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उपचुनाव में दांव पर दिग्गजों की साख, शिवराज-सिंधिया के लिए कितनी बड़ी चुनौती कमलनाथ और दिग्गी ?

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Published : Jul 29, 2020, 3:00 PM IST

मध्य प्रदेश की 27 विधानसभा सीटों पर होने वाले उपचुनाव बेहद खास माने जा रहे हैं. ये चुनाव इसलिए भी अहम है, कि इनसे न सिर्फ सरकार बचने या बनने का फैसला होगा. बल्कि कई नेताओं के राजनीतिक भविष्य पर भी असर पड़ेगा. ये चुनाव प्रदेश के चार दिग्गजों के लिए प्रतिष्ठा का सवाल बन गया है.

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भोपाल। मध्य प्रदेश में होने वाले आगामी विधानसभा उपचुनाव कई राजनेताओं के भविष्य का फैसला करेंगे. जिस तरह का राजनीतिक घटनाक्रम मध्यप्रदेश में पिछले महीनों में घटा है और जिस तरह की राजनीतिक परिस्थितियां बनी हैं, वो दोनों पार्टियों के लिए किसी चुनौती के कम नहीं हैं. बीजेपी में जहां शिवराज और सिंधिया को उपचुनाव में ज्यादा से ज्यादा सीटें जीत कर बगावत से बनी सरकार को सुरक्षित करना है, तो कमलनाथ और दिग्विजय सिंह को अपने प्रबंधन का कौशल दिखाना है.

उपचुनाव में दांव पर दिग्गजों की साख

जहां तक सत्ताधारी दल बीजेपी की बात करें तो, कांग्रेस से सिंधिया और उनके समर्थकों की बगावत से बीजेपी की सत्ता में वापसी हुई है. कांग्रेस विधायकों की बगावत के चलते उपचुनाव के हालात बने हैं, बीजेपी की सरकार बनने पर संगठन ने फिर शिवराज के चेहरे पर भरोसा जताया और उन्हें मुख्यमंत्री बनाया. अब उपचुनाव में सीएम शिवराज के सामने जहां अपनी सरकार बचाए रखने की चुनौती है, तो हीं सिंधिया के सामने अपने समर्थकों को चुनाव जिताने की.

वही बात अगर कांग्रेस की जाए तो, कमलनाथ और दिग्विजय सिंह के सामने भी बड़ी चुनौती हैं. दोनों नेताओं को उपचुनाव में अपने राजनीति अनुभव और दमखम का परिचय देना होगा. कांग्रेस लगातार दावा कर रही है कि, उपचुनाव में वो ज्यादा से ज्यादा सीटें जीतने जा रही है. हालांकि इसको चुनावी दावा माना जा सकता है. कमलनाथ के साथ दिग्विजय सिंह को अपना राजनीतिक कौशल दिखाना होगा. क्योंकि अधिकतर सीटों पर चुनाव ग्वालियर-चंबल में होना है, जहां सिंधिया का दबदबा माना जाता है.

जनता के स्वीकार्य नेता हैं शिवराज और सिंधिया

बीजेपी प्रवक्ता रजनीश अग्रवाल का कहना है कि, कांग्रेस में थके और नकारे हुए नेता हैं. बीजेपी में जनता के द्वारा स्वीकार्य नेता हैं. मीडिया संस्थानों ने सर्वे किए है, जिसमें बार-बार शिवराज सिंह चौहान जनता के लोकप्रिय नेता बनकर उभरे हैं. वही सिंधिया जब कांग्रेस में थे, तब उनके नंबर ज्यादा थे. जिन इलाकों में चुनाव हैं, तब भी सिंधिया के कारण जीते थे, यह किसी से छिपा नहीं है.

कांग्रेस ने कहा जनता देगी साथ

कांग्रेस प्रवक्ता भूपेंद्र गुप्ता का कहना है कि, 'शिवराज और सिंधिया की साख इसलिए दांव पर है. क्योंकि उन्होंने दांव लगाकर सरकार बनाई, उनकी सरकार आउट सोर्स की सरकार है. यह पैसे और प्रलोभन और दबाव के अलावा लेनदेन से बनी सरकार है. कांग्रेस पार्टी को तो जनता ने जिताया था और जनादेश दिया था और अब जनता ही हमें वापस लौटा कर लाएगी'.

दांव पर तो है दिग्गजों की साख

वरिष्ठ पत्रकार खिलावन चंद्राकर का कहते है कि, निश्चित तौर यह चुनाव आम चुनाव की तरह ही है. इस चुनाव से सुनिश्चित होना है कि, सरकार रहेगी या चली जाएगी. 27 सीटों पर विधानसभा उपचुनाव होना है, क्योंकि इसमें से अधिकांश सीटें चंबल क्षेत्र की हैx, निश्चित तौर पर कांग्रेस का दामन छोड़कर बीजेपी में शामिल हुए ज्योतिरादित्य सिंधिया की साख दांव पर है. तो कांग्रेस की वापसी के लिए पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ और दिग्विजय सिंह की साख दांव पर है. मुझे लगता है कि, यह चुनाव निर्णायक है.

भोपाल। मध्य प्रदेश में होने वाले आगामी विधानसभा उपचुनाव कई राजनेताओं के भविष्य का फैसला करेंगे. जिस तरह का राजनीतिक घटनाक्रम मध्यप्रदेश में पिछले महीनों में घटा है और जिस तरह की राजनीतिक परिस्थितियां बनी हैं, वो दोनों पार्टियों के लिए किसी चुनौती के कम नहीं हैं. बीजेपी में जहां शिवराज और सिंधिया को उपचुनाव में ज्यादा से ज्यादा सीटें जीत कर बगावत से बनी सरकार को सुरक्षित करना है, तो कमलनाथ और दिग्विजय सिंह को अपने प्रबंधन का कौशल दिखाना है.

उपचुनाव में दांव पर दिग्गजों की साख

जहां तक सत्ताधारी दल बीजेपी की बात करें तो, कांग्रेस से सिंधिया और उनके समर्थकों की बगावत से बीजेपी की सत्ता में वापसी हुई है. कांग्रेस विधायकों की बगावत के चलते उपचुनाव के हालात बने हैं, बीजेपी की सरकार बनने पर संगठन ने फिर शिवराज के चेहरे पर भरोसा जताया और उन्हें मुख्यमंत्री बनाया. अब उपचुनाव में सीएम शिवराज के सामने जहां अपनी सरकार बचाए रखने की चुनौती है, तो हीं सिंधिया के सामने अपने समर्थकों को चुनाव जिताने की.

वही बात अगर कांग्रेस की जाए तो, कमलनाथ और दिग्विजय सिंह के सामने भी बड़ी चुनौती हैं. दोनों नेताओं को उपचुनाव में अपने राजनीति अनुभव और दमखम का परिचय देना होगा. कांग्रेस लगातार दावा कर रही है कि, उपचुनाव में वो ज्यादा से ज्यादा सीटें जीतने जा रही है. हालांकि इसको चुनावी दावा माना जा सकता है. कमलनाथ के साथ दिग्विजय सिंह को अपना राजनीतिक कौशल दिखाना होगा. क्योंकि अधिकतर सीटों पर चुनाव ग्वालियर-चंबल में होना है, जहां सिंधिया का दबदबा माना जाता है.

जनता के स्वीकार्य नेता हैं शिवराज और सिंधिया

बीजेपी प्रवक्ता रजनीश अग्रवाल का कहना है कि, कांग्रेस में थके और नकारे हुए नेता हैं. बीजेपी में जनता के द्वारा स्वीकार्य नेता हैं. मीडिया संस्थानों ने सर्वे किए है, जिसमें बार-बार शिवराज सिंह चौहान जनता के लोकप्रिय नेता बनकर उभरे हैं. वही सिंधिया जब कांग्रेस में थे, तब उनके नंबर ज्यादा थे. जिन इलाकों में चुनाव हैं, तब भी सिंधिया के कारण जीते थे, यह किसी से छिपा नहीं है.

कांग्रेस ने कहा जनता देगी साथ

कांग्रेस प्रवक्ता भूपेंद्र गुप्ता का कहना है कि, 'शिवराज और सिंधिया की साख इसलिए दांव पर है. क्योंकि उन्होंने दांव लगाकर सरकार बनाई, उनकी सरकार आउट सोर्स की सरकार है. यह पैसे और प्रलोभन और दबाव के अलावा लेनदेन से बनी सरकार है. कांग्रेस पार्टी को तो जनता ने जिताया था और जनादेश दिया था और अब जनता ही हमें वापस लौटा कर लाएगी'.

दांव पर तो है दिग्गजों की साख

वरिष्ठ पत्रकार खिलावन चंद्राकर का कहते है कि, निश्चित तौर यह चुनाव आम चुनाव की तरह ही है. इस चुनाव से सुनिश्चित होना है कि, सरकार रहेगी या चली जाएगी. 27 सीटों पर विधानसभा उपचुनाव होना है, क्योंकि इसमें से अधिकांश सीटें चंबल क्षेत्र की हैx, निश्चित तौर पर कांग्रेस का दामन छोड़कर बीजेपी में शामिल हुए ज्योतिरादित्य सिंधिया की साख दांव पर है. तो कांग्रेस की वापसी के लिए पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ और दिग्विजय सिंह की साख दांव पर है. मुझे लगता है कि, यह चुनाव निर्णायक है.

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