ग्वालियर। बाल मजदूरी के प्रति विरोध एवं जगरूकता फैलाने के मकसद से हर साल 12 जून को विश्व बालश्रम निषेध दिवस मनाया जाता है. देश-प्रदेश में बाल मजदूरी को रोकने के लिए कई कानून हैं, उनका पालन किस हद तक होता है ये अलग बात है, पर समय-समय पर सूबे के मुखिया शिवराज सिंह चौहान, जनप्रतिनिधियों और तमाम शासकीय अधिकारी सोशल मीडिया सहित बड़े-बड़े स्लोगन दीवारों पर भी चस्पा कर प्रचार कराते रहते हैं. लेकिन उनका क्या जो इस कानून के दायरे में नहीं आते पर पारिवारिक हालातों के कारण पढ़ाई-खिलाई करने की उम्र में काम करने को मजबूर हैं.
ग्वालियर में ऐसा ही मजबूर बच्चा है साबिर, जो पिता के गुजर जाने और मां की तबियत खराब रहने के कारण अपना और अपने छोटे भाई बहनों का पेट पालने के लिए रास्ते में चाट का ठेला लगाता है और किसी तरह चार पैसे कमा कर मां की दवा और भाई-बहन के लिए खाने का जुगाड़ करता है.साबिर का कहना है कि वह ठेला नहीं लगाना चाहता, लेकिन सरकारी मदद न मिलने से वह मजबूर हुआ. वह अब प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से गुहार लगा रहा है कि वह पढ़ना चाहता है, उसकी मदद करें.
बता दें कि साबिर पिता के गुजरने के बाद पिछले 2 साल से चाट का ठेला लगाता है, क्योंकि उसके सर पर अपने 12 साल के छोटे भाई आमिर और 10 साल की छोटी बहन चांदनी को पढ़ाने के साथ ही घर के खर्चे का बोझ हैं. साबिर रोज शिक्षा के मंदिर जीवाजी यूनिवर्सिटी के मुख्य गेट पर ठेला लगाता है. इस दौरान उसका 10 साल का मासूम छोटा भाई आमिर काम में मदद करता है. साबिर महल गांव के सोनी हलवाई की गली में किराए के मकान में रहता है.
शहर के इस मुख्य चौराहे से कुछ दूर पर ही कलेक्ट्रेट है, जिससे से अंदाजा लगाया जा सकता है की यहां से कितने नेता मंत्री, अधिकारी, जनप्रतिनिधी और समाज सेवी रोजाना निकलते होंगे, पर बीते दो साल में आज तक किसी की नजर इस 14 साल के मासूम पर नहीं गई, जो परिवार की जिम्मेदारियों के तले अपना भविष्य चौपट करता जा रहा है. बात अकेले साबिर की नहीं है ऐसे कई मासूम हैं जो अपनी मजबूरियों के बोझ में दबे चले जा रहे हैं. इसी लिए जरूरत है की सरकार विज्ञापनों और मंचों के भाषणों से इतर जमीन पर कुछ करे, जिससे इस तरह देश का भविष्य चौपट न हो.