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ऑर्गेनिक के नाम पर गोलमाल ! क्या असली, क्या नकली

सेहत को ध्यान में रखते हुए देश में जैविक उत्पादों की मांग तेजी से बढ़ रही है. लेकिन ग्राहक अभी भी कन्फ्यूज हैं कि क्या ये जैविक उत्पाद वास्तव में असली हैं. कहीं उन्हें जैविक के नाम पर सामान्य प्रोडक्ट तो नहीं थमाए जा रहे.

confusion on organic products
ऑर्गेनिक के नाम पर गोलमाल !
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Published : Apr 2, 2021, 11:23 AM IST

इंदौर। अधिक उत्पादन और फसलों को बीमारियों से बचाने के लिए कीटनाशकों का जरूरत से ज्यादा इस्तेमाल अब चिंता की बात हो गई है. इसलिए दुनिया के साथ साथ हमारे देश में भी जैविक खेती जोर पकड़ रही है. ऑर्गेनिक प्रॉडक्ट्स को लोग ज्यादा दाम देकर भी खरीद रहे हैं, सिर्फ ये सोचकर कि ये सौ फीसदी जैविक हैं. ज्यादातर लोग असमंजस में रहते हैं कि जैविक के नाम पर जो वो खरीद रहे हैं, वो सच में ऑर्गेनिक है भी या नहीं. ग्राहकों के इसी असमंजस पर अरबों रुपयों का कारोबार खड़ा हो गया है.

ऑर्गेनिक के नाम पर गोलमाल !

ऑर्गेनिक प्रोडक्ट, क्या असली-क्या नकली ?

देश में जैविक उत्पादों के नाम पर अरबों का बिजनस चल रहा है. कुछ असली और कुछ नकली. ऑर्गेनिक प्रोडक्ट्स दूसरे उत्पादों की तुलना में तीन से चार गुना महंगे बिकते हैं. यही मुनाफा धोखाधड़ी को बढ़ावा भी देता है. कई बार सामान्य उत्पाद को जैविक उत्पाद का लेबल लगाकर तीन गुना ज्यादा दाम पर बेच दिया जाता है. आम ग्राहक के पास ऐसी कोई सुविधा नहीं है, जिससे वो जान सके कि असल में जैविक उत्पाद कौन से हैं. ज्यादातर तो सिर्फ organic का लेबल देखकर ही product खरीद लेते हैं. भारतीय कृषि सेक्टर में जैविक और अजैविक को लेकर पारदर्शी व्यवस्था नहीं है. वास्तविक उत्पादों की पहचान नहीं होने के कारण ग्राहक ठगे जा रहे हैं . आमतौर पर माना जाता है कि जिस प्रोडक्ट को FSSAI का सर्टिफिकेट मिल जाता है, वो असली है. लेकिन ये सच्चाई नहीं है.

कैसे तय होता है, ये जैविक उत्पाद है ?

भारत में ऑर्गेनिक उत्पादों के सर्टिफिकेशन की व्यवस्था नेशनल ऑर्गेनिक प्रोग्राम और नेशनल ऑर्गेनिक प्रोडक्ट ऑफ प्रोग्राम के तहत चिह्नित की गई है. करीब 32 एजेंसी किसानों को organic product का सर्टिफिकेट देती हैं. इसके लिए सामान्य तौर पर फसल उगाने से लेकर उसकी बिक्री तक की पूरी प्रक्रिया की लगातार तीन साल तक जांच होती है. इसके बाद किसान को अपनी उपज का C1, C2 या C3 सर्टिफिकेट मिलता है. इसके अलावा USDA, ऑर्गेनिक, जैविक भारत, COPLIENT रिसर्च NON GMO VERIFIED और RSOCA जैसे सर्टिफिकेशन को भी उत्पाद के जैविक होने का आधार माना जाता है.

लोग मांगते हैं ऑर्गेनिक होने का सबूत

कुछ ग्राहक ऑर्गेनिक उत्पाद के सर्टिफिकेट से ही संतुष्ट हो जाते हैं. कई उपभोक्ता ऐसे भी होते हैं, तो इतने भर नहीं मानते. ऐसे में किसानों की परेशानियां और बढ़ जाती हैं. कई ऐसे किसान हैं जो वास्तविक सर्टिफिकेशन चाहते हैं. लेकिन सर्टिफिकेशन की सरकारी प्रक्रिया में ही ढील पोल और भ्रष्टाचार व्याप्त होने से धोखाधड़ी करने वाले भी उनके प्रतियोगी बन गए हैं.

आहार विशेषज्ञों का फोकस पोषक तत्वों पर

आहार विशेषज्ञ मानते हैं कि कुछ चीजें ऐसी हैं जिनमें जैविक और सामान्य उत्पाद होने से खास फर्क नहीं पड़ता. लेकिन कुछ प्रोडक्ट ऐसे हैं जिन्हें organic ही लें, तो बेहतर है.

बढ़ रहा जैविक उत्पादों का बाजार

आम लोगों को जैविक उत्पादों का महत्व समझ में आने के बाद अब बड़े-बड़े एग्रोमार्ट से लेकर तरह-तरह के शॉपिंग मॉल में जैविक उत्पाद नजर आ रहे हैं .ये बात और है कि इनकी प्रमाणिकता को अभी भी शक की नजर से देखा जाता है. जैविक उत्पाद महंगा होने के कारण अभी सिर्फ पैसे वालों की पहुंच में ही है. इसे और बढ़ावा देने की जरूरत है. ताकि इसकी लागत कम हो सके और organic product आम लोगों की पहुंच में आ जाए.

इंदौर। अधिक उत्पादन और फसलों को बीमारियों से बचाने के लिए कीटनाशकों का जरूरत से ज्यादा इस्तेमाल अब चिंता की बात हो गई है. इसलिए दुनिया के साथ साथ हमारे देश में भी जैविक खेती जोर पकड़ रही है. ऑर्गेनिक प्रॉडक्ट्स को लोग ज्यादा दाम देकर भी खरीद रहे हैं, सिर्फ ये सोचकर कि ये सौ फीसदी जैविक हैं. ज्यादातर लोग असमंजस में रहते हैं कि जैविक के नाम पर जो वो खरीद रहे हैं, वो सच में ऑर्गेनिक है भी या नहीं. ग्राहकों के इसी असमंजस पर अरबों रुपयों का कारोबार खड़ा हो गया है.

ऑर्गेनिक के नाम पर गोलमाल !

ऑर्गेनिक प्रोडक्ट, क्या असली-क्या नकली ?

देश में जैविक उत्पादों के नाम पर अरबों का बिजनस चल रहा है. कुछ असली और कुछ नकली. ऑर्गेनिक प्रोडक्ट्स दूसरे उत्पादों की तुलना में तीन से चार गुना महंगे बिकते हैं. यही मुनाफा धोखाधड़ी को बढ़ावा भी देता है. कई बार सामान्य उत्पाद को जैविक उत्पाद का लेबल लगाकर तीन गुना ज्यादा दाम पर बेच दिया जाता है. आम ग्राहक के पास ऐसी कोई सुविधा नहीं है, जिससे वो जान सके कि असल में जैविक उत्पाद कौन से हैं. ज्यादातर तो सिर्फ organic का लेबल देखकर ही product खरीद लेते हैं. भारतीय कृषि सेक्टर में जैविक और अजैविक को लेकर पारदर्शी व्यवस्था नहीं है. वास्तविक उत्पादों की पहचान नहीं होने के कारण ग्राहक ठगे जा रहे हैं . आमतौर पर माना जाता है कि जिस प्रोडक्ट को FSSAI का सर्टिफिकेट मिल जाता है, वो असली है. लेकिन ये सच्चाई नहीं है.

कैसे तय होता है, ये जैविक उत्पाद है ?

भारत में ऑर्गेनिक उत्पादों के सर्टिफिकेशन की व्यवस्था नेशनल ऑर्गेनिक प्रोग्राम और नेशनल ऑर्गेनिक प्रोडक्ट ऑफ प्रोग्राम के तहत चिह्नित की गई है. करीब 32 एजेंसी किसानों को organic product का सर्टिफिकेट देती हैं. इसके लिए सामान्य तौर पर फसल उगाने से लेकर उसकी बिक्री तक की पूरी प्रक्रिया की लगातार तीन साल तक जांच होती है. इसके बाद किसान को अपनी उपज का C1, C2 या C3 सर्टिफिकेट मिलता है. इसके अलावा USDA, ऑर्गेनिक, जैविक भारत, COPLIENT रिसर्च NON GMO VERIFIED और RSOCA जैसे सर्टिफिकेशन को भी उत्पाद के जैविक होने का आधार माना जाता है.

लोग मांगते हैं ऑर्गेनिक होने का सबूत

कुछ ग्राहक ऑर्गेनिक उत्पाद के सर्टिफिकेट से ही संतुष्ट हो जाते हैं. कई उपभोक्ता ऐसे भी होते हैं, तो इतने भर नहीं मानते. ऐसे में किसानों की परेशानियां और बढ़ जाती हैं. कई ऐसे किसान हैं जो वास्तविक सर्टिफिकेशन चाहते हैं. लेकिन सर्टिफिकेशन की सरकारी प्रक्रिया में ही ढील पोल और भ्रष्टाचार व्याप्त होने से धोखाधड़ी करने वाले भी उनके प्रतियोगी बन गए हैं.

आहार विशेषज्ञों का फोकस पोषक तत्वों पर

आहार विशेषज्ञ मानते हैं कि कुछ चीजें ऐसी हैं जिनमें जैविक और सामान्य उत्पाद होने से खास फर्क नहीं पड़ता. लेकिन कुछ प्रोडक्ट ऐसे हैं जिन्हें organic ही लें, तो बेहतर है.

बढ़ रहा जैविक उत्पादों का बाजार

आम लोगों को जैविक उत्पादों का महत्व समझ में आने के बाद अब बड़े-बड़े एग्रोमार्ट से लेकर तरह-तरह के शॉपिंग मॉल में जैविक उत्पाद नजर आ रहे हैं .ये बात और है कि इनकी प्रमाणिकता को अभी भी शक की नजर से देखा जाता है. जैविक उत्पाद महंगा होने के कारण अभी सिर्फ पैसे वालों की पहुंच में ही है. इसे और बढ़ावा देने की जरूरत है. ताकि इसकी लागत कम हो सके और organic product आम लोगों की पहुंच में आ जाए.

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