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आठ छात्रों को पढ़ाने के लिए चार शिक्षक, 24 लाख खर्च करके भी सरकार को मिलता है जीरो

ग्वालियर के रमतापुरा क्षेत्र के प्राइमरी स्कूल में आठ बच्चों को पढ़ाने के लिए चार शिक्षक तैनात है. स्कूल में छात्रों की संख्या कम होने की वजह से एक ही कमरे में सारी क्लासें चलती हैं. स्कूल के प्रभारी हेड मास्टर आर के पराशर का कहना है कि स्कूल में बच्चों की संख्या कम होने से ये स्थिति बनी हुई है

प्राइमरी स्कूल रमतापुरा ग्वालियर
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Published : Jul 17, 2019, 4:28 PM IST

ग्वालियर। 20 लाख की आबादी वाले ग्वालियर शहर में एक प्राइमरी स्कूल ऐसा भी है. जहां सिर्फ आठ छात्रों को पढ़ाने के लिए चार शिक्षक भी तैनात हैं, लेकिन एक भी छात्र स्कूल नहीं पहुंचता. आलम ये है कि पहली से पांचवीं तक का ये स्कूल एक ही कमरे में संचालित होता है.

1952 में रामतापुरा में बना सरकारी प्राइमरी स्कूल इन दिनों अजीबो-गरीब हालत से गुजर रहा है. जहां पहली से पांचवीं तक फाइलों में बच्चों की दर्ज संख्या चार से आठ है, जबकि स्कूल में तालीम के लिए एक भी बच्चा नहीं पहुंचता. बच्चों को पढ़ाने के लिए स्कूल में चार शिक्षक भी तैनात हैं. स्कूल में छात्रों की संख्या कम होने की वजह से एक ही कमरे में सारी क्लासें चलती हैं.

इस स्कूल में आठ छात्रों को पढ़ाने आते है चार छात्र

स्कूल के प्रभारी हेड मास्टर आर के पराशर का कहना है कि स्कूल में बच्चों की संख्या कम होने से ये स्थिति बनी हुई है. उन्होंने बताया कि 3 शिक्षकों में एक छुट्टी पर है, जबकि दो शिक्षक जरुरी काम से बाहर गए हैं. स्कूल में छात्र-छात्राओं की संख्या ज्यादा नहीं होने से कम छात्र ही स्कूल आते हैं क्योंकि इस क्षेत्र के अधिकतर बच्चे प्राइवेट स्कूलों में पढ़ने जाते हैं.

शिक्षा का अधिकार अधिनियम के तहत 8 छात्रों वाले इस स्कूल में एक से ज्यादा शिक्षक नहीं होने चाहिए, लेकिन इस स्कूल में चार-चार शिक्षक मौजूद हैं. सरकार को इस स्कूल पर 24 लाख रुपए सालाना से ज्यादा खर्चा होता है. बेहतर शिक्षा के लिए सरकार करोड़ों रुपए खर्च करती है, पर हालात ज्यादा बदलते नजर नहीं आ रहे. इस मामले में जब जिला पंचायत सीईओ शिवम वर्मा से ईटीवी भारत ने बात की तो उन्होंने जिला शिक्षा अधिकारी को फोन लगाकर तत्काल जांच करने की बात कहते हुए दोषियों पर कार्रवाई के निर्देश भी दिए हैं.

ग्वालियर। 20 लाख की आबादी वाले ग्वालियर शहर में एक प्राइमरी स्कूल ऐसा भी है. जहां सिर्फ आठ छात्रों को पढ़ाने के लिए चार शिक्षक भी तैनात हैं, लेकिन एक भी छात्र स्कूल नहीं पहुंचता. आलम ये है कि पहली से पांचवीं तक का ये स्कूल एक ही कमरे में संचालित होता है.

1952 में रामतापुरा में बना सरकारी प्राइमरी स्कूल इन दिनों अजीबो-गरीब हालत से गुजर रहा है. जहां पहली से पांचवीं तक फाइलों में बच्चों की दर्ज संख्या चार से आठ है, जबकि स्कूल में तालीम के लिए एक भी बच्चा नहीं पहुंचता. बच्चों को पढ़ाने के लिए स्कूल में चार शिक्षक भी तैनात हैं. स्कूल में छात्रों की संख्या कम होने की वजह से एक ही कमरे में सारी क्लासें चलती हैं.

इस स्कूल में आठ छात्रों को पढ़ाने आते है चार छात्र

स्कूल के प्रभारी हेड मास्टर आर के पराशर का कहना है कि स्कूल में बच्चों की संख्या कम होने से ये स्थिति बनी हुई है. उन्होंने बताया कि 3 शिक्षकों में एक छुट्टी पर है, जबकि दो शिक्षक जरुरी काम से बाहर गए हैं. स्कूल में छात्र-छात्राओं की संख्या ज्यादा नहीं होने से कम छात्र ही स्कूल आते हैं क्योंकि इस क्षेत्र के अधिकतर बच्चे प्राइवेट स्कूलों में पढ़ने जाते हैं.

शिक्षा का अधिकार अधिनियम के तहत 8 छात्रों वाले इस स्कूल में एक से ज्यादा शिक्षक नहीं होने चाहिए, लेकिन इस स्कूल में चार-चार शिक्षक मौजूद हैं. सरकार को इस स्कूल पर 24 लाख रुपए सालाना से ज्यादा खर्चा होता है. बेहतर शिक्षा के लिए सरकार करोड़ों रुपए खर्च करती है, पर हालात ज्यादा बदलते नजर नहीं आ रहे. इस मामले में जब जिला पंचायत सीईओ शिवम वर्मा से ईटीवी भारत ने बात की तो उन्होंने जिला शिक्षा अधिकारी को फोन लगाकर तत्काल जांच करने की बात कहते हुए दोषियों पर कार्रवाई के निर्देश भी दिए हैं.

Intro:ग्वालियर- 20 लाख की आबादी वाले ग्वालियर शहर में एक सरकारी प्राइमरी स्कूल ऐसा भी है। जहां 4 छात्रों को पढ़ाने के लिए 4 शिक्षक तैनात है लेकिन कोई भी छात्र इस स्कूल में पढ़ने नहीं आता है। कक्षा एक से पांचवीं तक का यह स्कूल एक ही कमरे में संचालित होता है तो आइए आपको लेकर चलते हैं ऐसे ही एक सरकारी स्कूल में.......



Body:ग्वालियर शहर में सन 1952 से शुरू हुआ रामतापुरा सरकारी प्राइमरी स्कूल इन दिनों अजीबो गरीब हालात में है। इस स्कूल की पहली कक्षा एक से पांचवीं तक कागजों में बच्चों की संख्या चार से आठ है लेकिन स्कूल में पढ़ाई के लिए कभी कबार एक ही बच्चा आता है। बच्चों को पानी के लिए यहां 4 शिक्षक तैनात हैं। इस एक कमरे वाली स्कूल का जायजा लेने जब हमारी टीम पहुंची तो यहां एक भी छात्र नहीं मिला लेकिन प्रभारी हेड मास्टर मौजूद थे। उन्होंने बताया कि बागी 3 शिक्षकों में एक छुट्टी पर है वहीं 2 शिक्षक काम से बाहर गए हैं हेड मास्टर का कहना है कि आज दो बच्चे आई थी लेकिन घर चली गई 1952 में संचालित सरकारी स्कूल की हालत पर शिक्षा विभाग ने ध्यान नहीं दिया। इस इलाके के बच्चे निजी स्कूलों में पढ़ने जाते हैं। विभागीय अफसर ध्यान देती है तो हालात ऐसे नहीं होते शिक्षा का अधिकार अधिनियम के तहत 8 छात्र संख्या वाली इस स्कूल में 1 से ज्यादा शिक्षक नहीं होना था पहले 2 शिक्षक थी। वहीं कुछ साल पहले ग्रामीण इलाकों में तैनात 2 शिक्षकों ने इस स्कूल में तबादला करवा लिया सरकार का इस स्कूल पर 24 लाख रुपए सालाना से ज्यादा खर्चा होता है।



Conclusion:बच्चों की बेहतर शिक्षा के लिए सरकार करोड़ों रुपए खर्च करती है लेकिन हालात ज्यादा बदलते नजर नहीं आ रही है। खराब पढ़ाई के चलते सरकारी स्कूल के हालात शहरी इलाकों में ही बदतर है तो दूरदराज के स्कूल की स्थिति को आसानी से समझा जा सकता है। इस मामले को लेकर जिला पंचायत सीओ शिवम वर्मा से ईटीवी भारत ने बात की तो उन्हीने जिला शिक्षा अधिकारी को फोन लगाकर तत्काल जांच के आदेश दे दिए है और दोषियों पर कार्यवाही के निर्देश दे दिए है ।

बाईट - आर के पराशर , प्रभारी हेड मास्टर

बाईट - शिवम वर्मा , जिला पंचायत सीओ
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