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अनूठी भोजनशाला में सैकड़ों तोते चुग रहे दाना, दशकों पुराना है ये याराना - पक्षी

तोतों की अनूठी भोजनशाला में दशकों से सैकड़ों तोते दाना-पानी चुग रहे हैं, उनकी इंसानों से दोस्ती भी इस कदर हो गयी है कि उनके उड़ाने के बावजूद वो आसपास ही मंडराते हैं.

तोतों की अनूठी भोजनशाला
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Published : Nov 17, 2019, 2:55 PM IST

Updated : Nov 17, 2019, 3:44 PM IST

इंदौर। कहते हैं पक्षियों में तोता अनोखा-मृदुभाषी होता है, जिसकी मधुर आवाज किसी संगीत से कम नहीं लगती. तोतों की ऐसी सुमधुर आवाज राजू सिसंगिया के सैलून की छत पर सुनने को मिलता है, जहां सैकड़ों की संख्या में रोजाना तोते आते हैं. ये तोते यूं ही नहीं आते, इसकी वजह ये है कि रोजाना सिमटते जंगलों और खेतों में आहार तलाशना बड़ी चुनौती है. ऐसे में तोते जैसे खूबसूरत पक्षी के लिए ये परेशानी और भी बढ़ जाती है, तोतों की इस परेशानी का समाधान है अनूठी भोजनशाला. जो बीते एक दशक से जनसहयोग से चल रही है. जिसमें एक-दो नहीं बल्कि सैकड़ों तोते रोजाना दाना-पानी चुगते हैं.

तोतों की अनूठी भोजनशाला

शहर के राजू सिसंगिया ने 1992 में अपनी मां की प्रेरणा से अपने सैलून की छत पर कबूतरों को दाना देना शुरू किया था, इस प्रयास के बाद कबूतरों के साथ धीरे-धीरे दाना-पानी की तलाश में तोते भी बड़ी संख्या में पहुंचने लगे. इतनी बड़ी संख्या में तोतों के आने के बाद यहां उनके लिए भी दाना पानी का इंतजाम किया जाने लगा. खास बात ये है कि ये सभी लोग साईं भक्त भी हैं. उनका मानना है कि साईं भक्ति की बदौलत सभी अपनी व्यवस्था के अनुरूप तोतों के भोजनशाला के लिए दाना-पानी जुटाने में मदद करते हैं.

राजू सहित भोजनशाला के अन्य सदस्यों की तोतों से इस कदर दोस्ती हो गई है कि अब उनको देखकर तोते उड़ते ही नहीं हैं, कई सालों से दाना-पानी डालने के चलते उड़ाने पर भी ये तोते नहीं उड़ते. ऐसे में कई लोग तोतों की मांग करते हैं, लेकिन वे किसी तोते को पिंजरे में कैद नहीं रहने देना चाहते और न ही समिति के सदस्य खुद ही तोते पालते हैं. यही वजह है कि खुले आसमान में उड़ने वाले ये सुंदर पक्षी उनके भक्ति भाव और आस्था के प्रतीक बन चुके हैं. ये राजू सिसंगिया का पक्षियों के प्रति अनोखा प्रेम ही है, जो स्थापित की गई साईं बाबा की मूर्ति और प्याऊ में भी नजर आती है.

इंदौर। कहते हैं पक्षियों में तोता अनोखा-मृदुभाषी होता है, जिसकी मधुर आवाज किसी संगीत से कम नहीं लगती. तोतों की ऐसी सुमधुर आवाज राजू सिसंगिया के सैलून की छत पर सुनने को मिलता है, जहां सैकड़ों की संख्या में रोजाना तोते आते हैं. ये तोते यूं ही नहीं आते, इसकी वजह ये है कि रोजाना सिमटते जंगलों और खेतों में आहार तलाशना बड़ी चुनौती है. ऐसे में तोते जैसे खूबसूरत पक्षी के लिए ये परेशानी और भी बढ़ जाती है, तोतों की इस परेशानी का समाधान है अनूठी भोजनशाला. जो बीते एक दशक से जनसहयोग से चल रही है. जिसमें एक-दो नहीं बल्कि सैकड़ों तोते रोजाना दाना-पानी चुगते हैं.

तोतों की अनूठी भोजनशाला

शहर के राजू सिसंगिया ने 1992 में अपनी मां की प्रेरणा से अपने सैलून की छत पर कबूतरों को दाना देना शुरू किया था, इस प्रयास के बाद कबूतरों के साथ धीरे-धीरे दाना-पानी की तलाश में तोते भी बड़ी संख्या में पहुंचने लगे. इतनी बड़ी संख्या में तोतों के आने के बाद यहां उनके लिए भी दाना पानी का इंतजाम किया जाने लगा. खास बात ये है कि ये सभी लोग साईं भक्त भी हैं. उनका मानना है कि साईं भक्ति की बदौलत सभी अपनी व्यवस्था के अनुरूप तोतों के भोजनशाला के लिए दाना-पानी जुटाने में मदद करते हैं.

राजू सहित भोजनशाला के अन्य सदस्यों की तोतों से इस कदर दोस्ती हो गई है कि अब उनको देखकर तोते उड़ते ही नहीं हैं, कई सालों से दाना-पानी डालने के चलते उड़ाने पर भी ये तोते नहीं उड़ते. ऐसे में कई लोग तोतों की मांग करते हैं, लेकिन वे किसी तोते को पिंजरे में कैद नहीं रहने देना चाहते और न ही समिति के सदस्य खुद ही तोते पालते हैं. यही वजह है कि खुले आसमान में उड़ने वाले ये सुंदर पक्षी उनके भक्ति भाव और आस्था के प्रतीक बन चुके हैं. ये राजू सिसंगिया का पक्षियों के प्रति अनोखा प्रेम ही है, जो स्थापित की गई साईं बाबा की मूर्ति और प्याऊ में भी नजर आती है.

Intro:इंदौर
लगातार सिमट रहे जंगलों और बुवाई नहीं होने के कारण खाली पड़े खेतों में भोजन तलाशना पक्षियों के लिए भी इन दिनों किसी चुनौती से कम नहीं है तोते जैसी खूबसूरत पक्षी के लिए तो यह और भी ज्यादा परेशानी भरा है लेकिन इंदौर में तोतों की इसी परेशानी का एकमात्र साधन है तोतों की अनूठी भोजनशाला, बीते एक दशक से जनसहयोग से चलने वाली इस भोजन शाला में एक-दो नहीं बल्कि सैकड़ों तोते रोज ही दाना पानी चुगकर अपने घुटनों की तरह उड़ जाते हैं



Body:दरअसल इंदौर के राजू सिसंगिया ने 1992 में अपनी मां की प्रेरणा से अपने सलून की छत पर कबूतरों को दाना डालना शुरू किया था लेकिन कबूतरों के साथ धीरे-धीरे दाना पानी की तलाश में भटकते तोते भी यहां बड़ी संख्या में आने लगे इसके बाद तो तुमको यहां दाना पानी जुटाने के लिए 15 20 लोग जन सहयोग से दाना पानी की व्यवस्था करने लगे खास बात यह थी कि यह सभी लोग साईं भक्त भी थे और साईं भक्ति की बदौलत सभी अपने-अपने व्यवस्था के अनुरूप तो तुम की भोजनशाला के लिए दाना पानी इकट्ठा करने में सहयोग करते थे अब कई सालों से दाना पानी जलने के कारण यहां तोतों की भोजनशाला चलाने वाले सदस्यों को देखकर भी तोते उड़ते नहीं है ऐसे में कई लोग इनसे तो दो की मांग भी करते हैं लेकिन वह किसी तोते को पिंजरे में कैद नहीं रहने देना चाहते ना ही इस समिति के सदस्य खुद ही तोते पालते हैं यही वजह है कि उन्मुक्त गगन में उड़ने वाले यह सुंदर पक्षी उनके भक्ति भाव और आस्था के प्रतीक बन चुके हैं जो उनके द्वारा स्थापित की गई प्याऊ और साईं बाबा की मूर्ति में भी नजर आते हैं


Conclusion: बाइट राजू सिसंगिया, तोते की भोजनशाला चलाने वाले
Last Updated : Nov 17, 2019, 3:44 PM IST
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