छिन्दवाड़ा(Chhindwara)। आस्था के नाम पर छिंदवाड़ा के पांढुर्णा (Pandhurna) में खेले जाने वाला 'खूनी खेल' गोटमार (Gotmar Mela) को मंगलवार (Tuesday) को खेला गया. इस दौरान सौकड़ों लोग घायल (Injured) हो गए. किसी का सिर फूट गया, तो किसी की टांग टूट गई. काफी बड़ी संख्या में लोगों के घायल होने के बाद अब लोग इलाज के लिए अस्पताल (Hospital) जा रहे हैं. घायलों के परिजन का रो-रोकर बुरा हाल है. सभी ने प्रशासन (Administration) से मांग की है कि इस खूनी खेल को बंद करना चाहिए.
गोटमार मेले में सैंकड़ो लोग घायल
पोला पर्व के दूसरे दिन गोटमार मेला खेला जाता है. इस मेले में पलाश के लंबे पेड़ को जाम नदी के बीच में एक झंडे के साथ खड़ा किया जाता है. इस झंडे को तोड़ने के नाम पर दोनों गांव के लोग एक दूसरे पर पत्थर बरसाते हैं. पथराव उन लोगों के ऊपर बरसाए जाते हैं, जो बीच नदी में खड़े झंडे को हटाने की कोशिश करते हैं. जिस गांव का व्यक्ति उस झंडे को वहां से हटाने में सफल हो जाता है, वह गांव विजयी माना जाता है. पथराव तब तक नहीं रुकता जब तक झंडा नदी के बीच से हटा न लिया जाए. इसी परंपरा के चलते कई लोग घायल हुए हैं. ऐसा पहली बार नहीं हुआ है. हर साल गोटमार मेले के दौरान काफी बड़ी संख्या में लोग घायल होते हैं.
किसी का पैर टूटा, किसी का सिर
परंपरा के नाम पर खूनी खेल खेलते वक्त महेंद्र कड़वे नाम के एक ग्रामीण के पैरों में चोट लगी. गोटमार के दौरान महेंद्र का पैर फैक्चर हो गया. स्थिति ये है कि डॉक्टरों ने ऑपरेशन करने के लिए बोला है. सिविल अस्पताल पांढुर्ना में महेंद्र कड़वे की मां और पत्नी का रो-रोकर बुरा हाल है. घायल के परिजनों ने इस खूनी परंपरा पर लगाम लगाने की मांग की है.
खूनी परंपरा के नाम से मशहूर गोटमार मेले को बंद करने के लिए प्रशासन लगातार प्रयास करता रहा है. इस बार भी धारा-144 लगाई गई. आम जनता के लिए मेले पर प्रतिबंध भी है, लेकिन पत्थरों का खेल जारी है. वहीं दूसरी तरफ कई प्रशासनिक अधिकारियों को हाथ-पर-हाथ रखकर इस खूनी खेले का आनंद लेते देखा गया.
अपनों को खोने वाले चाहते हैं कि बंद हो परंपरा
इस खूनी खेल में अब तक करीब 13 लोगों की जान जा चुकी है. गोटमार की परंपरा के नाम पर पांढुर्ना के रहने वाले देवानंद वघाले की भी मौत हो चुकी है. उनके भाई का कहना है कि परंपरा बंद होनी चाहिए और उसकी जगह कोई अच्छा मेला लगे, ताकि खून बहना बंद हो. शासन ने इस परंपरा को कई बार बंद करने की कोशिश की लेकिन आस्था के आगे किसी की नहीं चली और परंपरा लगातार चली आ रही है.