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पोल्ट्री कारोबारियों का दर्द: लॉकडाउन में हुए बर्बाद , तीसरी लहर आई तो क्या करेंगे

कोरोना की दूसरी लहर में पोल्ट्री कारोबार(poultry farm business) करीब 50 फीसदी सिमट गया है. पोल्ट्री कारोबारियों की मांग है कि दूध की तरह पोल्ट्री प्रोडक्ट्स को भी जरूरी चीजों में शामिल किया जाए. कारोबी कुछ हद तक प्रशासन की नीतियों को भी इसके लिए जिम्मेदारी मानते हैं.

poultry business ruined
पोल्ट्री कारोबारियों का दर्द
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Published : Jul 5, 2021, 9:12 AM IST

Updated : Jul 5, 2021, 10:56 AM IST

जबलपुर: कोरोना ने कारोबार को कितना नुकसान पहुंचाया है , ये किसी से छिपा नहीं है. पोल्ट्री व्यवसाय(poultry farm business) पर भी कोरोना की भयंकर मार पड़ी है. एक अनुमान के मुताबित कोरोना की दूसरी लहर में करीब 50 फीसदी लोगों ने पोल्ट्री फार्म का काम बंद कर दिया है.

पोल्ट्री कारोबारियों का दर्द: लॉकडाउन में हुए बर्बाद , तीसरी लहर आई तो क्या करेंगे
दूसरी लहर में बर्बाद हुए पोल्ट्री फार्म

जबलपुर पोल्ट्री व्यवसाय का एक बड़ा केंद्र है. भारत की सबसे बड़ी हैचरी जबलपुर में ही है. यहां से पूरे भारत में चूजे भेजे जाते हैं . कोरोना की मार इस पर भी पड़ी. खास तौर पर दूसरी लहर ने पोल्ट्री फार्म की कमर तोड़ दी है. आधे से ज्यादा पोल्ट्री फार्म बंद हो गए. कोरोना की मार तो बड़ा कारण है ही, साथ ही प्रशासन की नीति पर इसके लिए काफी हद तक जिम्मेदार हैं.

पोल्ट्री कारोबारी राहुल चौधरी बताते हैं कि कोरोना की दूसरी लहर में पोल्ट्री का एक्सपीरियंस काफी खराब रहा .पहले लॉकडाउन में पोल्ट्री प्रोडक्ट्स को बेचने के लिए 2 घंटे की छूट मिली थी. लेकिन इस बार तो वो भी नहीं मिली. राहुल ने बताया कि पोल्ट्री प्रोडक्टस को बचाकर नहीं रख सकते. जितना उत्पादन होता है, उतना ही तुरंत बेचना पड़ता है. ज्यादा समय तक रखने से पोल्ट्री प्रोडक्ट खराब हो जाते हैं.

दूध की तरह जरूरी चीजों में शामिल हो

पोल्ट्री प्रोडक्ट्स प्रोटीन के अच्छे सोर्स हैं और सस्ते भी. राहुल की मांग है कि इसे भी दूध की तरह जरूरत के सामान के तहत शामिल करें. जैसे लॉकडाउन में दूथ की दुकानें कुछ देर तक खुली रहीं थी, वैसे ही पोल्ट्री की दुकानें भी खुली रखनी चाहिए थी. सप्लाई बंद करने से प्रोडक्ट खराब हो जाता है. सप्लाई चेन बनाने के लिए हमें समय चाहिए. अचानक लॉकडाउन होने से बड़ी समस्या हो जाती है.लॉकडाउन के कारण पोल्ट्री इंडस्ट्री करीब करीब तबाह हो चुकी है. करीब पचास फीसदी मार्केट शट डाउन है. इसका असर ये हुआ कि पोल्ट्री प्रोडक्ट्स महंगे हो गए हैं. पोल्ट्री में काम आने वाली हर चीज महंगी हो गई है. उपभोक्ताओं को हर चीज महंगी मिल रही है. इसलिए प्रोडक्शन चेन और सप्लाई चेन में सामंजस्य होना जरूरी है. एक भी गड़बड़ हुई तो कारोबार बिखर जाता है.

इसके सिवाय हमें सरकार से कुछ नहीं चाहिए

जबलपुर में करीब 50 फीसदी लोगों ने पोल्ट्री फार्म का काम बंद कर दिया है. सरकार ने हम यही चाहते हैं कि एक फिक्स पॉलिसी बना दे. हमें पता होना चाहिए कि हमें कितना प्रोडक्शन करने की छूट है. इससे हमें आगे की प्लानिंग में मदद मिलेगी. सरकार से हमें सिर्फ इतनी मदद चाहिए कि हमें एक प्लेटफॉर्म मिल जाए. हम प्रोडक्शन कर सकें और सप्लाई चेन डवलप कर सकें. भविष्य में कोरोना की कोई तीसरी लहर आए तो हमारा कारोबार चौपट ना हो. अभी हम कंफ्यूज हैं कि इस काम को करें या नहीं करें. हमें सिर्फ काम का वातावरण चाहिए, काम कैसे करना है ये हमें आता है. हमें सरकार से कुछ नहीं चाहिए .

तीन तरफा मार

पोल्ट्री कारोबार के बर्बाद होने का बड़ा नुकसान उन किसानों को उठाना पड़ा, जिन्होंने मक्के की फसल लगाई थी. क्योंकि मक्के का ज्यादातर इस्तेमाल पोल्ट्री फीड के लिए होता है. इसलिए ₹2000 तक बिकने वाला मक्का सिर्फ ₹600 क्विंटल बिक रहा है. इसके बाद वे कारोबारी थे जो मुर्गी पाल रहे थे या फिर मांस के लिए मुर्गे पाल रहे थे. इनके अंडे और मुर्गे बर्बाद हो गए. सबसे ज्यादा नुकसान इन्हीं लोगों को उठाना पड़ा है. तीसरे वे कारोबारी थे जो पोल्ट्री उत्पाद अंतिम आदमी तक पहुंचा रहे थे. उनकी दुकानें प्रशासन ने बंद करवा दी. इसलिए वह भी बेरोजगार हो गए.

जबलपुर: कोरोना ने कारोबार को कितना नुकसान पहुंचाया है , ये किसी से छिपा नहीं है. पोल्ट्री व्यवसाय(poultry farm business) पर भी कोरोना की भयंकर मार पड़ी है. एक अनुमान के मुताबित कोरोना की दूसरी लहर में करीब 50 फीसदी लोगों ने पोल्ट्री फार्म का काम बंद कर दिया है.

पोल्ट्री कारोबारियों का दर्द: लॉकडाउन में हुए बर्बाद , तीसरी लहर आई तो क्या करेंगे
दूसरी लहर में बर्बाद हुए पोल्ट्री फार्म

जबलपुर पोल्ट्री व्यवसाय का एक बड़ा केंद्र है. भारत की सबसे बड़ी हैचरी जबलपुर में ही है. यहां से पूरे भारत में चूजे भेजे जाते हैं . कोरोना की मार इस पर भी पड़ी. खास तौर पर दूसरी लहर ने पोल्ट्री फार्म की कमर तोड़ दी है. आधे से ज्यादा पोल्ट्री फार्म बंद हो गए. कोरोना की मार तो बड़ा कारण है ही, साथ ही प्रशासन की नीति पर इसके लिए काफी हद तक जिम्मेदार हैं.

पोल्ट्री कारोबारी राहुल चौधरी बताते हैं कि कोरोना की दूसरी लहर में पोल्ट्री का एक्सपीरियंस काफी खराब रहा .पहले लॉकडाउन में पोल्ट्री प्रोडक्ट्स को बेचने के लिए 2 घंटे की छूट मिली थी. लेकिन इस बार तो वो भी नहीं मिली. राहुल ने बताया कि पोल्ट्री प्रोडक्टस को बचाकर नहीं रख सकते. जितना उत्पादन होता है, उतना ही तुरंत बेचना पड़ता है. ज्यादा समय तक रखने से पोल्ट्री प्रोडक्ट खराब हो जाते हैं.

दूध की तरह जरूरी चीजों में शामिल हो

पोल्ट्री प्रोडक्ट्स प्रोटीन के अच्छे सोर्स हैं और सस्ते भी. राहुल की मांग है कि इसे भी दूध की तरह जरूरत के सामान के तहत शामिल करें. जैसे लॉकडाउन में दूथ की दुकानें कुछ देर तक खुली रहीं थी, वैसे ही पोल्ट्री की दुकानें भी खुली रखनी चाहिए थी. सप्लाई बंद करने से प्रोडक्ट खराब हो जाता है. सप्लाई चेन बनाने के लिए हमें समय चाहिए. अचानक लॉकडाउन होने से बड़ी समस्या हो जाती है.लॉकडाउन के कारण पोल्ट्री इंडस्ट्री करीब करीब तबाह हो चुकी है. करीब पचास फीसदी मार्केट शट डाउन है. इसका असर ये हुआ कि पोल्ट्री प्रोडक्ट्स महंगे हो गए हैं. पोल्ट्री में काम आने वाली हर चीज महंगी हो गई है. उपभोक्ताओं को हर चीज महंगी मिल रही है. इसलिए प्रोडक्शन चेन और सप्लाई चेन में सामंजस्य होना जरूरी है. एक भी गड़बड़ हुई तो कारोबार बिखर जाता है.

इसके सिवाय हमें सरकार से कुछ नहीं चाहिए

जबलपुर में करीब 50 फीसदी लोगों ने पोल्ट्री फार्म का काम बंद कर दिया है. सरकार ने हम यही चाहते हैं कि एक फिक्स पॉलिसी बना दे. हमें पता होना चाहिए कि हमें कितना प्रोडक्शन करने की छूट है. इससे हमें आगे की प्लानिंग में मदद मिलेगी. सरकार से हमें सिर्फ इतनी मदद चाहिए कि हमें एक प्लेटफॉर्म मिल जाए. हम प्रोडक्शन कर सकें और सप्लाई चेन डवलप कर सकें. भविष्य में कोरोना की कोई तीसरी लहर आए तो हमारा कारोबार चौपट ना हो. अभी हम कंफ्यूज हैं कि इस काम को करें या नहीं करें. हमें सिर्फ काम का वातावरण चाहिए, काम कैसे करना है ये हमें आता है. हमें सरकार से कुछ नहीं चाहिए .

तीन तरफा मार

पोल्ट्री कारोबार के बर्बाद होने का बड़ा नुकसान उन किसानों को उठाना पड़ा, जिन्होंने मक्के की फसल लगाई थी. क्योंकि मक्के का ज्यादातर इस्तेमाल पोल्ट्री फीड के लिए होता है. इसलिए ₹2000 तक बिकने वाला मक्का सिर्फ ₹600 क्विंटल बिक रहा है. इसके बाद वे कारोबारी थे जो मुर्गी पाल रहे थे या फिर मांस के लिए मुर्गे पाल रहे थे. इनके अंडे और मुर्गे बर्बाद हो गए. सबसे ज्यादा नुकसान इन्हीं लोगों को उठाना पड़ा है. तीसरे वे कारोबारी थे जो पोल्ट्री उत्पाद अंतिम आदमी तक पहुंचा रहे थे. उनकी दुकानें प्रशासन ने बंद करवा दी. इसलिए वह भी बेरोजगार हो गए.

Last Updated : Jul 5, 2021, 10:56 AM IST
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