सागर। सागर जिले सहित दमोह और नरसिंहपुर जिले में फैला प्रदेश का सबसे बड़ा वन्य जीव अभ्यारण्य बाघों के रहवास के लिहाज से मुफीद पाया गया है. फिलहाल यहां 12 बाघ अपना कुनबा बढ़ाने के साथ-साथ रह रहे हैं. अब एक और खुशखबरी नौरादेही अभ्यारण के जरिए वन्य प्रेमियों के लिए मिलने वाली है. दरअसल, नामीबिया से प्रदेश के कूनो पालनपुर अभयारण्य में लाए गए चीतों की अगली पीढ़ी नौरादेही और मंदसौर के गांधी सागर अभ्यारण में बसाने की तैयारी की जा रही है. हालांकि, इन दोनों अभ्यारण्य का तकनीकी टीम द्वारा शुरुआत से ही सर्वे किया जा रहा है और दोनों अभ्यारण्य चीतों के रहवास के हिसाब से उपयुक्त पाए गए थे. लेकिन नौरादेही अभ्यारण्य में बसे राजस्व ग्रामों के कारण शुरुआत में चीता पुनर्स्थापना प्रोजेक्ट नौरादेही के हाथ से छिन गया था. अब ये तय किया गया है कि कूनो पालनपुर में चीतों की अगली पीढ़ी आने पर नई पीढ़ी को नौरादेही अभ्यारण्य में स्थापित किया जाएगा.
प्रदेश का सबसे बड़ा वन्य जीव अभ्यारण्य है नौरादेही : नौरादेही अभ्यारण्य की बात करें,तो यह प्रदेश का सबसे बड़ा अभ्यारण्य है. इसका क्षेत्रफल 1,197 वर्गकिलोमीटर है. यह सागर सहित दमोह और नरसिंहपुर जिले में फैला हुआ है और जबलपुर जिले से इसकी सीमा लगती है. खास बात है कि राष्ट्रीय बाघ परियोजना के तहत 2018 में यहां राधा बाघिन और किशन नाम के बाघ को बसाया गया था और इनका कुनबा 4 सालों में 2 से बढ़कर 12 पहुंच गया है. बाघों के लिए उपयुक्त पाए जाने पर नौरादेही अभ्यारण्य द्वारा टाइगर रिजर्व का प्रस्ताव राज्य शासन को भेजा गया है.
कूनो लाए गए चीतों के लिए भी उपयुक्त पाया गया था नौरादेही अभ्यारण्य : जब 2009 में सबसे पहली बार दक्षिणी अफ्रीकी चीतों को भारत लाने का प्रस्ताव सामने आया था, तब सबसे पहले नौरादेही अभ्यारण्य की विशालता के चलते चीतों को बसाने के लिहाज से मुफीद पाया गया था. दक्षिण अफ्रीका की तकनीकी टीम ने नौरादेही का दौरा किया था और नौरादेही में सिर्फ एक कमी पाई गई थी. दरअसल, 1975 में जब नौरादेही अभयारण्य अस्तित्व में आया था, तो अभयारण्य की सीमा के अंदर बसे गांवों को राजस्व ग्राम का ही दर्जा दिया गया था और इनकी संख्या 100 से ज्यादा थी. ऐसी स्थिति में तय किया गया था कि नौरादेही अभ्यारण्य की सीमा में बसे गांव को पहले विस्थापित किया जाए, फिर यहां चीता बसाने की तैयारी की जाए. पिछले कुछ सालों से नौरादेही के अंदर बसे गांवों का सिलसिलेवार विस्थापन किया जा रहा है.
चीतों को नौरादेही में बसाने की तैयारी: नौरादेही अभ्यारण के डीएफओ सुधांशु यादव का कहना है कि "निश्चित रूप से नौरादेही प्रदेश का सबसे बड़ा अभ्यारण्य है. जहां चीतों के रहवास के हिसाब से तकनीकी टीम ने परीक्षण किया था. तकनीकी टीम ने कुछ कमियों को छोड़कर चीतों के रहवास के लिहाज से नौरादेही को उपयुक्त पाया था. फिलहाल जो कूनो में चीते आए हैं, उन्हें वहां बसने में वक्त लगेगा और उसके बाद उनकी अगली पीढ़ी आएगी. उसे नौरादेही अभ्यारण्य के साथ मंदसौर के गांधी सागर अभ्यारण्य में बसाने का प्रस्ताव है".
चीतों को बसाने की नौरादेही में है क्या संभावनाएं : नौरादेही अभ्यारण्य के डीएफओ सुधांशु यादव बताते हैं कि "नौरादेही अभ्यारण्य में जो खासकर सिंगपुर और मोहली रेंज हैं उसमें जंगल का घनत्व काफी कम है. यहां 0.3 और 0.4 या उसके नीचे घनत्व के जंगल हैं. यहां घास के बड़े-बड़े मैदान हैं और बड़े-बड़े पेड़ नहीं हैं. ऐसा ही जंगल और वातावरण चीते को चाहिए होता है. फिलहाल नौरादेही अभयारण्य में बसे गांवों को विस्थापित किया जा रहा है और वहां भी घास के मैदान विकसित किए जाएंगे. हमारे पास 150 हेक्टेयर से लेकर 250 हेक्टेयर तक के घास के मैदान हैं, जो चीता के रहवास और प्रकृति के हिसाब से काफी अच्छे हैं."
टाइगर रिजर्व का प्रस्ताव भी शासन के पास लंबित : 2018 में नौरादेही अभ्यारण्य में राष्ट्रीय बाघ परियोजना के अंतर्गत राधा बाघिन और किशन बाघ को बसाया गया था, जिन का कुनबा सिर्फ 4 सालों में 12 तक पहुंच गया है. इस सफलता के बाद राज्य सरकार को हाल ही में नौरादेही अभ्यारण्य और दमोह के दुर्गावती अभ्यारण्य को मिलाकर टाइगर रिजर्व बनाने का प्रस्ताव भेजा गया है, हालांकि वह अभी शासन स्तर पर लंबित है.(nauradehi wildlife sanctuary) (kuno cheetah next generation in nauradehi )