जबलपुर। प्रदेश सरकार द्वारा ओबीसी आरक्षण 27 प्रतिशत किये जाने से संबंधित याचिका की संयुक्त सुनवाई सोमवार को हाईकोर्ट चीफ जस्टिस रवि विजय कुमार मथिमल और जस्टिस विजय कुमार शुक्ला द्वारा की गयी. याचिकाओं की सुनवाई के दौरान ओबीसी महासभा की तरफ से इंटरविनर बनने का आवेदन देते हुए प्रकरण की सुनवाई सवर्ण और ओबीसी जस्टिस द्वारा नहीं किये जाने की मांग की गयी. युगलपीठ ने नाराजगी व्यक्त करते हुए इंटरविनर आवेदन को खारिज किया. युगलपीठ ने याचिकाओं पर अंतिम सुनवाई 6 दिसम्बर को निर्धारित की है.
सवर्ण और ओबीसी जस्टिस नहीं होने की मांग खारिज
आशिता दुबे सहित अन्य की तरफ से प्रदेश सरकार द्वारा ओबीसी आरक्षण 27 प्रतिशत किये जाने के खिलाफ और पक्ष में लगभग तीन दर्जन याचिकाएं दायर की गयी गयी थीं. याचिकाओं की सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने 6 याचिकाओं पर ओबीसी आरक्षण 27 प्रतिशत किये जाने पर रोक लगा दी थी. सरकार द्वारा स्थगन आदेश वापस लेने के लिए आवेदन दायर किया गया था. हाईकोर्ट ने 1 सितम्बर 2021 को स्थगन आदेश वापस लेने से इंकार करते हुए संबंधित याचिकाओं को अंतिम सुनवाई के निर्देश जारी किये थे.
MP में कोरोना के AY.4.2 वैरिएंट की दस्तक, जानें कितना खतरनाक है यह नया Variant
6 दिसंबर को अगली सुनवाई
याचिका पर सोमवार को हुई सुनवाई के दौरान सरकार की तरफ से बताया गया, कि प्रदेश में ओबीसी वर्ग की संख्या 51 प्रतिशत से अधिक है. सरकार की तरफ से ओबीसी आरक्षण 27 प्रतिशत किये जाने पर लगी रोक हटाने की मांग की गयी. आरक्षण के खिलाफ दायर याचिकाकर्ताओं की तरफ से युगलपीठ को बताया गया कि सर्वाेच्च न्यायालय की संवैधानिक पीठ ने साल 1993 में इंदिरा साहनी तथा साल 2021 में मराठा आरक्षण के मामले में स्पष्ट आदेश दिए हैं कि आरक्षण की सीमा 50 प्रतिशत से अधिक नहीं होना चाहिए. प्रदेश में ओबीसी आरक्षण 27 प्रतिशत किये जाने पर आरक्षण की सीमा 63 प्रतिशत तक पहुंच जायेगी. जनसंख्या के आधार पर आरक्षण का प्रावधान नहीं है. ओबीसी आरक्षण पर लगी रोक हटाने से न्यायालय इंकार कर चूकी है.