भोपाल। मध्य प्रदेश में कमलनाथ सरकार गिरी तो बीजेपी ने सरकार बनाने की दावेदारी पेश की. सवाल उठा कि, मध्य प्रदेश का अगला मुख्यमंत्री कौन बनेगा. चर्चा में शिवराज सिंह चौहान, नरेंद्र सिंह तोमर, नरोत्तम मिश्रा और कैलाश विजयवर्गीय जैसे दिग्गज नेताओं के नाम सामने आए. लेकिन शिवराज सब पर भारी पड़े और चौथी बार सूबे के मुखिया की कमान संभाल ली.
शिवराज सिंह चौहान की चौथी बार सीएम बनने की राह आसान न थी. लेकिन तमाम दिग्गजों को दरकिनार कर शिवराज फिर सीएम के मुकाम पर पहुंच गए. लेकिन बड़ा सवाल यह है कि आखिर सारे दिग्गजों को दरकिनार कर बीजेपी आलाकमान ने शिवराज सिंह चौहान के नाम पर ही मुहर क्यों लगाई. सियासी जानकारों की माने तो शिवराज की चौथी बार ताजपोशी के पीछे कई वजह नजर आती है, जिसके चलते बीजेपी आलाकमान ने उन्हें मौका दिया.
शिवराज के पक्ष में रहे सामाजिक और जातिगत समीकरण
शिवराज सिंह चौहान को चौथी बार मुख्यमंत्री बनने के पीछे उनके सामाजिक और जातिगत समीकरण बड़ी वजह रहे. दरअसल इस वक्त प्रदेश में बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी सामान्य वर्ग से आने वाले बीडी शर्मा के पास है, ऐसे में पार्टी ने ओबीसी वर्ग के प्रभावी नेता शिवराज सिंह चौहान को ही कुर्सी पर बैठाना मुनासिब समझा.
प्रदेश में पार्टी का सबसे लोकप्रिय चेहरा हैं शिवराज
शिवराज सिंह चौहान प्रदेश में बीजेपी का सबसे लोकप्रिय चेहरा हैं, विपक्ष में रहते हुए भी शिवराज सिंह चौहान प्रदेश में अपनी लोकप्रियता बनाए रखने में कामयाब रहे. लोकसभा चुनावों में भी शिवराज सिंह चौहान ने जमकर मेहनत की थी. जिसका फायदा उन्हें मिला.
प्रदेश में बड़े जनाधार वाले नेता की छवि
यूं तो मध्य प्रदेश बीजेपी में तमाम दिग्गज नेता मौजूद हैं. लेकिन शिवराज का जनाधार पूरे प्रदेश में माना जाता है. लंबे समय तक मुख्यमंत्री रहते हुए शिवराज ने हर वर्ग में अपनी पकड़ बनाई. प्रदेश में रहते हुए उन्होंने लगातार प्रदेश के दौरे किए और जनता के बीच अपनी पकड़ बनाए रखी.
शिवराज पर रहेगा उपचुनावों का दारो मदार
मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान की सरकार दारो मदार उपचुनावों पर टिका रहेगा. ज्योतिरादित्य सिंधिया के समर्थक 22 पूर्व विधायकों ने इस्तीफा देकर बीजेपी का दामन थामा. जिसके चलते प्रदेश की 24 सीटों पर उपचुनाव होना है. ऐसे में इन चुनावों को जिताने के लिए बीजेपी को शिवराज जैसे लोकप्रिय नेता की जरुरत थी.
कमलनाथ सरकार के खिलाफ फ्रंटफुट पर खेलने का मिला इनाम
विधानसभा चुनाव हारने के बाद शिवराज सिंह चौहान के पास केंद्र में जाने का रास्ता खुला था. लेकिन उन्होंने प्रदेश में रहकर राजनीति की. शिवराज लगातार कमनलाथ सरकार के खिलाफ मुखर रहे. हर आंदोलन का उन्होंने नेतृत्व किया. यानि शिवराज विपक्ष में रहते हुए हर वक्त फ्रंटफुट पर खेलते रहे, जिसका इनाम उन्हें एक बार फिर मुख्यमंत्री के तौर पर मिला.
शिवराज सिंह चौहान की इन्हीं खासियतों ने उन्हें एक बार फिर सूबे के सबसे बड़े तख्तो ताज पर पहुंचा दिया. क्योंकि जैसे ही प्रदेश में बीजेपी सरकार की वापसी हुई, सीएम पद के लिए कई नामों की अटकले शुरु हुई. सियासी गलियारों में चर्चा तो यहां तक उठी कि, शिवराज इस बार रेस में पिछड़ गए. लेकिन सियासत के मंझे हुए खिलाड़ी मामा अंत तक जमे रहे और सीएम पद पर वापसी करने में सफल रहे.