ग्वालियर। 20 लाख की आबादी वाले ग्वालियर शहर में एक प्राइमरी स्कूल ऐसा भी है. जहां सिर्फ आठ छात्रों को पढ़ाने के लिए चार शिक्षक भी तैनात हैं, लेकिन एक भी छात्र स्कूल नहीं पहुंचता. आलम ये है कि पहली से पांचवीं तक का ये स्कूल एक ही कमरे में संचालित होता है.
1952 में रामतापुरा में बना सरकारी प्राइमरी स्कूल इन दिनों अजीबो-गरीब हालत से गुजर रहा है. जहां पहली से पांचवीं तक फाइलों में बच्चों की दर्ज संख्या चार से आठ है, जबकि स्कूल में तालीम के लिए एक भी बच्चा नहीं पहुंचता. बच्चों को पढ़ाने के लिए स्कूल में चार शिक्षक भी तैनात हैं. स्कूल में छात्रों की संख्या कम होने की वजह से एक ही कमरे में सारी क्लासें चलती हैं.
स्कूल के प्रभारी हेड मास्टर आर के पराशर का कहना है कि स्कूल में बच्चों की संख्या कम होने से ये स्थिति बनी हुई है. उन्होंने बताया कि 3 शिक्षकों में एक छुट्टी पर है, जबकि दो शिक्षक जरुरी काम से बाहर गए हैं. स्कूल में छात्र-छात्राओं की संख्या ज्यादा नहीं होने से कम छात्र ही स्कूल आते हैं क्योंकि इस क्षेत्र के अधिकतर बच्चे प्राइवेट स्कूलों में पढ़ने जाते हैं.
शिक्षा का अधिकार अधिनियम के तहत 8 छात्रों वाले इस स्कूल में एक से ज्यादा शिक्षक नहीं होने चाहिए, लेकिन इस स्कूल में चार-चार शिक्षक मौजूद हैं. सरकार को इस स्कूल पर 24 लाख रुपए सालाना से ज्यादा खर्चा होता है. बेहतर शिक्षा के लिए सरकार करोड़ों रुपए खर्च करती है, पर हालात ज्यादा बदलते नजर नहीं आ रहे. इस मामले में जब जिला पंचायत सीईओ शिवम वर्मा से ईटीवी भारत ने बात की तो उन्होंने जिला शिक्षा अधिकारी को फोन लगाकर तत्काल जांच करने की बात कहते हुए दोषियों पर कार्रवाई के निर्देश भी दिए हैं.