सागर। जन्माष्टमी के पर्व पर भले ही कोरोना महामारी का साया हो लेकिन श्री कृष्ण का जन्म मनाने के लिए लोगों में जोश की कोई कमी नहीं है. सभी पूजा की तैयारियों में जुट गए हैं. कृष्ण मंदिरों में जन्माष्टमी के लिए विशेष तैयारियां की जा रही हैं. इसी कड़ी में सागर के बड़ा बाजार में स्थित बिहारी जी के मंदिर में होने वाली जन्माष्टमी की तैयारियां शुरू हो गई हैं. सागर शहर में बिहारी जी के मंदिर की जन्माष्टमी मनाने के लिए पूरा शहर उमड़ पड़ता है. करीब 300 साल पुराने इस मंदिर की महिमा अपरंपार है.
कहा जाता है कि यहां भगवान कृष्ण स्वयं आए थे. उन्हें स्थापित नहीं किया गया था. यह भी कहा जाता है कि साधुओं की टोली सागर से गुजरी थी, जो पालकी में बिहारी जी को बिठाए थी. टोली ने सागर में रात्रि विश्राम किया, लेकिन सुबह जब चलने का वक्त आया, तो बिहारी जी टस के मस नहीं हुए और यहीं स्थापित हो गए और उनका नाम अटल बिहारी हो गया. मंदिर की खास बात यह भी है कि यहां किसी भी भक्त को वीआईपी ट्रीटमेंट नहीं मिलता है. बिहारी सरकार के दरबार में राजा और रंक एक बराबर हैं.
अटल बिहारी सरकार के मंदिर का इतिहास ?
सागर स्थित अटल बिहारी मंदिर का इतिहास 300 साल से ज्यादा पुराना है. कहा जाता है कि जब मुगलकाल का पतन हो रहा था और अंग्रेज धीरे-धीरे देश पर कब्जा जमा रहे थे. उसी समय पर बिहारी जी सागर के बड़ा बाजार इलाके में पहुंचे थे. अटल बिहारी जी के मंदिर की स्थापना को लेकर कहा जाता है कि एक साधुओं की टोली पालकी में बिहारी जी को लेकर भ्रमण करती थी, और देश में जगह-जगह घूमती थी. इसी कड़ी में बिहारी जी की पालकी सागर के सराफा बाजार (बड़ा बाजार) इलाके में पहुंची.
रात हो जाने के कारण यहीं रात्रि विश्राम करने का फैसला किया गया. दूसरे दिन सुबह होने पर जब साधुओं की टोली ने आगे बढ़ने का फैसला किया, तो बिहारी जी की पालकी हिली तक नहीं. साधुओं ने कई तरह के प्रयास किए कि किसी भी तरह से भगवान की पालकी उठा सकें. लेकिन जब पालकी नहीं उठी, तो तय किया गया कि भगवान अब यही रहेंगे और इनका नाम अटल बिहारी होगा.
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शहर की आस्था का केंद्र
वैसे तो यह मंदिर अटल बिहारी का मंदिर कहलाता है. लेकिन सागर शहर के लोग इस मंदिर को बिहारी जी का मंदिर बोलते हैं. मंदिर के प्रति शहर के लोगों की अटूट आस्था है. इस मंदिर में श्री कृष्ण जन्माष्टमी और रंग पंचमी का त्यौहार विशेष रूप से मनाया जाता है. इन त्योहारों को मनाने के लिए पूरा शहर बड़ा बाजार इलाके की तंग गलियों में उमड़ पड़ता है.
हालात ये बनते हैं कि व्यवस्था बनाए रखने के लिए बड़े पैमाने पर पुलिस की तैनाती करनी पड़ती है. लोगों का मानना है कि सच्चे मन से बिहारी जी से जो भी मनोकामना मांगी जाती है, वह पूरी होती है. स्थानीय लोग बाल रूप में अटल बिहारी जी के दर्शन का दावा भी करते हैं. कहा जाता है कि कभी भोग स्वरूप मिठाई मांगने और बच्चों के साथ खेलते हुए अटल बिहारी जी ने स्थानीय लोगों को दर्शन दिए हैं.
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अटल बिहारी के दरबार में राजा-रंक एक समान
अटल बिहारी मंदिर की सबसे बड़ी खासियत यह है कि इस मंदिर में किसी भी व्यक्ति को व्हीआईपी ट्रीटमेंट नहीं मिलता है. बिहारी जी के दरबार में राजा हो या भिखारी सब एक समान हैं. चाहे कोई नेता हो या रुतबे वाला व्यक्ति, उसे कतार में लगकर ही बिहारी जी के दर्शन करने होंगे, जहां से सब लोग बिहारी जी के दर्शन करते हैं. मंदिर के दर्शन के लिए पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह और केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया भी पहुंचे. लेकिन राजा और महाराजा को आम आदमी की तरह अटल बिहारी के दर्शन करने पड़े.
जन्माष्टमी पर्व पर कोरोना का साया
बिहारी जी के मंदिर में होने वाली जन्माष्टमी के पूजन की तैयारियां शुरू हो गई हैं. जन्माष्टमी के पर्व के दिन रात में 12 बजे बिहारी जी का अभिषेक होता है. फिर उन्हें राज भोग लगाया जाता है. बिहारी जी के दर्शन के लिए सारा शहर रात 12 बजे बड़ा बाजार इलाके की तंग गलियों में उमड़ पड़ता है. लेकिन पिछले 2 साल से जन्माष्टमी पर्व पर कोरोना का साया है. इसलिए कोविड-प्रोटोकॉल के तहत जन्माष्टमी का पर्व मनाया जाएगा.