छिंदवाड़ा। कोरोना के बढ़ते मरीजों के चलते अब लगभग सभी सरकारी अस्पतालों में कोरोना के मरीज भर्ती किए जा रहे हैं. जिससे प्रेग्नेंट महिलाओं के परिजन उनकी डिलीवरी सरकारी अस्पताल में कराने से डर रहे हैं. यही वजह है कि परिजन प्राईवेट अस्पतालों का रुख कर रहे हैं,लेकिन प्राईवेट अस्पतालों सामान्य दिनों की अपेक्षा कोरोना काल में खर्चा बढ़ गया, जिससे मध्यम वर्ग और गरीबों की परेशानियां सबसे ज्यादा बढ़ गई हैं.
बढ़ गया डिलीवरी का खर्चा
कोरोना के डर से मजबूरन लोग निजी अस्पतालों में प्रसव करा रहे हैं, लेकिन कोरोना कॉल में निजी अस्पतालों ने भी अपनी फीस बढ़ा दी है. आलम ये है कि कोरोना से पहले निजी अस्पतालों में डिलीवरी का खर्चा 20 से 30 हजार रुपए आता था. वो अब बढ़कर 50 से 60 हजार रुपए तक हो गया है. जो मध्यम और गरीब वर्ग के लिए परेशानियों का सबब बना हुआ है.
प्रसूता नीता शिवहरे ने ईटीवी भारत को बताया कि कोरोना की वजह से उन्होंने अपनी डिलीवरी निजी अस्पताल में कराई, जिससे उन्हें ज्यादा खर्चा आया. उन्होंने बताया कि निजी अस्पताल में डिलीवरी कराने से उन्हे किसी प्रकार की सरकारी मदद भी नहीं मिल पाई, जबकि अन्य कई खर्चें भी बढ़ जाते हैं.
50 से 60 हजार में हो रही नार्मल डिलीवरी
कोरोना की वजह से आम आदमी सुरक्षित डिलीवरी चाहता है. यही वजह है कि वह तमाम सरकारी योजनाओं को दरकिनार कर निजी अस्पतालों का रुख कर रहा है, क्योंकि निजी अस्पतालों में एक डिलीवरी पर 50 से 60 हजार रुपए खर्च हो रहा है, जबकि डिलीवरी के दौरान नर्सो की पीपीई किट और रुम को के सेनिटाइज करने का खर्चा तक मरीजों से ही लिया जा रहा है. इसके अलावा एंबुलेंस से घर तक आने और जाने का खर्चा भी मरीज के हिस्से में ही आ रहा है.
घबराएं न महिलाएं
हालांकि छिंदवाड़ा जिला अस्तपाल की स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ श्वेता पाठक ने बताया कि इस मुश्किल दौर में निजी अस्पतालों में डिलीवरी का खर्चा तो बढ़ गया, क्योंकि निजी डॉक्टर अपने हिसाब से फीस तय करते हैं. डॉ श्वेता पाठक कहती हैं कि ये मुश्किल दौर है, जहां प्रेगनेंट महिलाओं को सावधानी बरतने की जरुरत तो है, लेकिन डरने की जररुत नहीं. ऐसा नहीं है कि सरकार अस्पतालों में कोई सुविधा नहीं है. सरकारी अस्पताल में भी सुरक्षित डिलीवरी कराई जा रही है.
निजी अस्पतालों में बढ़े खर्चे
- निजी अस्पतालों में एक डिलीवरी पर खर्च हो रहे 50 से 60 हजार रुपए
- पीपीई किट का पैसा भी मरीजों के खर्च में जोड़ा जा रहा
- अस्पताल के रुम को सैनिटाइज करने का खर्चा भी मरीज से लिया जा रहा
- एंबुलेंस का खर्च भी मरीज को ही देना पड़ रहा है
सरकारी अस्पताल में प्रसव पर मिलती है सहायता
मातृ एवं शिशु मृत्यु दर को रोकने के लिए अस्पतालों में प्रसव कराने के लिए सरकार भी प्रोत्साहित करती है. इसलिए भी सरकार संस्थागत डिलीवरी होने पर ग्रामीण क्षेत्रों में 14 सौ रुपए और शहरी महिलाओं को 1 हजार रुपए देती है, जबकि ऑपरेशन के तहत डिलीवरी होने पर 22 सौ रुपए की सहायता दी जाती है.
इतना ही नहीं मुख्यमंत्री प्रसूति सहायता योजना के तहत अगर दंपत्ति का संबल कार्ड में नाम है तो पहले और दूसरे बच्चे के जन्म पर महिला बाल विकास विभाग 14 हजार 600 की सहायता राशि देता है, लेकिन कोरोन का डर इतना बढ़ गया है कि लोग इन सरकारी योजनाओं का लाभ भी नहीं लेना चाहते. कोरोना वायरस की वजह से प्रेग्नेंट महिलाएं रुटीन चेकअप के लिए भी अस्पताल जाने से घबरा रही हैं. यही वजह है कि निजी अस्पतालों में डिलीवरी कराने में न सिर्फ प्रेग्नेंट महिलाए बल्कि उनके परिजन भी सेफ फील कर रहे हैं.