्राह्राण प्रत्याशी को उतारा है. पार्टी ने इससे पहले 1977 में रामचंद्र बाजपेयी को टिकट दिया था जो चुनाव हार गए थे. जबकि अर्जुन सिंह कांग्रेस के ऐसे आखिरी प्रत्याशी थे जो सतना से चुनाव जीते थे.

स्थानीय लोगों का कहना है कि सतना में कांग्रेस का ब्राह्मण प्रत्याशी होने से लगातार तीन बार से सांसद रहे गणेश सिंह को चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है. सतना में जीत का सहरा किसके सिर बंधेगा यह तो वक्त ही बताएगा. लेकिन चुनावी मैदीन में कांग्रेस द्वारा ब्राह्मण चेहरा उतारे जाने के बाद मुकाबला कड़ा हो गया है.

सतना। 2019 के सियासी दंगल में विंध्य की धरती पर सियासत का अखाड़ा सज गया है. चुनावी समर में विंध्य की झलक सूबे में सबसे अलग होती है, क्योंकि यहां की सियासत में जातिगत राजनीति का सबसे ज्यादा दखल है. कांग्रेस ने सतना से ब्राह्मण प्रत्याशी राजाराम त्रिपाठी को चुनावी मैदान में उतारकर मुकाबले में टि्वस्ट ला दिया है. सियासी पंडितों का कहना है कि राजराम त्रिपाठी को कांग्रेस द्वारा प्रत्याशी बनाए जाने के बाद सतना सीट का सियासी समीकरण बदल गया है और बीजेपी के गणेश सिंह के लिए इस बार राह आसान नजर नहीं आ रही.

वरिष्ठ पत्रकार अशोक शुक्ला बताते हैं कि सतना में जातिगत समीकरण के आधार पर ही प्रत्याशी फतह करते आये हैं. लेकिन, इस बार कांग्रेस के ब्राह्मण प्रत्याशी के मैदान में होने से बीजेपी का सियासी समीकरण गड़बड़ा सकता है.सतना संसदीय क्षेत्र ब्राह्मण बाहुल्य होने के चलते यहां पर इस जाति के लोगों का जबरदस्त रुतबा और वर्चस्व कायम है. जिले भर में तकरीबन 3 लाख ब्राह्मण आबादी है. यही वजह है कि सियासी पार्टियों की नजर इस वोटबैंक पर रहती है. बात अगर सतना के ब्राह्मण चेहरों की बात की जाए तो शंकर लाल तिवारी, कमलाकर चतुर्वेदी, नारायण त्रिपाठी, राजाराम त्रिपाठी, नीलांशु चतुर्वेदी ये वो चेहरे है जो सतना की सियासत में ब्राह्मणों का नेतृत्व करते हैं.

सतना में ब्राह्राणों के वर्चस्व का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है. 1996 के चुनाव में ब्राह्राणों के विरोध के चलते सूबे के दो-दो पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह और वीरेंद्र सखलेचा को भी यहां हार का सामना करना पड़ा था. कांग्रेस ने सतना लोकसभा सीट पर 42 साल बाद ब्राह्राण प्रत्याशी को उतारा है. पार्टी ने इससे पहले 1977 में रामचंद्र बाजपेयी को टिकट दिया था जो चुनाव हार गए थे. जबकि अर्जुन सिंह कांग्रेस के ऐसे आखिरी प्रत्याशी थे जो सतना से चुनाव जीते थे.

स्थानीय लोगों का कहना है कि सतना में कांग्रेस का ब्राह्मण प्रत्याशी होने से लगातार तीन बार से सांसद रहे गणेश सिंह को चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है. सतना में जीत का सहरा किसके सिर बंधेगा यह तो वक्त ही बताएगा. लेकिन चुनावी मैदीन में कांग्रेस द्वारा ब्राह्मण चेहरा उतारे जाने के बाद मुकाबला कड़ा हो गया है.

Intro:"सतना लोकसभा सीट में कांग्रेस पार्टी को 42 साल बाद मिला ब्राह्मण प्रत्याशी"

एंकर इंट्रो ---
सतना में 28 सालों से जीत के लिए तरस रही कांग्रेस,,
कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में कुंवर अर्जुन सिंह 1991 में जीते थे चुनाव,,
1977 में रामचंद्र बाजपाई बने थे कांग्रेस के आखिरी प्रत्याशी,,
इसके बाद ओ बी सी छत्रिय और अल्पसंख्यक नेताओं को भी मौका मिला,,
भाजपा ने सन 1984 के लोकसभा में बनाया था ब्राह्मण नेता को प्रत्याशी जो जीते भी थे,,
जीत की हैट्रिक लगा चुके मौजूदा सांसद गणेश सिंह ओबीसी से रखते हैं ताल्लुक,,
सतना विधानसभा सीट के लिए खास है क्योंकि कुंवर अर्जुन सिंह और वीरेंद्र कुमार सखलेचा को मिल चुकी है 1996 में बसपा से पटखानी ।


Body:VO 1---
जी हां सतना सांसद क्षेत्र के लिए कांग्रेश को लंबे समय बाद ब्राह्मण कैंडिडेट मिला है,, पूरे 42 साल बाद मिला है कांग्रेस को ब्राह्मण प्रत्याशी,, वर्ष 1970 में कांग्रेस ने रामचंद्र बाजपाई को ब्राह्मण कैंडिडेट के रूप में मैदान में उतारा था,, तब रामचंद्र भारती लोक दल के सुखेंद्र सिंह से 1 लाख 52 हजार 577 मतों के अंतर से बुरी तरह हार गए थे,, इसके बाद कांग्रेस 2014 के आम चुनाव तक ब्राह्मण नेता को मैदान में उतारने की हिम्मत नहीं जुटा पाई,, सतना लोकसभा सीट उन दिनों सुर्खियां बटोरी थी जब 1996 के आम चुनाव में अपनी अपनी किस्मत आजमा रहे मध्य प्रदेश के दो-दो पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह और वीरेंद्र कुमार सखलेचा से,, यहां सुखलाल कुशवाहा ने अपनी पहली बार बहुजन समाज पार्टी का खाता खोला था ।

Vo 2---
42 साल बाद कांग्रेस ने ब्राह्मण कार्ड खोलकर भाजपा को मुश्किलों में डाल दिया है,, क्योंकि सत्ता संसदीय क्षेत्र में ब्राह्मण मतदाता निर्णायक की भूमिका में है यहां कांग्रेस बीते 28 वर्षों से जीत के लिए तरस रही है,, 1991 में अर्जुन सिंह कांग्रेस की ओर से फतेह पाए थे ।

Vo 3---
आपको बता दें सतना जिले में ब्राह्मण प्रत्याशी मिलने से ब्राह्मण समाज सेवियों के मन में खुशी हैं,, क्योंकि सतना जिले की आबादी में ब्राह्मण सबसे ज्यादा बाहुल्य है,, जिलेभर में लगभग ब्राह्मण 3 लाख की आबादी ब्राह्मणों की है,, ब्राह्मण समाज सेवी की माने तो लगातार तीन बार से सांसद रहे गणेश सिंह को कहीं ना कहीं इस लोकसभा चुनाव में कई चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा,, वहीं कांग्रेस के ब्राह्मण प्रत्याशी राजाराम त्रिपाठी ब्राह्मण समाज ही नहीं हर वर्ग के नेता हैं ।

Vo 4---
वहीं इस पर सतना जिले के वरिष्ठ पत्रकार की मानें तो कि जिले में जातिगत राजनीति का बटवारा बसपा के आते ही हो गया था,, तब से आज तक जिलेभर में जातिगत समीकरण के आधार पर ही प्रत्याशी फतेह हासिल करते आये हैं,, 42 साल बाद कांग्रेस पार्टी को ब्राह्मण प्रत्याशी घोषित करने पर कहीं ना कहीं बीजेपी का समीकरण गड़बड़ा सकता है,, वहीं बीजेपी में कोई प्रभाव डाल सकता है,, तो वही कहीं ना कहीं लोगों के अंदर मोदी फैक्टर का बहुत बड़ा प्रभाव है,,अब इसमें देखने वाली बात यह होगी की जीत का ताज किसके सर होगा ।


Conclusion:byte ----
रजनीश द्विवेदी -- ब्राह्मण समाजसेवी सतना ।

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अशोक शुक्ला -- वरिष्ठ पत्रकार जिला सतना ।
Last Updated : Apr 11, 2019, 12:13 AM IST
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