ETV Bharat / city

जेसी मिल के श्रमिकों को सुप्रीम कोर्ट का झटका, हाईकोर्ट के फैसले को रखा बरकरार

जेसी मिल के श्रमिकों को सुप्रीम कोर्ट का झटका, हाईकोर्ट के फैसले को रखा बरकरार, बंद पड़ी जेसी मिल की बेशकीमती जमीन सरकारी घोषित

author img

By

Published : Mar 1, 2019, 3:09 PM IST

हाईकोर्ट ग्वालियर बेंच

ग्वालियर। हाईकोर्ट की ग्वालियर बेंच द्वारा बंद पड़ी जेसी मिल की अरबों रुपए कीमत की बेशकीमती जमीन को सरकारी घोषित करने को सुप्रीम कोर्ट ने सही ठहराया है. सुप्रीम कोर्ट ने श्रमिकों की ओर से दायर की गई एसएलपी को खारिज कर दिया है. इससे जेसी मिल के हजारों श्रमिकों को तगड़ा झटका लगा है.

हाईकोर्ट ग्वालियर बेंच

दरअसल बिरला ग्रुप की जेसी मिल को 1992 में बंद कर दिया गया था. इस मिल में 8000 मजदूर काम करते थे. सिंधिया शासकों ने 90 साल पहले इस जमीन को बिरला ग्रुप को दिया था. मिल की जमीन तत्कालीन सिंधिया रियासत ने उद्योग-धंधे की स्थापना के लिए लीज पर दिया था, लेकिन मिल बंद होने के बाद 712 बीघा इलाके में फैली इस विशाल मिल और आवासीय क्षेत्र के मालिकाना हक को लेकर लंबी लड़ाई चलती रही है, जिसे हाईकोर्ट ने सरकारी माना था.

हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ मजदूर संगठनों की ओर से विशेष अनुमति याचिका सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की गई थी लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के आदेश को सही ठहराया और मजदूरों की याचिका को खारिज कर दिया. यह मामला पहले कंपनी जज के यहां चलता रहा. कंपनी जज ने परिसमापक अधिकारी की नियुक्ति की और मिल की जमीन को कंपनी की जमीन माना. इस आदेश के खिलाफ शासन ने हाईकोर्ट में अपील की थी और हाईकोर्ट ने इस 712 बीघा जमीन को सरकारी माना था.

undefined

मिल मजदूरों का कहना था कि उनका वेतन और दूसरी लेनदारियां मिल प्रबंधन ने नहीं दी हैं, इसलिए मिल की संपत्ति बेचकर उनका भुगतान किया जाए. इस बीच मजदूर कांग्रेस ने हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की, लेकिन युगल पीठ ने लीज दी गई जमीन को सरकारी माना था. खास बात यह है कि अशोक टॉकीज जहां पर अब मॉल का निर्माण किया जा रहा है और बिरला अस्पताल की जमीन दोनों अब सरकारी घोषित हो गई हैं. लेकिन मजदूर संगठनों ने अभी भी हार नहीं मानी है. वह सुप्रीम कोर्ट में रिवीजन याचिका दाखिल करने की बात कह रहे हैं.

ग्वालियर। हाईकोर्ट की ग्वालियर बेंच द्वारा बंद पड़ी जेसी मिल की अरबों रुपए कीमत की बेशकीमती जमीन को सरकारी घोषित करने को सुप्रीम कोर्ट ने सही ठहराया है. सुप्रीम कोर्ट ने श्रमिकों की ओर से दायर की गई एसएलपी को खारिज कर दिया है. इससे जेसी मिल के हजारों श्रमिकों को तगड़ा झटका लगा है.

हाईकोर्ट ग्वालियर बेंच

दरअसल बिरला ग्रुप की जेसी मिल को 1992 में बंद कर दिया गया था. इस मिल में 8000 मजदूर काम करते थे. सिंधिया शासकों ने 90 साल पहले इस जमीन को बिरला ग्रुप को दिया था. मिल की जमीन तत्कालीन सिंधिया रियासत ने उद्योग-धंधे की स्थापना के लिए लीज पर दिया था, लेकिन मिल बंद होने के बाद 712 बीघा इलाके में फैली इस विशाल मिल और आवासीय क्षेत्र के मालिकाना हक को लेकर लंबी लड़ाई चलती रही है, जिसे हाईकोर्ट ने सरकारी माना था.

हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ मजदूर संगठनों की ओर से विशेष अनुमति याचिका सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की गई थी लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के आदेश को सही ठहराया और मजदूरों की याचिका को खारिज कर दिया. यह मामला पहले कंपनी जज के यहां चलता रहा. कंपनी जज ने परिसमापक अधिकारी की नियुक्ति की और मिल की जमीन को कंपनी की जमीन माना. इस आदेश के खिलाफ शासन ने हाईकोर्ट में अपील की थी और हाईकोर्ट ने इस 712 बीघा जमीन को सरकारी माना था.

undefined

मिल मजदूरों का कहना था कि उनका वेतन और दूसरी लेनदारियां मिल प्रबंधन ने नहीं दी हैं, इसलिए मिल की संपत्ति बेचकर उनका भुगतान किया जाए. इस बीच मजदूर कांग्रेस ने हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की, लेकिन युगल पीठ ने लीज दी गई जमीन को सरकारी माना था. खास बात यह है कि अशोक टॉकीज जहां पर अब मॉल का निर्माण किया जा रहा है और बिरला अस्पताल की जमीन दोनों अब सरकारी घोषित हो गई हैं. लेकिन मजदूर संगठनों ने अभी भी हार नहीं मानी है. वह सुप्रीम कोर्ट में रिवीजन याचिका दाखिल करने की बात कह रहे हैं.

Intro:ग्वालियर
हाईकोर्ट की ग्वालियर बेंच द्वारा बंद पड़ी जेसी मिल की अरबों रुपए कीमत की बेशकीमती जमीन को सरकारी घोषित करने को सुप्रीम कोर्ट ने सही ठहराया है। सुप्रीम कोर्ट ने श्रमिकों की ओर से दायर की गई एसएलपी को खारिज कर दिया है। इससे जेसी मिल के हजारों श्रमिकों को तगड़ा झटका लगा है।


Body:दरअसल बिरला ग्रुप की जेसी मिल को 1992 में बंद कर दिया गया था। इस मिल में 8000 मजदूर काम करते थे। मिल को जमीन तत्कालीन सिंधिया रियासत ने उद्योग धंधे की स्थापना के लिए लीज पर दिया था लेकिन मिल बंद होने के बाद 712 बीघा इलाके में फैली इस विशाल मिल और आवासीय क्षेत्र के मालिकाना हक को लेकर लंबी लड़ाई चलती रही है। पहले यहां प्रशासक नियुक्त किया गया था। मिल मजदूरों का कहना था कि उनकी वेतन तथा दूसरी लेनदारिया मिल प्रबंधन ने नहीं दी है इसलिए मिल की संपत्ति बेच कर उनका भुगतान किया जाए। इस बीच मजदूर कांग्रेस ने हाई कोर्ट में याचिका दाखिल की लेकिन युगल पीठ ने लीज दी गई जमीन को सरकारी माना था।


Conclusion:हाई कोर्ट के आदेश के खिलाफ विशेष अनुमति याचिका मजदूर संगठनों की ओर से सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की गई। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के आदेश को सही ठहराया और मजदूरों की याचिका को खारिज कर दिया। सिंधिया शासकों ने 90 साल पहले इस जमीन को बिरला ग्रुप को दिया था। यह मामला पहले कंपनी जज के यहां चलता रहा। कंपनी जज ने परिसमापक अधिकारी की नियुक्ति की तथा मिल की जमीन को कंपनी की जमीन माना। इस आदेश के खिलाफ शासन ने हाई कोर्ट में अपील की थी और हाई कोर्ट ने इस 712 बीघा जमीन को सरकारी माना था। खास बात यह है कि अशोक टॉकीज जहां अब मॉल का निर्माण किया जा रहा है और बिरला अस्पताल की जमीन भी अब सरकारी घोषित हो गई है। लेकिन मजदूर संगठनों ने अभी भी हार नहीं मानी है वह सुप्रीम कोर्ट में रिवीजन याचिका दाखिल करने की बात कह रहे हैं।
बाइट अशोक जैन मजदूर संगठनों के अधिवक्ता हाई कोर्ट ग्वालियर
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.