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मध्य प्रदेश में पंचायत, नगरीय निकाय चुनाव में भाजपा और कांग्रेस के लिए ओबीसी उम्मीदवारों की तलाश बड़ी चुनौती

सुप्रीम कोर्ट के निर्णय और राज्य निर्वाचन आयोग की तैयारियों के बीच अब बीजेपी कांग्रेस ने भी अपने दावपेंच शुरू कर दिए हैं. दोनों ही दल ओबीसी के मुद्दे पर एक दूसरे को कोसते हुए अपने दामन को बचाने में लगे है. आरोप-प्रत्यारोप के बीच चुनावी घमासान भी सुनाई देने लगा है. (Supreme Court Decision OBC reservation) (BJP and Congress looking for OBC candidates)

BJP and Congress looking for OBC candidates
भाजपा और कांग्रेस को ओबीसी उम्मीदवारों की तलाश
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Published : May 17, 2022, 7:43 PM IST

भोपाल। मध्यप्रदेश में सियासत इन दिनों अन्य पिछड़ा वर्ग के आरक्षण के मामले पर आकर ठहर गई है. भाजपा और कांग्रेस दोनों ही दल 27 फीसदी से ज्यादा ओबीसी वर्ग के लोगों को उम्मीदवार बनाने का फैसला तो कर चुके हैं, मगर उनके लिए इतनी संख्या में इस वर्ग के उम्मीदवारों का चयन चुनौती भी बन गया है. राज्य में आगामी समय में होने वाले नगरीय निकाय और पंचायत के चुनाव में (urban body and panchayat elections) ओबीसी को 27 फीसदी आरक्षण दिए जाने मामला राजनीतिक दलों के लिए गले की हड्डी बन गया है. सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court) ने सरकार के दावों से असहमति जताई और यह चुनाव बगैर ओबीसी आरक्षण के कराए जाने का पूर्व में फैसला सुनाया, जिस पर राज्य सरकार की ओर से मॉडिफिकेशन याचिका दायर की गई है, इस याचिका पर सर्वोच्च न्यायालय में सुनवाई हो रही है. (27% reservation for OBC)

उम्मीदवार मैदान में उतारने की मुसीबत: सर्वोच्च न्यायालय का फैसला आने के बाद दोनों ही राजनीतिक दलों ने 27 फीसदी से अधिक वर्ग के उम्मीदवारों को टिकट देने का ऐलान कर दिया है. भाजपा की ओर से प्रदेशाध्यक्ष विष्णु दत्त शर्मा (bjp mp VD Sharma) और कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष कमल नाथ (pcc chif Kamal Nath) 27 प्रतिशत से ज्यादा उम्मीदवार ओबीसी वर्ग का बनाने का ऐलान कर चुके हैं. दोनों दलों ने ऐलान तो कर दिया. मगर उनके सामने यह चुनौती बन गया है कि इतनी बड़ी तादाद में इस वर्ग के उम्मीदवारों के नामों का चयन कैसे करें और यह खतरा भी है कि, कहीं ऐसा करने पर अन्य वर्ग के कार्यकर्ताओं में नाराजगी न बढ़ जाए. राजनीतिक दल महसूस कर रहे हैं कि, अगर न्यायालय 27 प्रतिशत निर्वाचन क्षेत्रों को आरक्षित कर देते तो उम्मीदवार का चयन आसान था. मगर बगैर आरक्षण के उम्मीदवार मैदान में उतारना बड़ी मुसीबत भी बन सकता है.

ओबीसी आरक्षणः पिछड़ा वर्ग आयोग की रिपोर्ट का होगा आंकलन, SC के फैसले पर खरी उतरी रिपोर्ट तो मिल सकता है रिजर्वेशन, फिर होगी सुनवाई

कार्यकर्ताओं से नाराजगी का डर: राज्य में पंचायत के चुनाव तो गैर दलीय आधार पर होना है. नगरीय निकाय के चुनाव दलीय आधार पर राज्य में ओबीसी की आबादी 50 फीसदी से अधिक है और दोनों ही राजनीतिक दल किसी भी सूरत में इस वर्ग को नाराज करने का जोखिम उठाने को तैयार नहीं हैं. राजनीतिक विश्लेषक चैतन्य भट्ट (Political analyst Chaitanya Bhatt) का कहना है कि, राजनीतिक दल जानते हैं कि 50 प्रतिशत से ज्यादा आरक्षण दिया ही नहीं जा सकता, उसके बावजूद ओबीसी वर्ग को भ्रमित करने के लिए इस तरह की राजनीतिक शिगूफे बाजी हो रही है.वास्तव में राजनीतिक दल ओबीसी हितैषी हैं तो आबादी के हिसाब से 50 फीसदी इस वर्ग के उम्मीदवारों को मैदान में उतार दें, मगर उनकी मंशा ऐसा करने की है ही नहीं.

-आईएएनएस

भोपाल। मध्यप्रदेश में सियासत इन दिनों अन्य पिछड़ा वर्ग के आरक्षण के मामले पर आकर ठहर गई है. भाजपा और कांग्रेस दोनों ही दल 27 फीसदी से ज्यादा ओबीसी वर्ग के लोगों को उम्मीदवार बनाने का फैसला तो कर चुके हैं, मगर उनके लिए इतनी संख्या में इस वर्ग के उम्मीदवारों का चयन चुनौती भी बन गया है. राज्य में आगामी समय में होने वाले नगरीय निकाय और पंचायत के चुनाव में (urban body and panchayat elections) ओबीसी को 27 फीसदी आरक्षण दिए जाने मामला राजनीतिक दलों के लिए गले की हड्डी बन गया है. सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court) ने सरकार के दावों से असहमति जताई और यह चुनाव बगैर ओबीसी आरक्षण के कराए जाने का पूर्व में फैसला सुनाया, जिस पर राज्य सरकार की ओर से मॉडिफिकेशन याचिका दायर की गई है, इस याचिका पर सर्वोच्च न्यायालय में सुनवाई हो रही है. (27% reservation for OBC)

उम्मीदवार मैदान में उतारने की मुसीबत: सर्वोच्च न्यायालय का फैसला आने के बाद दोनों ही राजनीतिक दलों ने 27 फीसदी से अधिक वर्ग के उम्मीदवारों को टिकट देने का ऐलान कर दिया है. भाजपा की ओर से प्रदेशाध्यक्ष विष्णु दत्त शर्मा (bjp mp VD Sharma) और कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष कमल नाथ (pcc chif Kamal Nath) 27 प्रतिशत से ज्यादा उम्मीदवार ओबीसी वर्ग का बनाने का ऐलान कर चुके हैं. दोनों दलों ने ऐलान तो कर दिया. मगर उनके सामने यह चुनौती बन गया है कि इतनी बड़ी तादाद में इस वर्ग के उम्मीदवारों के नामों का चयन कैसे करें और यह खतरा भी है कि, कहीं ऐसा करने पर अन्य वर्ग के कार्यकर्ताओं में नाराजगी न बढ़ जाए. राजनीतिक दल महसूस कर रहे हैं कि, अगर न्यायालय 27 प्रतिशत निर्वाचन क्षेत्रों को आरक्षित कर देते तो उम्मीदवार का चयन आसान था. मगर बगैर आरक्षण के उम्मीदवार मैदान में उतारना बड़ी मुसीबत भी बन सकता है.

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कार्यकर्ताओं से नाराजगी का डर: राज्य में पंचायत के चुनाव तो गैर दलीय आधार पर होना है. नगरीय निकाय के चुनाव दलीय आधार पर राज्य में ओबीसी की आबादी 50 फीसदी से अधिक है और दोनों ही राजनीतिक दल किसी भी सूरत में इस वर्ग को नाराज करने का जोखिम उठाने को तैयार नहीं हैं. राजनीतिक विश्लेषक चैतन्य भट्ट (Political analyst Chaitanya Bhatt) का कहना है कि, राजनीतिक दल जानते हैं कि 50 प्रतिशत से ज्यादा आरक्षण दिया ही नहीं जा सकता, उसके बावजूद ओबीसी वर्ग को भ्रमित करने के लिए इस तरह की राजनीतिक शिगूफे बाजी हो रही है.वास्तव में राजनीतिक दल ओबीसी हितैषी हैं तो आबादी के हिसाब से 50 फीसदी इस वर्ग के उम्मीदवारों को मैदान में उतार दें, मगर उनकी मंशा ऐसा करने की है ही नहीं.

-आईएएनएस

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