भोपाल/ ग्वालियर। मध्यप्रदेश की राजनीति में अचानक से पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती की सक्रियता ने सूबे के सियासी तापमान को बढ़ा दिया है. उमा ऐसे वक्त में एक्टिव नजर आ रही है. जब बीजेपी प्रदेश में डिफेंसिव मोड में दिख रही है. सियासी पंडितों का मानना है कि सूबे की सियासत में उमा की वापसी के पीछे बीजेपी की कोई बड़ी रणनीति हो सकती है.
सूबे में उमा की सक्रियता का अंदाजा उनके इस बयान से भी लगाया जा सकता है. जिसमें उन्होंने कहा कि वह मध्यप्रदेश की राजनीति से न कभी दूर थीं और न कभी दूर रहेंगी. उमा के इस बयान का सियासी पंडित अलग अलग विश्लेषण कर रहे हैं क्योंकि वो ऐसे वक्त में सूबे की सियासत में एक्टिव हुई हैं, जब बीजेपी के तमाम दिग्गज प्रदेश की राजनीति से लगभग दूर नजर आ रहे हैं. शिवराज सिंह चौहान बीजेपी के राष्ट्रीय सदस्यता अभियान के प्रभारी हैं तो कैलाश विजयवर्गीय के कंधों पर बंगाल की जिम्मेदारी है, जबकि नरेंद्र सिंह तोमर हरियाणा के चुनाव प्रभारी बनाए गए हैं.
विधानसभा में बीजेपी के खेमे में कांग्रेस ने घुसपैठ कर नेता प्रतिपक्ष गोपाल भार्गव को चुप करा दिया है तो नरोत्तम मिश्रा ई टेंडरिंग की काट अब तक नहीं ढूढ़ पाएं है. यानि की सूबे में अब उमा का रास्ता साफ है. गौर करने वाली बात ये है भी है कि उमा सूबे की राजनीति में केवल सक्रिय ही नहीं हैं, बल्कि कमलनाथ सरकार पर कटाक्ष करने में भी पीछे नहीं हैं.
राजनीति के जानकार मानते हैं कि सूबे की सियासत में उमा के समर्थक अब भी मौजूद हैं. हाल फिलहाल में ऐसा देखने को भी मिला. उमा भारती ने नेता प्रतिपक्ष गोपाल भार्गव के साथ सूबे के नए राज्यपाल लालजी टंडन से मुलाकात की तो ई टेंडरिंग पर खुलकर नरोत्तम मिश्रा का बचाव करती नजर आईं. सूबे के सियासी इतिहास को देखें तो ये दोनों दिग्गज नेता एक जमाने में उमा के करीबी रहे हैं.
मौजूदा सियासी हालात उमा के अनुकूल हैं क्योंकि सूबे में शिवराज सिंह को छोड़कर कोई ऐसा नेता नहीं है, जिस पर आसानी से सहमति बन पाये. खास बात ये भी है कि उमा एक ऐसा चेहरा हैं, जो अपनी तेज तर्रार छवि से कांग्रेस को बैकफुट पर धकेल सकती है. ऐसा करके वह शिवराज की रिक्तता पूरी कर सकती हैं. ऐसे में उमा एक तीर से दो निशाने लगाने की तैयारी में हैं. जिनके ईर्द-गिर्द अब भी सूबे की सियासत का नया अध्याय लिखा जा रहा है.