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Chandrashekhar Azad Jayanti: MP के लाल को था 'बमतुल बुखारा' से प्यार, जानिए चंद्रशेखर तिवारी से 'आजाद' बनने तक का सफर

प्रेम, वीरता और साहस की मिसाल अमर शहीद चंद्रशेखर आजाद का स्वतंत्रता आंदोलन में अतुलनीय योगदान रहा है. चंद्रशेखर आजाद का केवल जीवन ही नहीं, मृत्यु भी एक प्रेरणा देती है. ऐसे ही क्रांतिकारियों के बलिदान का नतीजा है कि आज हम आजाद देश में रह रहे हैं. देश को अंग्रेजों की गुलामी से मुक्त कराने के लिए हमारे कई वीर क्रांतिकारियों ने अपने प्राणों की आहूति दी है. तो आज आइये जानते हैं उनके जीवन के बारे में. (Chandrashekhar Azad Jayanti) (Love Story of Chandrashekhar Azad)

love story of Chandrashekhar Azad on his 116th birth anniversary
चंद्रशेखर आजाद को बमतुल बुखारा से था प्यार
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Published : Jul 23, 2022, 11:50 AM IST

अलीराजपुर। प्रेम, वीरता और साहस की मिसाल अमर शहीद चंद्रशेखर आजाद बचपन से ही स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़ गए थे. देश के महान सपूत क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद का जन्म 23 जुलाई 1906 को मध्य प्रदेश के अलीराजपुर जिले के भाबरा नामक स्थान पर हुआ था. आजाद के पिता पंडित सीताराम तिवारी अकाल के समय उत्तर प्रदेश के अपने पैतृक निवास बदरका को छोड़कर मध्य प्रदेश के अलीराजपुर रियासत में नौकरी की, फिर भाबरा गांव में बस गए. (Chandrashekhar Azad Jayanti) (Love Story of Chandrashekhar Azad) चंद्रशेखर आजाद 15 साल से कम उम्र में ही स्वतंत्रता आंदोलन में भागीदारी करने लगे थे. 1921 में महात्मा गांधी ने देश में असहयोग आंदोलन शुरू किया तो बड़ी संख्या में देश के युवाओं का उन्हें समर्थन मिलने लगा. यही वजह थी कि चंद्रशेखर आजाद भी असहयोग आंदोलन से जुड़े और आंदोलन को आगे बढ़ा रहे थे.

चंद्रशेखर तिवारी से बने चंद्रशेखर आजाद: असहयोग आंदोलन के दौरान प्रदर्शन करते समय अंग्रेजी सैनिकों ने आजाद को पकड़ लिया और मजिस्ट्रेट के सामने पेश किया. मजिस्ट्रेट ने आजाद से उनका नाम पूछा तो जवाब में उन्होंने बड़े बेबाकी के साथ अपना नाम आजाद बताया. पिता का नाम पूछने पर स्वतंत्रता और घर का पता पूछने पर जेल बताया. इससे मजिस्ट्रेट ने नाराज होकर उन्हें 15 कोड़े मारने की सजा सुनाई. अंग्रेज सैनिक जब उन्हें कोड़े मार रहे थे तो वो लगातार 'भारत माता की जय' के जयकारे लगा रहे थे. यही घटना थी जिसके बाद चंद्रशेखर तिवारी अब चंद्रशेखर आजाद के नाम से जाने जाने लगे.

महात्मा गांधी से आजाद का हुआ मोह भंग: 1922 में चौरी-चौरा कांड में 21 पुलिस कांस्टेबल और एक सब इंस्पेक्टर की मौत से महात्मा गांधी दुखी हुए और असहयोग आंदोलन को वापस लेने की घोषणा कर दी. इस निर्णय से कई युवाओं के साथ-साथ चंद्रशेखर आजाद भी काफी आहत और आक्रोशित हुए. उस दिन के बाद से उनका महात्मा गांधी से मोह भंग हुआ और उन्होंने देश की आजादी के लिए सशस्त्र क्रांति करने की राह पकड़ने की ठान ली. इसके बाद आजाद ने मनमथ नाथ गुप्ता, पंडित राम प्रसाद बिस्मिल, सचिन्द्रनाथ सान्याल और अशफाक उल्ला खां के संपर्क में आए और उनके साथ मिलकर उत्तर भारत में काकोरी कांड समेत कई बड़ी घटनाओं को अंजाम दिया. 1928 में दिल्ली के फिरोज शाह कोटला मैदान में उत्तर भारत के कई क्रांतिकारी दलों के प्रमुख नेताओं की गुप्त बैठक हुई. जिसमें क्रान्तिकारी गतिविधियों से जुड़कर हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन के सक्रिय सदस्य बन गए. जिसमें आजाद को सेना का 'कमांडर इन चीफ' चुना गया.

Chandra Shekhar Azad birth anniversary: देश को गुलामी से मुक्त कराने में चंद्रशेखर आजाद का अतुलनीय योगदान

अल्फ्रेड पार्क में ली अंतिम सांस: 27 फरवरी 1931 को प्रयागराज के अल्फ्रेड पार्क में आजाद अपने सुखदेव व अन्य मित्र के साथ योजना बना रहे. उसी दौरान मुखबिरों से अंग्रेजों को उनके वहां होने की जानकारी मिल गयी. जिसके बाद अंग्रेजी सेना ने पार्क को घेर लिया. काफी देर तक आजाद ने अंग्रेजों से अकेले ही लोहा लिया. इस दौरान आजाद ने अपने अचूक निशाने से तीन अंग्रेज अफसरों को मार भी गिराया और कइयों को घायल भी कर दिया. आजाद ने ठाना था कि 'दुश्मनों के हाथ नहीं आएंगे आजाद ही रहे हैं, आजाद ही रहेंगे'. यही वजह थी कि पिस्तौल में बची आखिरी गोली से उन्होंने खुद की जीवन लीला समाप्त कर ली.

बमतुल बुखारा से था प्यार: चंद्रशेखर आजाद को अपनी पिस्तौल बहुत अधिक प्रिय थी. वह उसे प्यार से बमतुल बुखारा कहते थे. चंद्रशेखर आजाद से मुठभेड़ के बाद अंग्रेज अफसर सर जॉन नॉट बावर बमतुल बुखारा को इंग्लैंड ले गए. आजादी के बाद उनकी प्रिय पिस्तौल बमतुल बुखारा को वापस लाने के लिए प्रयास शुरू हुए. इलाहाबाद में स्थित संग्रहालय के निदेशक सुनील गुप्ता बताते हैं कि आजादी मिलने के बाद 1976 में पिस्टल भारत सरकार को सौंप दी गई थी. तब से यह इलाहाबाद म्यूजियम में सुरक्षित रखी है और म्यूजियम की शोभा बढ़ा रही है. उन्होंने बताया कि कोल्ट कंपनी की ये पिस्टल 1903 की बनी हुई है. 32 बोर की हैमरलेस सेमी ऑटोमेटिक पिस्टल है. जिसमें एक बार में 8 गोलियों की एक मैगजीन लगती है. इसकी खासियत ये थी कि इसमें फायर करने के बाद धुंआ नहीं निकलता था. यही वजह थी कि अल्फ्रेड पार्क में आजाद की अंग्रेजों से मुठभेड़ हुई थी तो वो किस पेड़ के पीछे से फायर कर रहे थे, अंग्रेज काफी देर तक नहीं जान पाए थे.

आजाद को नमन करने पहुंचते हैं लोग: 90 साल पहले जिस जगह पर चंद्रशेखर आजाद शहीद हुए थे उसी जगह पर उनकी आदम कद प्रतिमा बनाई गई है. जिसे नमन करने के लिए आज भी बड़ी संख्या में लोग पहुंचते हैं. उनकी प्रतिमा पर पुष्पांजलि करके पैर छूते हैं. हालांकि वह पेड़ अब वहां नहीं है, जिसके पीछे आजाद का मृत शरीर पड़ा था. अंग्रेजी सरकार ने उस पेड़ को कटवा दिया था.

अलीराजपुर। प्रेम, वीरता और साहस की मिसाल अमर शहीद चंद्रशेखर आजाद बचपन से ही स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़ गए थे. देश के महान सपूत क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद का जन्म 23 जुलाई 1906 को मध्य प्रदेश के अलीराजपुर जिले के भाबरा नामक स्थान पर हुआ था. आजाद के पिता पंडित सीताराम तिवारी अकाल के समय उत्तर प्रदेश के अपने पैतृक निवास बदरका को छोड़कर मध्य प्रदेश के अलीराजपुर रियासत में नौकरी की, फिर भाबरा गांव में बस गए. (Chandrashekhar Azad Jayanti) (Love Story of Chandrashekhar Azad) चंद्रशेखर आजाद 15 साल से कम उम्र में ही स्वतंत्रता आंदोलन में भागीदारी करने लगे थे. 1921 में महात्मा गांधी ने देश में असहयोग आंदोलन शुरू किया तो बड़ी संख्या में देश के युवाओं का उन्हें समर्थन मिलने लगा. यही वजह थी कि चंद्रशेखर आजाद भी असहयोग आंदोलन से जुड़े और आंदोलन को आगे बढ़ा रहे थे.

चंद्रशेखर तिवारी से बने चंद्रशेखर आजाद: असहयोग आंदोलन के दौरान प्रदर्शन करते समय अंग्रेजी सैनिकों ने आजाद को पकड़ लिया और मजिस्ट्रेट के सामने पेश किया. मजिस्ट्रेट ने आजाद से उनका नाम पूछा तो जवाब में उन्होंने बड़े बेबाकी के साथ अपना नाम आजाद बताया. पिता का नाम पूछने पर स्वतंत्रता और घर का पता पूछने पर जेल बताया. इससे मजिस्ट्रेट ने नाराज होकर उन्हें 15 कोड़े मारने की सजा सुनाई. अंग्रेज सैनिक जब उन्हें कोड़े मार रहे थे तो वो लगातार 'भारत माता की जय' के जयकारे लगा रहे थे. यही घटना थी जिसके बाद चंद्रशेखर तिवारी अब चंद्रशेखर आजाद के नाम से जाने जाने लगे.

महात्मा गांधी से आजाद का हुआ मोह भंग: 1922 में चौरी-चौरा कांड में 21 पुलिस कांस्टेबल और एक सब इंस्पेक्टर की मौत से महात्मा गांधी दुखी हुए और असहयोग आंदोलन को वापस लेने की घोषणा कर दी. इस निर्णय से कई युवाओं के साथ-साथ चंद्रशेखर आजाद भी काफी आहत और आक्रोशित हुए. उस दिन के बाद से उनका महात्मा गांधी से मोह भंग हुआ और उन्होंने देश की आजादी के लिए सशस्त्र क्रांति करने की राह पकड़ने की ठान ली. इसके बाद आजाद ने मनमथ नाथ गुप्ता, पंडित राम प्रसाद बिस्मिल, सचिन्द्रनाथ सान्याल और अशफाक उल्ला खां के संपर्क में आए और उनके साथ मिलकर उत्तर भारत में काकोरी कांड समेत कई बड़ी घटनाओं को अंजाम दिया. 1928 में दिल्ली के फिरोज शाह कोटला मैदान में उत्तर भारत के कई क्रांतिकारी दलों के प्रमुख नेताओं की गुप्त बैठक हुई. जिसमें क्रान्तिकारी गतिविधियों से जुड़कर हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन के सक्रिय सदस्य बन गए. जिसमें आजाद को सेना का 'कमांडर इन चीफ' चुना गया.

Chandra Shekhar Azad birth anniversary: देश को गुलामी से मुक्त कराने में चंद्रशेखर आजाद का अतुलनीय योगदान

अल्फ्रेड पार्क में ली अंतिम सांस: 27 फरवरी 1931 को प्रयागराज के अल्फ्रेड पार्क में आजाद अपने सुखदेव व अन्य मित्र के साथ योजना बना रहे. उसी दौरान मुखबिरों से अंग्रेजों को उनके वहां होने की जानकारी मिल गयी. जिसके बाद अंग्रेजी सेना ने पार्क को घेर लिया. काफी देर तक आजाद ने अंग्रेजों से अकेले ही लोहा लिया. इस दौरान आजाद ने अपने अचूक निशाने से तीन अंग्रेज अफसरों को मार भी गिराया और कइयों को घायल भी कर दिया. आजाद ने ठाना था कि 'दुश्मनों के हाथ नहीं आएंगे आजाद ही रहे हैं, आजाद ही रहेंगे'. यही वजह थी कि पिस्तौल में बची आखिरी गोली से उन्होंने खुद की जीवन लीला समाप्त कर ली.

बमतुल बुखारा से था प्यार: चंद्रशेखर आजाद को अपनी पिस्तौल बहुत अधिक प्रिय थी. वह उसे प्यार से बमतुल बुखारा कहते थे. चंद्रशेखर आजाद से मुठभेड़ के बाद अंग्रेज अफसर सर जॉन नॉट बावर बमतुल बुखारा को इंग्लैंड ले गए. आजादी के बाद उनकी प्रिय पिस्तौल बमतुल बुखारा को वापस लाने के लिए प्रयास शुरू हुए. इलाहाबाद में स्थित संग्रहालय के निदेशक सुनील गुप्ता बताते हैं कि आजादी मिलने के बाद 1976 में पिस्टल भारत सरकार को सौंप दी गई थी. तब से यह इलाहाबाद म्यूजियम में सुरक्षित रखी है और म्यूजियम की शोभा बढ़ा रही है. उन्होंने बताया कि कोल्ट कंपनी की ये पिस्टल 1903 की बनी हुई है. 32 बोर की हैमरलेस सेमी ऑटोमेटिक पिस्टल है. जिसमें एक बार में 8 गोलियों की एक मैगजीन लगती है. इसकी खासियत ये थी कि इसमें फायर करने के बाद धुंआ नहीं निकलता था. यही वजह थी कि अल्फ्रेड पार्क में आजाद की अंग्रेजों से मुठभेड़ हुई थी तो वो किस पेड़ के पीछे से फायर कर रहे थे, अंग्रेज काफी देर तक नहीं जान पाए थे.

आजाद को नमन करने पहुंचते हैं लोग: 90 साल पहले जिस जगह पर चंद्रशेखर आजाद शहीद हुए थे उसी जगह पर उनकी आदम कद प्रतिमा बनाई गई है. जिसे नमन करने के लिए आज भी बड़ी संख्या में लोग पहुंचते हैं. उनकी प्रतिमा पर पुष्पांजलि करके पैर छूते हैं. हालांकि वह पेड़ अब वहां नहीं है, जिसके पीछे आजाद का मृत शरीर पड़ा था. अंग्रेजी सरकार ने उस पेड़ को कटवा दिया था.

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