सतना। 2019 के सियासी दंगल में विंध्य की धरती पर सियासत का अखाड़ा सज गया है. चुनावी समर में विंध्य की झलक सूबे में सबसे अलग होती है, क्योंकि यहां की सियासत में जातिगत राजनीति का सबसे ज्यादा दखल है. कांग्रेस ने सतना से ब्राह्मण प्रत्याशी राजाराम त्रिपाठी को चुनावी मैदान में उतारकर मुकाबले में टि्वस्ट ला दिया है. सियासी पंडितों का कहना है कि राजराम त्रिपाठी को कांग्रेस द्वारा प्रत्याशी बनाए जाने के बाद सतना सीट का सियासी समीकरण बदल गया है और बीजेपी के गणेश सिंह के लिए इस बार राह आसान नजर नहीं आ रही.
वरिष्ठ पत्रकार अशोक शुक्ला बताते हैं कि सतना में जातिगत समीकरण के आधार पर ही प्रत्याशी फतह करते आये हैं. लेकिन, इस बार कांग्रेस के ब्राह्मण प्रत्याशी के मैदान में होने से बीजेपी का सियासी समीकरण गड़बड़ा सकता है.सतना संसदीय क्षेत्र ब्राह्मण बाहुल्य होने के चलते यहां पर इस जाति के लोगों का जबरदस्त रुतबा और वर्चस्व कायम है. जिले भर में तकरीबन 3 लाख ब्राह्मण आबादी है. यही वजह है कि सियासी पार्टियों की नजर इस वोटबैंक पर रहती है. बात अगर सतना के ब्राह्मण चेहरों की बात की जाए तो शंकर लाल तिवारी, कमलाकर चतुर्वेदी, नारायण त्रिपाठी, राजाराम त्रिपाठी, नीलांशु चतुर्वेदी ये वो चेहरे है जो सतना की सियासत में ब्राह्मणों का नेतृत्व करते हैं.
सतना में ब्राह्राणों के वर्चस्व का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है. 1996 के चुनाव में ब्राह्राणों के विरोध के चलते सूबे के दो-दो पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह और वीरेंद्र सखलेचा को भी यहां हार का सामना करना पड़ा था. कांग्रेस ने सतना लोकसभा सीट पर 42 साल बाद ब्राह्राण प्रत्याशी को उतारा है. पार्टी ने इससे पहले 1977 में रामचंद्र बाजपेयी को टिकट दिया था जो चुनाव हार गए थे. जबकि अर्जुन सिंह कांग्रेस के ऐसे आखिरी प्रत्याशी थे जो सतना से चुनाव जीते थे.
स्थानीय लोगों का कहना है कि सतना में कांग्रेस का ब्राह्मण प्रत्याशी होने से लगातार तीन बार से सांसद रहे गणेश सिंह को चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है. सतना में जीत का सहरा किसके सिर बंधेगा यह तो वक्त ही बताएगा. लेकिन चुनावी मैदीन में कांग्रेस द्वारा ब्राह्मण चेहरा उतारे जाने के बाद मुकाबला कड़ा हो गया है.