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7 दशकों बाद भी मातृभाषा का अलख जगा रहा बापू का हिंदी तीर्थ

हिंदी यानी हमारी मातृभाषा, जो आज घर-घर में बोली जाती है, लेकिन यह बात कम लोग ही जानते हैं कि हिंदी को जन-जन की भाषा बनाने की शुरुआत महात्मा गांधी ने इंदौर से ही शुरू की थी, यहां आज भी बापू की प्रेरणा से हिंदी के तीर्थ के रूप में हिंदी साहित्य समिति का केंद्र हिंदी साहित्य और हिंदी की समृद्धि का अलख जलाए हुए है.

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Published : Aug 16, 2021, 9:14 PM IST

Hindi Tirtha of Bapu
बापू का हिंदी तीर्थ

इंदौर। रविंद्र नाथ टैगोर मार्ग पर स्थापित हिंदी साहित्य समिति का यह साहित्य केंद्र बीते 111 सालों से हिंदी साहित्य और भाषा का ऐसा तीर्थ है, जिसके प्रमुख अनुयाई खुद महात्मा गांधी रह चुके हैं, फिलहाल मातृभाषा के प्रचार के साथ हिंदी साहित्य की समृद्धि को लेकर यह देश का एकमात्र ऐसा केंद्र है, जो हिंदी साहित्य और हिंदी भाषा के प्रचार प्रसार के लिए अपने तमाम प्रयासों के साथ आज भी दुनिया भर में हिंदी की समृद्धि और अभिव्यक्ति को लेकर सक्रिय है.

आजादी के आंदोलन में भाषाएं बन रही थी बाधा

स्वतंत्रता संग्राम के पहले हिंदी साहित्य समिति का यह केंद्र तब चर्चा में आया था, जब पहली बार सारे देश में राष्ट्रभाषा का प्रसार कर देशवासियों को एक सूत्र में बांधने के उद्देश्य से इंदौर में 29 जुलाई 1910 को मध्य भारत हिंदी साहित्य समिति की स्थापना हुई, उस दौर में हिंदी की समृद्धि और जागरूकता की जरूरत इसलिए भी महसूस की जा रही थी, क्योंकि स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान भारत के विभिन्न क्षेत्रों में प्रत्येक क्षेत्र की अलग-अलग क्षेत्रीय बोली संवाद और भाषाएं आजादी के आंदोलन को लेकर होने वाले संवाद के दौरान बाधा बन रही थी.

महात्मा गांधी ने इंदौर से हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाने का किया शंखनाद

गांधीजी ने महसूस किया कि एक भाषा के जरिए ही, राष्ट्र को एक सूत्र में पिरोया जा सकता है, लिहाजा महात्मा गांधी ने 1918 में इंदौर पहुंचकर, हिंदी साहित्य समिति के इस कार्यालय से ही सबसे पहले हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने का शंखनाद किया, यहां आज भी हिंदी की विरासत में महात्मा गांधी के प्रयासों के साथ उनके संकल्प के प्रमाण मौजूद हैं.

5 राज्यों में एक साथ हुआ हिन्दी भाषा का प्रचार

देश के अन्य हिंदी भाषी राज्यों में हिंदी के प्रचार के लिए इसी परिसर से अपने पुत्र देवदत्त गांधी को हिंदी के प्रचार प्रसार के लिए मद्रास भेजने का ऐलान भी किया था, इसके बाद पहली बार यहीं से देश के अन्य गैर हिंदी भाषी राज्यों में हिंदी के प्रचार प्रसार के लिए धन संग्रह भी किया था, इसके बाद अन्य करीब 5 राज्यों में अलग-अलग 5 लोगों के जरिए हिंदी के प्रचार प्रसार के अभियान की शुरुआत हुई.

24वें हिंदी साहित्य सम्मेलन का आयोजन

साल 1924 में एक मौका ऐसा भी आया था, जब कई रियासतों में हिंदी के प्रयोग के लिए हिंदी साहित्य समिति को अभियान चलाना पड़ा, इसके साथ ही 1935 में इंदौर में ही 24वें हिंदी साहित्य सम्मेलन का आयोजन महात्मा गांधी की उपस्थिति में ही संपन्न हुआ. 1940 में हिंदी विद्यापीठ की स्थापना भी हुई, राजभाषा अभियान समिति के पहले राष्ट्रीय सम्मेलन से हिन्दी भाषा को गति मिली, जो 1948 में राहुल सांकृत्यायन की अध्यक्षता में आयोजित हुआ.

दक्षिण भारतीय हिंदी प्रचारकों का हुआ सम्मान

1958 में आचार्य विनोबा भावे और महादेवी वर्मा की अगुवाई में ही हिंदी की वैज्ञानिक और तकनीकी पुस्तकों की राष्ट्रीय प्रदर्शनी यही आयोजित की गई, इसी दौरान 1966 में यहां पहली बार उन दक्षिण भारतीय हिंदी के प्रचारकों का सम्मान हुआ, जो महात्मा गांधी की प्रेरणा के जरिए गैर हिंदी भाषी राज्यों में हिंदी के प्रचार प्रसार के लिए सक्रिय थे, इसके बाद धीरे धीरे हिंदी जन-जन की बोली के रूप में स्थापित हो गई. इसी दरमियान 1978 में हिंदी साहित्य समिति ने साहित्यिक पत्रिका वीणा का स्वर्ण जयंती समारोह रामधारी सिंह दिनकर, अशोक बाजपेई, न्यायमूर्ति गोवर्धन लाल ओझा प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री वीरेंद्र कुमार सकलेचा की मौजूदगी में संपन्न हुआ.

1984 में हुआ हीरक जयंती समारोह

इसके बाद साहित्यिक पत्रिका वीणा का हीरक जयंती समारोह 1984 में तत्कालीन शिक्षा मंत्री डॉ शंकर दयाल शर्मा की मौजूदगी में हुआ, हिंदी की विरासत का यह कारवां 1985 में तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ ज्ञानी जेल सिंह और उप प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी की मौजूदगी में हिंदी के समसामयिक अध्ययन केंद्र के मुखपत्र के विमोचन का साक्षी भी बना. 2001 में फिल्म तत्कालीन उपराष्ट्रपति कृष्णकांत की अध्यक्षता में यहीं पर स्वयंसेवी संगठनों का प्रादेशिक सम्मेलन आयोजित किया गया, इसके बाद 2002 में तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह साहित्यकार डॉक्टर विद्यानिवास मिश्र निर्मल वर्मा हिमांशु जोशी और अशोक चक्रधर की उपस्थिति में हिंदी साहित्य सम्मेलन का 54 वां अधिवेशन यहीं पर आयोजित हुआ.

अमृत उत्सव वर्ष समारोह का आयोजन

तत्कालीन उपराष्ट्रपति भैरों सिंह शेखावत ने हिंदी साहित्य की पत्रिका वीणा के संपादकीय प्रबंधन के लिए अमृत अभिनंदन का आयोजन किया, इसके अगले वर्ष 2003 में वीणा के अमृत उत्सव वर्ष समारोह का आयोजन हैदराबाद में आयोजित किया गया, जिसमें ज्ञानपीठ सम्मान से अलंकृत साहित्यकार डॉ सी नारायण रेड्डी और मुनींद्र जी समेत घोड़े राव जाधव की उपस्थिति में हुआ, इसी प्रकार 2008 को हिंदी साहित्य समिति द्वारा संस्कृत शोध केंद्र का शुभारंभ भी किया गया जिसका शुभारंभ तत्कालीन राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने किया.

चार मंजिला भवन में पुस्तकालय

मध्य भारत हिंदी साहित्य समिति, राष्ट्रभाषा हिंदी के विस्तार और संवर्धन के क्षेत्र में कार्यरत है, फिलहाल हिंदी के इस केंद्र में देश के शीर्षस्थ साहित्यकारों के विचार विनिमय और साहित्य सृजन की धरोहर भी मौजूद है, यहां हिंदी को और अधिक समृद्ध और उसकी जनप्रियता पूरे विश्व में बढ़ाने के लिए यहां संसाधन केंद्र के रूप में भारती भवन का निर्माण भी किया गया है, जहां करीब चार मंजिला भवन में पुस्तकालय वाचनालय के अलावा हिंदी भाषा और साहित्य के क्षेत्र के उच्च स्तरीय शोध को बढ़ावा देने के लिए 2 शोध संस्थान एक अध्ययन कक्ष और एक सभागृह विकसित किया गया है.

मध्य भारत हिंदी साहित्य समिति द्वारा स्थापित डॉ परमेश्वर दत्त शर्मा शोध संस्थान के माध्यम से अभी तक 55 शोधार्थियों ने हिंदी के विभिन्न शोध किए हैं, यहां हिंदी साहित्य की समृद्धि का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि यहां स्थित पुस्तकालय में देश की सबसे प्राचीन पुस्तकों के अलावा पांडुलिपियों और हिंदी साहित्य की करीब 22000 पुस्तकें मौजूद हैं, हिंदी भाषा के लिए यह एकमात्र ऐसा केंद्र है, जहां समसामयिक अध्ययन केंद्र द्वारा ज्ञान विज्ञान तकनीकी और समाज से जुड़े विभिन्न पहलुओं पर चल रही नवीनतम प्रवृत्तियों की जानकारी आम लोगों को हिंदी भाषा में देने का प्रयास होता है.

देश के ख्यात वैज्ञानिक संदीप बसु, डॉक्टर माशेलकर, न्यायमूर्ति जे सी वर्मा, न्यायमूर्ति बीएस कोकजे बीडी ज्ञानी, वरिष्ठ पत्रकार बीजी वर्गीज, प्रभाष जोशी, वेद प्रताप वैदिक, राहुल देव और उद्योगपति के साथ ही सांसद नवीन जिंदल समेत देश के कई नागरिक शामिल हैं, इसके अलावा देश के अनेक मूर्धन्य साहित्यकार विचारकों तथा चिंतकों का हिंदी साहित्य समिति से जुड़ाव रहा है. इनमें गांधीजी के अलावा सुमित्रानंदन पंत, पंडित माखनलाल चतुर्वेदी, महादेवी वर्मा, रामधारी सिंह दिनकर, नोबेल पुरस्कार प्राप्त वैज्ञानिक सीवी रमन, पूर्व राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह, सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश रहे गोवर्धन लाल ओझा प्रमुख हैं.

फिलहाल यहां हिंदी एवं सभी भारतीय भाषाओं के संबंध में तथा कंप्यूटर तथा सूचना तकनीक में भारतीय भाषाओं के प्रयोग को बढ़ावा देने के लिए प्रयास किए जा रहे हैं इसके अलावा हिंदी साहित्य समिति द्वारा भाषा एवं साहित्य के साथ अब अभिव्यक्ति के सभी माध्यम कला संगीत तथा संस्कृति को प्रोत्साहित करने का संकल्प भी लिया गया है इसके अलावा भाषा और साहित्य के क्षेत्र में दीर्घकालिक राष्ट्रीय सेवाओं से मिले अनुभवों के आधार पर अब राष्ट्रीय संस्कृति के विकास और विस्तार के लिए यहां एक अत्यधिक समृद्ध शाली मध्य प्रदेश का सृजन केंद्र बनाने की प्रक्रिया भी चल रही है.

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82 वर्षों से हिंदी पत्रिका का प्रकाशन

मध्य भारत हिंदी साहित्य समिति हिंदी की सेवा के रूप में बीते 82 सालों से वीणा नामक मासिक पत्रिका का प्रकाशन भी कर रहा है, जो 1927 से हिंदी के संवर्धन और हिंदीभाषी प्रदेशों में हिंदी की जनता बढ़ाने के उद्देश्य से प्रकाशित हो रही है, जिसे लेकर खुद महादेवी वर्मा का मानना था कि हिंदी भाषा और साहित्य का इतिहास वीणा के उल्लेख और प्रयासों के बिना अधूरा रहेगा.

इंदौर। रविंद्र नाथ टैगोर मार्ग पर स्थापित हिंदी साहित्य समिति का यह साहित्य केंद्र बीते 111 सालों से हिंदी साहित्य और भाषा का ऐसा तीर्थ है, जिसके प्रमुख अनुयाई खुद महात्मा गांधी रह चुके हैं, फिलहाल मातृभाषा के प्रचार के साथ हिंदी साहित्य की समृद्धि को लेकर यह देश का एकमात्र ऐसा केंद्र है, जो हिंदी साहित्य और हिंदी भाषा के प्रचार प्रसार के लिए अपने तमाम प्रयासों के साथ आज भी दुनिया भर में हिंदी की समृद्धि और अभिव्यक्ति को लेकर सक्रिय है.

आजादी के आंदोलन में भाषाएं बन रही थी बाधा

स्वतंत्रता संग्राम के पहले हिंदी साहित्य समिति का यह केंद्र तब चर्चा में आया था, जब पहली बार सारे देश में राष्ट्रभाषा का प्रसार कर देशवासियों को एक सूत्र में बांधने के उद्देश्य से इंदौर में 29 जुलाई 1910 को मध्य भारत हिंदी साहित्य समिति की स्थापना हुई, उस दौर में हिंदी की समृद्धि और जागरूकता की जरूरत इसलिए भी महसूस की जा रही थी, क्योंकि स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान भारत के विभिन्न क्षेत्रों में प्रत्येक क्षेत्र की अलग-अलग क्षेत्रीय बोली संवाद और भाषाएं आजादी के आंदोलन को लेकर होने वाले संवाद के दौरान बाधा बन रही थी.

महात्मा गांधी ने इंदौर से हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाने का किया शंखनाद

गांधीजी ने महसूस किया कि एक भाषा के जरिए ही, राष्ट्र को एक सूत्र में पिरोया जा सकता है, लिहाजा महात्मा गांधी ने 1918 में इंदौर पहुंचकर, हिंदी साहित्य समिति के इस कार्यालय से ही सबसे पहले हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने का शंखनाद किया, यहां आज भी हिंदी की विरासत में महात्मा गांधी के प्रयासों के साथ उनके संकल्प के प्रमाण मौजूद हैं.

5 राज्यों में एक साथ हुआ हिन्दी भाषा का प्रचार

देश के अन्य हिंदी भाषी राज्यों में हिंदी के प्रचार के लिए इसी परिसर से अपने पुत्र देवदत्त गांधी को हिंदी के प्रचार प्रसार के लिए मद्रास भेजने का ऐलान भी किया था, इसके बाद पहली बार यहीं से देश के अन्य गैर हिंदी भाषी राज्यों में हिंदी के प्रचार प्रसार के लिए धन संग्रह भी किया था, इसके बाद अन्य करीब 5 राज्यों में अलग-अलग 5 लोगों के जरिए हिंदी के प्रचार प्रसार के अभियान की शुरुआत हुई.

24वें हिंदी साहित्य सम्मेलन का आयोजन

साल 1924 में एक मौका ऐसा भी आया था, जब कई रियासतों में हिंदी के प्रयोग के लिए हिंदी साहित्य समिति को अभियान चलाना पड़ा, इसके साथ ही 1935 में इंदौर में ही 24वें हिंदी साहित्य सम्मेलन का आयोजन महात्मा गांधी की उपस्थिति में ही संपन्न हुआ. 1940 में हिंदी विद्यापीठ की स्थापना भी हुई, राजभाषा अभियान समिति के पहले राष्ट्रीय सम्मेलन से हिन्दी भाषा को गति मिली, जो 1948 में राहुल सांकृत्यायन की अध्यक्षता में आयोजित हुआ.

दक्षिण भारतीय हिंदी प्रचारकों का हुआ सम्मान

1958 में आचार्य विनोबा भावे और महादेवी वर्मा की अगुवाई में ही हिंदी की वैज्ञानिक और तकनीकी पुस्तकों की राष्ट्रीय प्रदर्शनी यही आयोजित की गई, इसी दौरान 1966 में यहां पहली बार उन दक्षिण भारतीय हिंदी के प्रचारकों का सम्मान हुआ, जो महात्मा गांधी की प्रेरणा के जरिए गैर हिंदी भाषी राज्यों में हिंदी के प्रचार प्रसार के लिए सक्रिय थे, इसके बाद धीरे धीरे हिंदी जन-जन की बोली के रूप में स्थापित हो गई. इसी दरमियान 1978 में हिंदी साहित्य समिति ने साहित्यिक पत्रिका वीणा का स्वर्ण जयंती समारोह रामधारी सिंह दिनकर, अशोक बाजपेई, न्यायमूर्ति गोवर्धन लाल ओझा प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री वीरेंद्र कुमार सकलेचा की मौजूदगी में संपन्न हुआ.

1984 में हुआ हीरक जयंती समारोह

इसके बाद साहित्यिक पत्रिका वीणा का हीरक जयंती समारोह 1984 में तत्कालीन शिक्षा मंत्री डॉ शंकर दयाल शर्मा की मौजूदगी में हुआ, हिंदी की विरासत का यह कारवां 1985 में तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ ज्ञानी जेल सिंह और उप प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी की मौजूदगी में हिंदी के समसामयिक अध्ययन केंद्र के मुखपत्र के विमोचन का साक्षी भी बना. 2001 में फिल्म तत्कालीन उपराष्ट्रपति कृष्णकांत की अध्यक्षता में यहीं पर स्वयंसेवी संगठनों का प्रादेशिक सम्मेलन आयोजित किया गया, इसके बाद 2002 में तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह साहित्यकार डॉक्टर विद्यानिवास मिश्र निर्मल वर्मा हिमांशु जोशी और अशोक चक्रधर की उपस्थिति में हिंदी साहित्य सम्मेलन का 54 वां अधिवेशन यहीं पर आयोजित हुआ.

अमृत उत्सव वर्ष समारोह का आयोजन

तत्कालीन उपराष्ट्रपति भैरों सिंह शेखावत ने हिंदी साहित्य की पत्रिका वीणा के संपादकीय प्रबंधन के लिए अमृत अभिनंदन का आयोजन किया, इसके अगले वर्ष 2003 में वीणा के अमृत उत्सव वर्ष समारोह का आयोजन हैदराबाद में आयोजित किया गया, जिसमें ज्ञानपीठ सम्मान से अलंकृत साहित्यकार डॉ सी नारायण रेड्डी और मुनींद्र जी समेत घोड़े राव जाधव की उपस्थिति में हुआ, इसी प्रकार 2008 को हिंदी साहित्य समिति द्वारा संस्कृत शोध केंद्र का शुभारंभ भी किया गया जिसका शुभारंभ तत्कालीन राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने किया.

चार मंजिला भवन में पुस्तकालय

मध्य भारत हिंदी साहित्य समिति, राष्ट्रभाषा हिंदी के विस्तार और संवर्धन के क्षेत्र में कार्यरत है, फिलहाल हिंदी के इस केंद्र में देश के शीर्षस्थ साहित्यकारों के विचार विनिमय और साहित्य सृजन की धरोहर भी मौजूद है, यहां हिंदी को और अधिक समृद्ध और उसकी जनप्रियता पूरे विश्व में बढ़ाने के लिए यहां संसाधन केंद्र के रूप में भारती भवन का निर्माण भी किया गया है, जहां करीब चार मंजिला भवन में पुस्तकालय वाचनालय के अलावा हिंदी भाषा और साहित्य के क्षेत्र के उच्च स्तरीय शोध को बढ़ावा देने के लिए 2 शोध संस्थान एक अध्ययन कक्ष और एक सभागृह विकसित किया गया है.

मध्य भारत हिंदी साहित्य समिति द्वारा स्थापित डॉ परमेश्वर दत्त शर्मा शोध संस्थान के माध्यम से अभी तक 55 शोधार्थियों ने हिंदी के विभिन्न शोध किए हैं, यहां हिंदी साहित्य की समृद्धि का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि यहां स्थित पुस्तकालय में देश की सबसे प्राचीन पुस्तकों के अलावा पांडुलिपियों और हिंदी साहित्य की करीब 22000 पुस्तकें मौजूद हैं, हिंदी भाषा के लिए यह एकमात्र ऐसा केंद्र है, जहां समसामयिक अध्ययन केंद्र द्वारा ज्ञान विज्ञान तकनीकी और समाज से जुड़े विभिन्न पहलुओं पर चल रही नवीनतम प्रवृत्तियों की जानकारी आम लोगों को हिंदी भाषा में देने का प्रयास होता है.

देश के ख्यात वैज्ञानिक संदीप बसु, डॉक्टर माशेलकर, न्यायमूर्ति जे सी वर्मा, न्यायमूर्ति बीएस कोकजे बीडी ज्ञानी, वरिष्ठ पत्रकार बीजी वर्गीज, प्रभाष जोशी, वेद प्रताप वैदिक, राहुल देव और उद्योगपति के साथ ही सांसद नवीन जिंदल समेत देश के कई नागरिक शामिल हैं, इसके अलावा देश के अनेक मूर्धन्य साहित्यकार विचारकों तथा चिंतकों का हिंदी साहित्य समिति से जुड़ाव रहा है. इनमें गांधीजी के अलावा सुमित्रानंदन पंत, पंडित माखनलाल चतुर्वेदी, महादेवी वर्मा, रामधारी सिंह दिनकर, नोबेल पुरस्कार प्राप्त वैज्ञानिक सीवी रमन, पूर्व राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह, सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश रहे गोवर्धन लाल ओझा प्रमुख हैं.

फिलहाल यहां हिंदी एवं सभी भारतीय भाषाओं के संबंध में तथा कंप्यूटर तथा सूचना तकनीक में भारतीय भाषाओं के प्रयोग को बढ़ावा देने के लिए प्रयास किए जा रहे हैं इसके अलावा हिंदी साहित्य समिति द्वारा भाषा एवं साहित्य के साथ अब अभिव्यक्ति के सभी माध्यम कला संगीत तथा संस्कृति को प्रोत्साहित करने का संकल्प भी लिया गया है इसके अलावा भाषा और साहित्य के क्षेत्र में दीर्घकालिक राष्ट्रीय सेवाओं से मिले अनुभवों के आधार पर अब राष्ट्रीय संस्कृति के विकास और विस्तार के लिए यहां एक अत्यधिक समृद्ध शाली मध्य प्रदेश का सृजन केंद्र बनाने की प्रक्रिया भी चल रही है.

अपनी भाषा में ही सीखें और सिखाएं, बच्चों की नींव होगी मजबूत

82 वर्षों से हिंदी पत्रिका का प्रकाशन

मध्य भारत हिंदी साहित्य समिति हिंदी की सेवा के रूप में बीते 82 सालों से वीणा नामक मासिक पत्रिका का प्रकाशन भी कर रहा है, जो 1927 से हिंदी के संवर्धन और हिंदीभाषी प्रदेशों में हिंदी की जनता बढ़ाने के उद्देश्य से प्रकाशित हो रही है, जिसे लेकर खुद महादेवी वर्मा का मानना था कि हिंदी भाषा और साहित्य का इतिहास वीणा के उल्लेख और प्रयासों के बिना अधूरा रहेगा.

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