सागर। भारत में कई ऐसे अजीबोगरीब मान्यताओं वाले मंदिर हैं, जिनसे लोगों की आस्था जुड़ी होती है. इन्हीं मंदिरों में से आज हम अपको एक ऐसे मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं जिसकी मान्यता पर आपको यकीन नहीं होगा.(tomb of bitch in sagar)
डॉगी की समाधि: सागर के रेहली विकासखंड में एक ऐसा गांव हैं जहां पर एक डॉगी की समाधि है. इस समाधि की खास बात ये है कि इसे यहां के लोग देवी के रूप में पूजते हैं. हर साल यहां मेला लगता है, जिसमें लोग पूजा अर्चना करते हैं. इस समाधि की रोचक कहानी भी है और उसी कहानी के आधार पर बुंदेली की मशहूर कहावत बनी है. जिसका उपयोग कई मायनों में किया जाता है.
कहां है ये समाधि: सागर जिला मुख्यालय से करीब 50 किलोमीटर दूर सागर-दमोह मार्ग पर रोन नाम का एक गांव है. रोन के पड़ोसी कुमरई गांव की पहचान एक बुंदेली कहावत और गांव में बनी डॉगी की समाधि से होती है.
क्या है इस समाधि की कहानी: स्थानीय लोग बताते हैं कि, करीब साढ़े 400 साल पहले रोन और कुमरई गांव में एक डॉगी थी, दोनों पड़ोसी गांव में समारोह थे और दोनों जगह पंगत (सामूहिक भोज) का आयोजन था. सबसे पहले डॉगी रोन गांव पहुंची, लेकिन वहां पंगत शुरू नहीं हुई थी, ऐसे में उसने पड़ोस के कुमरई गांव जाने के बारे में सोचा और जब वहां पहुंची, तो वहां भी खाना शुरू नहीं हुई थी. डॉगी वापस रोन गांव लौट आई, लेकिन उसने देखा कि रोन गांव में तो खाना खत्म हो गई है, भूख से परेशान होकर डॉगी फिर कुमरई गांव की तरफ जाने लगी, लेकिन रास्ते में उसने देखा कि लोग खाना खाकर से लौट रहे हैं, भूख से परेशान डॉगी दोनों गांव में भटकती रही और आखिरकार उसने दम तोड़ दिया. गांव के लोगों ने जब उसकी कहानी सुनी, तो उन्होंने डॉगी की एक समाधि बना डाली और देवी के रूप में उसकी पूजा-अर्चना करने लगे.
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डॉगी से बनी बुंदेली कहावत: बुंदेलखंड में एक कहावत "रोन कुमरई की कुतिया" का कई मायनों में उपयोग किया जाता है और ये कहावत काफी मशहूर है. इस कहावत का उपयोग उन लोगों के लिए किया जाता है, जो एक साथ दो-दो काम करना चाहते हैं या दो काम फंसा लेते हैं और किसी भी काम में सफल नहीं होते हैं.
समाधि पर हर साल लगता है मेला: रोन और कुमरई गांव के बीच बनी इस समाधि पर हर साल कार्तिक माह की पूर्णिमा पर मेले का आयोजन होता है. लोग इस समाधि को देवी के रूप में मानते हैं. लोगों का मानना है कि सच्चे मन से पूजा अर्चना करने पर मनोकामना पूरी होती है. स्थानीय लोग तो देवी के रूप में पूजा करते ही हैं लेकिन, यहां की कहानी सुनकर बाहर के लोग भी यहां दर्शन करने के लिए पहुंचते हैं.