जबलपुर। प्राचीन भारत में जब हिंदू धर्म से अलग हुए और धर्मांतरण कर चुके संगठन, पंथ और मजहब सनातन धर्म को चुनौती दे रहे थे. सनातन का प्रभाव कम होता जा रहा है. विदेशी आक्रांता और अक्रमणकारियों के लगातार हमलों से हिंदू विखंडित हो रहे थे. ऐसे में सबसे बड़ा सवाल था सनातन धर्म को न सिर्फ बचाना बल्कि उसे पुनर्स्थापित करना. जिसका बीड़ा उठाया आदि शंकारचार्य ने. उन्होंने संपूर्ण भारतवर्ष की यात्रा आरंभ की जिसे शंकर दिग्विजय यात्रा कहा जाता है. आदि शंकराचार्य की इस यात्रा ने न सिर्फ सनातन धर्म को पुनर्स्थापित किया बल्कि एक राष्ट्र के रूप में अनंतकाल तक भारत के एकीकरण की बुनियाद को मजबूत किया.
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शंकराचार्य ने बनाई थी खास रणनीति: सनातन धर्म को मजबूत करने के लिए शंकराचार्य ने एक विशेष रणनीति तैयार की. जिसके तहत वह भारत के विभिन्न धार्मिक केंद्रों की यात्रा करते और वहां उपस्थित सभी धर्म गुरुओं को तर्क और शास्त्रार्थ की चुनौती देते. शास्त्रार्थ में हारने वाले व्यक्ति को जीतने वाले का शिष्य बनना स्वीकार करना पड़ता था. यह आदि शंकराचार्य और उनके ज्ञान का चमत्कार ही था कि पूरे भारतवर्ष में उन्हें कोई भी नहीं हरा पाया. तत्कालीन बौद्ध और जैन पंथ के कई विद्वान जो हिन्दू धर्म छोड़कर गए थे, आदि शंकराचार्य से प्रभावित होकर उनके शिष्य बन गए और अपने सनातम धर्म की तरफ वापस लौटने लगे. सिर्फ धर्म गुरू ही नहीं कई धनाढ्य व्यापारी, सैनिक, छात्र, यहाँ तक कि अपराधियों ने भी आदि शंकराचार्य से प्रभावित होकर सनातन धर्म का पालन करना स्वीकार किया.
शंकराचार्य ने की महाशक्ति पीठों की स्थापना: भारत के एकीकरण की अपनी यात्रा के क्रम में आदि शंकराचार्य कश्मीर पहुंचे थे जहां हिंदुओं का सबसे पवित्र तीर्थ शारदा पीठ था. जिसे शंकराचार्य ने महा शक्तिपीठ की स्थापना कर पुनर्स्थापित किया. शारदा पीठ आज पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में है. इतिहासकारों के अनुसार वर्तमान मंदिर की स्थापना 5000 वर्षों पहले हुई थी. शारदा पीठ विश्व का सबसे पुराना और महान मंदिर विश्वविद्यालय और ज्ञान का विश्व भर में अनूठा केंद्र था. आदि शंकराचार्य के जीवन पर आधारित पुस्तक ‘शंकर दिग्विजय’ में उनकी कश्मीर यात्रा और शारदा पीठ की यात्रा का वर्णन है. कहा जाता है कि शारदा पीठ के चार द्वारों में से तीन द्वार तभी खुले थे, जब तीन दिशाओं के सर्वज्ञानी शास्त्रार्थ में विजय प्राप्त कर उन द्वारों तक पहुँचे थे दक्षिण द्वार अभी भी बंद था क्योंकि कश्मीर के दक्षिण से आने वाला कोई भी शास्त्रार्थ में इतना पारंगत नहीं था. आदि शंकराचार्य ने तत्कालीन भारतवर्ष के एक ऐसे सन्यासी थे जिसने मात्र 8 वर्षों की उम्र में ही सनातन धर्म के सभी शास्त्रों को पढ़कर उन्हें समझ लिया था. कहा जाता है कि शारदा पीठ के दक्षिण द्वार को खोलने से पहले मां शारदा ने खुद शंकराचार्य से शास्त्रार्थ किया था. उनके तर्कों से प्रभावित हो कर उन्हें सर्वज्ञपीठम की उपाधी दी गई और पीठ का दक्षिण द्वार भी खुल गया. भारत में ज्ञात 52 शक्तिपीठ हैं जहां माता सती के अंग और आभूषण गिरे थे. इन शक्तिपीठों में शारदा पीठ महाशक्ति पीठ है.
4 दिशाओं में 4 मठों की स्थापना की: भारत राष्ट्र के एकीकरण का जो कार्य आदि शंकराचार्य ने किया था वह साधारण मनुष्य के बस की बात नहीं है, केरल के कलाड़ी में नंबूदरी ब्राह्मण शिवगुरु और आर्यम्बा के घर पैदा हुए आदि शंकराचार्य अपने माता-पिता की इकलौती संतान थे. महज 32 वर्ष की आयु में शंकराचार्य ने सनातन धर्म के उत्थान के लिए जो कार्य किया वह यही सिद्ध करता है कि उनका जन्म दैवीय संयोग से ही हुआ था. आदि शंकराचार्य की दिग्विजय यात्रा का उद्देश्य ही था, सनातन धर्म की स्थापना करना. उन्होंने न केवल दूसरे पंथों के विद्वानों को अपना शिष्य बनाया बल्कि सनातन धर्म के ही कुछ वर्ग जो परंपराओं के नाम पर बंटे हुए थे उन्हें भी संगठित किया. भारत की चार दिशाओं में चार मठों की स्थापना का उनका उद्देश्य ही था भारतवर्ष का एकीकरण. आदि शंकराचार्य ने 4 चारों मठों के अलावा पूरे देश में बारह ज्योतिर्लिंगों और 4 धामों की भी स्थापना की थी. शंकराचार्य द्वारा स्थापित मठों में
श्रृंगेरी मठ: श्रृंगेरी शारदा पीठ भारत के दक्षिण में रामेश्वरम् में स्थित है. श्रृंगेरी मठ कर्नाटक के सबसे प्रसिद्ध मठों में से एक है.
गोवर्धन मठ: गोवर्धन मठ उड़ीसा के पुरी में है. गोवर्धन मठ का संबंध भगवान जगन्नाथ मंदिर से है. बिहार से लेकर राजमुंद्री तक और उड़ीसा से लेकर अरुणाचल प्रदेश तक का भाग इस माठ के अंतर्गत आता है.
शारदा मठ: द्वारका मठ को शारदा मठ के नाम से भी जाना जाता है. यह मठ गुजरात में द्वारकाधाम में है.
ज्योतिर्मठ: ज्योतिर्मठ उत्तराखण्ड के बद्रिकाश्रम में है. ऐतिहासिक तौर पर, ज्योतिर्मठ सदियों से वैदिक शिक्षा तथा ज्ञान का एक ऐसा केन्द्र रहा है जिसकी स्थापना 8 वीं सदी में आदिशंकराचार्य ने की थी.