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MP में तबादला पॉलिटिक्स, शिव'राज' में 200 तो कमल'राज' में हुए थे 617 ट्रांसफर - भोपाल न्यूज

मध्यप्रदेश में पिछले दो सालों में अफसरों के ट्रांसफरों का जो दौर कमलनाथ सरकार में शुरु हुआ था. वह शिवराज सरकार में भी जारी है. जिसका सीधा असर प्रदेश के खजाने पर पड़ रहा है. कमलनाथ सरकार ने जहां एक साल में ही 617 आईएएस-आईपीएस अफसरों के तबादले किए थे. तो शिवराज सरकार में भी अब तक प्रदेश में 130 आईएएस अधिकारी बदले जा चुके हैं.

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MP में तबादला पॉलिटिक्स
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Published : Jun 9, 2020, 2:01 PM IST

भोपाल। मध्य प्रदेश में 2018 के विधानसभा चुनाव के बाद पहले कांग्रेस की सरकार बनी और डेढ़ साल बाद एक बार फिर बीजेपी की सरकार आ गई. दोनों सरकारों के बीच कई बदलाव हुए. लेकिन प्रदेश में अफसरों के तबादलों का दौर दोनों सरकारों में बदस्तूर जारी है.

MP में तबादला पॉलिटिक्स

प्रशासनिक सर्जरी में जुटी रहती है सरकारें

आलम यह है कि कमलनाथ सरकार ने जहां एक साल में ही 617 आईएएस-आईपीएस अफसरों के तबादले किए. तो शिवराज सरकार ने भी कोरोना संकट के बीच दो माह में ही 200 से ज्यादा अफसरों के ट्रांसफर कर दिए.कार्मिक एवं प्रशिक्षण मंत्रालय द्वारा केंद्र सरकार को भेजी गई रिपोर्ट से पता चला कि 1 जनवरी से 31 दिसंबर 2019 के बीच कमलनाथ सरकार ने करीब 417 आईएएस अधिकारियों और 200 से ज्यादा आईपीएस अधिकारियों के तबादले किए. तो शिवराज सरकार भी सत्ता वापसी के बाद से प्रशासनिक सर्जरी में जुटी है. 23 मार्च को सरकार गठन के बाद से ही अब तक प्रदेश में 130 आईएएस अधिकारी बदले जा चुके हैं, जबकि 70 से ज्यादा आईपीएस की नई पदस्थापना की गई है.

बीजेपी-कांग्रेस ने एक-दूसरे पर साधा निशाना

प्रदेश में तबादलों पर बीजेपी-कांग्रेस एक दूसरे पर निशाना साधते नजर आते हैं. कांग्रेस प्रवक्ता नरेंद्र सलूजा ने कहते हैं कि कोरोना महामारी के बीच शिवराज सरकार ने केवल एक ही काम किया है और वो है अधिकारियों के तबादले करना. हमारी सरकार में 15 महीने में इतने ट्रांसफर नहीं हुए जितने बीजेपी सरकार ने 3 महीने में कर दिए. शिवराज सरकार अधिकारियों को राजनीतिक तुष्टीकरण के तहत तबादले करने में जुटी है. उसे न मजदूरों की चिंता है और न प्रदेश की

कांग्रेस पर पलटवार करते हुए बीजेपी प्रवक्ता राकेश शर्मा कहते हैं कि कोरोना के संक्रमण पर काबू पाने के लिए अधिकारियों का तबादला जरुरी है. कांग्रेस नेता सिर्फ अपने ड्राइंग रूम में बैठकर आरोप लगाने के अलावा कुछ नहीं कर रहे. शिवराज सरकार ने जो भी जरुरी समझा वह कदम उठाया है. अच्छे अधिकारियों को मोर्चे पर तैनात करना सरकार की जिम्मेदारी थी.

20 सालों से हो रहा है यही काम

बीजेपी-कांग्रेस से इतर प्रदेश में अफसरों के तबादलों पर राजनीतिक जानकार शिव अनुराग पटेरिया कहते है फिलहाल जो तबादले हो रहे हैं. उसे कुछ भी कहे लेकिन पिछले कुछ सालों में मध्य प्रदेश की नौकरशाही का बड़ी संख्या में राजनीतिकरण हुआ है. जब भी सत्ता बदलती है प्रशासनिक अधिकारियों के तबादले होने शुरु हो जाते हैं. मुख्यमंत्री के चहेते अफसरों को अच्छी जगह सेट किया जाता है.

500 अफसरों पर 32 करोड़ खर्च

अफसरों के तबादलों को सरकारें भले ही सामान्य प्रक्रियां बताती है. लेकिन सच ये भी है कि अफसरों के तबादलों पर होने वाले खर्चे पर शायद सरकार का ध्यान नहीं है. मध्यप्रदेश में लगभग 500 अफसरों के तबादलों पर करीब 32 करोड़ रुपए खर्च हुआ है. जिसका सीधा असर प्रदेश के सरकारी खजाने पर पड़ता है. यानि अगर इसी तरह मध्य प्रदेश में तबादले होते रहे प्रदेश के खचाने पर अधिकारियों के तबादलों का ही भार बढ़ता जाएगा.

भोपाल। मध्य प्रदेश में 2018 के विधानसभा चुनाव के बाद पहले कांग्रेस की सरकार बनी और डेढ़ साल बाद एक बार फिर बीजेपी की सरकार आ गई. दोनों सरकारों के बीच कई बदलाव हुए. लेकिन प्रदेश में अफसरों के तबादलों का दौर दोनों सरकारों में बदस्तूर जारी है.

MP में तबादला पॉलिटिक्स

प्रशासनिक सर्जरी में जुटी रहती है सरकारें

आलम यह है कि कमलनाथ सरकार ने जहां एक साल में ही 617 आईएएस-आईपीएस अफसरों के तबादले किए. तो शिवराज सरकार ने भी कोरोना संकट के बीच दो माह में ही 200 से ज्यादा अफसरों के ट्रांसफर कर दिए.कार्मिक एवं प्रशिक्षण मंत्रालय द्वारा केंद्र सरकार को भेजी गई रिपोर्ट से पता चला कि 1 जनवरी से 31 दिसंबर 2019 के बीच कमलनाथ सरकार ने करीब 417 आईएएस अधिकारियों और 200 से ज्यादा आईपीएस अधिकारियों के तबादले किए. तो शिवराज सरकार भी सत्ता वापसी के बाद से प्रशासनिक सर्जरी में जुटी है. 23 मार्च को सरकार गठन के बाद से ही अब तक प्रदेश में 130 आईएएस अधिकारी बदले जा चुके हैं, जबकि 70 से ज्यादा आईपीएस की नई पदस्थापना की गई है.

बीजेपी-कांग्रेस ने एक-दूसरे पर साधा निशाना

प्रदेश में तबादलों पर बीजेपी-कांग्रेस एक दूसरे पर निशाना साधते नजर आते हैं. कांग्रेस प्रवक्ता नरेंद्र सलूजा ने कहते हैं कि कोरोना महामारी के बीच शिवराज सरकार ने केवल एक ही काम किया है और वो है अधिकारियों के तबादले करना. हमारी सरकार में 15 महीने में इतने ट्रांसफर नहीं हुए जितने बीजेपी सरकार ने 3 महीने में कर दिए. शिवराज सरकार अधिकारियों को राजनीतिक तुष्टीकरण के तहत तबादले करने में जुटी है. उसे न मजदूरों की चिंता है और न प्रदेश की

कांग्रेस पर पलटवार करते हुए बीजेपी प्रवक्ता राकेश शर्मा कहते हैं कि कोरोना के संक्रमण पर काबू पाने के लिए अधिकारियों का तबादला जरुरी है. कांग्रेस नेता सिर्फ अपने ड्राइंग रूम में बैठकर आरोप लगाने के अलावा कुछ नहीं कर रहे. शिवराज सरकार ने जो भी जरुरी समझा वह कदम उठाया है. अच्छे अधिकारियों को मोर्चे पर तैनात करना सरकार की जिम्मेदारी थी.

20 सालों से हो रहा है यही काम

बीजेपी-कांग्रेस से इतर प्रदेश में अफसरों के तबादलों पर राजनीतिक जानकार शिव अनुराग पटेरिया कहते है फिलहाल जो तबादले हो रहे हैं. उसे कुछ भी कहे लेकिन पिछले कुछ सालों में मध्य प्रदेश की नौकरशाही का बड़ी संख्या में राजनीतिकरण हुआ है. जब भी सत्ता बदलती है प्रशासनिक अधिकारियों के तबादले होने शुरु हो जाते हैं. मुख्यमंत्री के चहेते अफसरों को अच्छी जगह सेट किया जाता है.

500 अफसरों पर 32 करोड़ खर्च

अफसरों के तबादलों को सरकारें भले ही सामान्य प्रक्रियां बताती है. लेकिन सच ये भी है कि अफसरों के तबादलों पर होने वाले खर्चे पर शायद सरकार का ध्यान नहीं है. मध्यप्रदेश में लगभग 500 अफसरों के तबादलों पर करीब 32 करोड़ रुपए खर्च हुआ है. जिसका सीधा असर प्रदेश के सरकारी खजाने पर पड़ता है. यानि अगर इसी तरह मध्य प्रदेश में तबादले होते रहे प्रदेश के खचाने पर अधिकारियों के तबादलों का ही भार बढ़ता जाएगा.

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