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Har Ghar Tiranga: जानिए, तिरंगे के संघर्ष की कहानी, 1922 में झंडा सत्याग्रह की कर्मभूमि बने थे मध्यभारत के जबलपुर और नागपुर - तिरंगा सत्याग्रह की कर्मभूमि बना था जबलपुर

देश आजादी के 75 वें वर्ष में अमृत काल में है. आज़ादी का अमृत महोत्सव मनाने के लिए देशभर में जोर-शोर से तैयारियां चल रही हैं. सरकार ने 13 से 15 अगस्त तक हर घर तिरंगा फहराने का अभियान चलाया है. ऐसे में राष्ट्रीय ध्वज के निर्माण और इसे मान्यता मिलने के संघर्ष की कहानी जानना भी युवा पीढ़ी के लिए बेहद जरूरी है. देश के हर नागरिक को यह जानना चाहिए कि भारत की आन,बान,शान इस इस तिरंगे को फहराने लिए हमारे स्वतंत्रता सेनानियों ने कितना संघर्ष किया. पढ़िए तिरंगा की पूरी दास्तान...(harghartriranga)

Har Ghar Tiranga
तिरंगा सत्याग्रह की कर्मभूमि बना था जबलपुर
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Published : Aug 3, 2022, 9:00 PM IST

Updated : Aug 3, 2022, 9:34 PM IST

भोपाल। आज़ादी के अमृत महोत्सव में देश की आन,बान, शान राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा फहराने के लिए विशेष अभियान चलाया जा रहा है. केंद्र सरकार ने हर घर तिरंगा अभियान के तहत देशभर में तिरंगा झंड़ा लहराए जाने की अपील की है. ऐसे में आज की युवा पीढ़ी को तिरंगे के राष्ट्रीय ध्वज बनने और इसे देश की शासकीय और अर्द्धशासकीय इमारतों पर फहराने जाने के लिए 110 दिन तक तला लंबे संघर्ष के बारे में बताना भी बेहद जरूरी है. पढ़े तिरंगे की पूरी दास्तान..

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तिरंगा सत्याग्रह की कर्मभूमि बना था जबलपुर

आजादी से पहले ही मध्यभारत में हुआ था झंड़ा सत्याग्रह: देशभर में झंडा सत्याग्रह की कर्मभूमि बने थे मध्यभारत के जबलपुर और नागपुर. यहां तिरंग झंड़े को फहराए जाने लिए 1922-23 में आंदोलन हुआ. आंदोलन में कंछेदीलाल जैन, पंडित सुंदरलाल, पंडित बाल मुकुंद त्रिपाठी माखनलाल चतुर्वेदी,सीताराम जाधव, परमानन्द जैन खुशालचंद्र जैन नाम शामिल थे जो झंड़ा सत्याग्रह के नायक बने. जिनके लिए तिरंगे की आन जान से ज्यादा कीमती थी. देश की पहली महिला स्वतंत्रता सेनानी सुभद्राकुमारी चौहान भी झंडा सत्याग्रह में अपने मासूम बच्चों को छोड़कर जेल तक गईं थीं.

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तिरंगा सत्याग्रह की कर्मभूमि बना था जबलपुर

पहली बार जबलपुर के विक्टोरिया टाउन हॉल पर लहराया तिरंगा: वो अक्टूबर 1922 का बरस था. असहयोग आंदोलन की सफलता को लेकर कांग्रेस की एक जांच समिति जबलपुर आई थी. विक्टोरिया टाऊन हॉल में सदस्यों को अभिनंदन पत्र भेंट किए जा रहे थे. इसी दौरान उल्लास और उत्साह में कार्यकर्ताओं ने इमारत पर तिरंगा फहरा दिया गया. ये तिरंगे को देश का झंड़ा बनाने की लड़ाई की केवल एक अंगड़ाई थी. इतिहासकार आनंद सिंह राणा कहते हैं - "खबर इंग्लैंड की संसद तक पहुंच गई. बरतानिया सरकार ने इसे सत्ता और संप्रभुता के लिए बड़ी चुनौती माना. भारतीय मामलों के सचिव विंटरटन ने सरकार को सफाई दी कि अब भारत में किसी भी शासकीय और अर्धशासकीय इमारत पर तिरंगा नहीं फहराया जाएगा. इसी आदेश पर इसी ज़मीन से झंडा आंदोलन उठ खड़ा हुआ था ".

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तिरंगा सत्याग्रह की कर्मभूमि बना था जबलपुर

आजादी का अमृत महोत्सव : नेता बांट रहे तिरंगा, बता रहे डिज़ाइन करने वाले पिंगली वेंकय्या की कहानी

1923 में मांगी गई यूनियन जैक के साथ तिरंगा फहराने की मंजूरी: साल बदल चुका था, लेकिन स्वाधीनता सेनानियों की ज़िद नहीं. 1923 में कांग्रेस की एक और समिति रचनात्मक कार्यक्रमों की जानकारी लेने जबलपुर पहुंची. इस दौरान झंडा आंदोलन के सदस्यों ने डिप्टी कमिश्नर किस्मेट लेलैंड ब्रुअर हैमिल्टन को पत्र लिखकर टाऊन हॉल पर झंडा फहराने की अनुमति मांगी. खास बात यह रही कि अनुमति मिल गई, लेकिन इस शर्त पर कि साथ में यूनियन जैक भी फहराया जाएगा. क्रांतिकारी इस बात पर तैयार नहीं हुए. तय किया गया कि 18 मार्च को तिरंगा फहराया जाएगा. पंडित सुंदरलाल की अगुवाई में बालमुकुंद त्रिपाठी, सुभद्राकुमारी चौहान, बद्रीनाथ दुबे, माखनलाल चतुर्वेदी, सीताराम जाधव, परमानन्द जैन और खुशालचंद्र जैन 350 सदस्यों के साथ टाउन हॉल पहुंचे और तिरंगा फहरा दिया गया. (harghartriranga)

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तिरंगा सत्याग्रह की कर्मभूमि बना था जबलपुर

जबलपुर से बाहर नागपुर पहुंचा आंदोलन: तिरंगा फहराने आए आंदोलन कारियों पर कैप्टन बंबावाले ने लाठीचार्ज करवा दिया. क्रांतिकारियों ने लाठी डंडे खाए, गिरफ्तारियां भी हुईं लेकिन, इससे उनका जज़्बा कहां कमज़ोर पड़ने वाला था. इतिहासकार आनंद सिंह राणा बताते हैं - "यही से झंडा सत्याग्रह ने व्यापक रूप लिया और ये नागपुर तक पहुंच गया. अब आंदोलन की कमान सरदार वल्लभ भाई पटेल संभाले हुए थे. उनके नेतृत्व में 18 जून झंडा दिवस के तौर पर घोषित हुआ". राणा बताते हैं- "सुभद्राकुमारी चौहान भारत की पहली महिला स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थीं, जिन्हें तीन माह की सजा हुई. झंडा सत्याग्रह में उनके पति को भी जेल हुई थी और चार बच्चे घर पर अकेले. 17 अगस्त 1923 को इस सत्याग्रह का समापन हुआ इस शर्त के साथ कि शासकीय एवं अर्द्धशासकीय इमारतों पर तिरंगा फहराया जा सकेगा ". (Azadi Ka Amrit Mahotsav)(Jabalpur Jhanda Satyagraha)(History of Indian Flag)

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तिरंगा सत्याग्रह की कर्मभूमि बना था जबलपुर

21 जुलाई 1931 को रखी गई तिरंगे को राष्ट्रीय ध्वज बनाए जाने की नींव: साल 1931 वो वर्ष है जो राष्‍ट्रीय ध्‍वज के इतिहास में यादगार करार दिया जाता है. तिरंगे ध्‍वज को देश के राष्‍ट्रीय ध्‍वज के रूप में अपनाने के लिए एक प्रस्‍ताव पास किया गया था. इसी ध्‍वज ने वर्तमान में जो तिरंगा है, उसकी आधारशिला तैयार की थी. 21 जुलाई दिन संविधान सभा ने तिरंगे को देश के राष्‍ट्रीय ध्‍वज के तौर पर स्‍वीकार कर, उसे मान्‍यता दी थी. यह झंडा केसरिया, सफेद और बीच में गांधी जी के चलते हुए चरखे के साथ था. इसके बाद 21 जुलाई 1947 को संविधान सभा ने इसी झंडे को भारतीय राष्‍ट्रीय ध्‍वज के तौर पर अपनाया. 15 अगस्‍त 1947 को आजादी मिलने के बाद इसमें बस एक ही बदलाव हुआ. तिरंगे में चरखे की जगह पर अशोक चक्र को दिखाया गया था.

वर्तमान में ऐसा है भारत का तिरंगा झंड़ा: नेशनल फ्लैग में बराबर अनुपात में तीन पट्टियां हैं. केसरिया रंग सबसे ऊपर, सफेद बीच में और हरा रंग सबसे नीचे है. झंडे की लंबाई-चौड़ाई का अनुपात 3:2 है. सफेद पट्टी के बीच में नीले रंग का चक्र है. यह चक्र सम्राट अशोक की राजधानी रही सारनाथ के शेर के स्तंभ पर बना हुआ है. इसका व्यास लगभग सफेद पट्टी की चौड़ाई के बराबर होता है और इसमें 24 तीलियां है. भारत की संविधान सभा ने 22 जुलाई 1947 को राष्ट्रीय ध्वज के इस प्रारूप को अपनाया था.

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तिरंगा सत्याग्रह की कर्मभूमि बना था जबलपुर

जानें राष्ट्रीय ध्वज के बारे में कुछ रोचक तथ्य:
- भारत के राष्ट्रीय ध्वज को पिंगली वेंकैया द्वारा डिजाइन किया गया है. साल 1921 में पिंगली वेंकैया ने ध्वज को बनाया था. हालांकि उस समय का तिरंगा आज के तिरंगे से थोड़ा अलग था. तब तिरंगे का रंग लाल, हरा और सफेद था. वहीं साल 1931 में लाल रंग की जगह केसरिया रंग जोड़ा गया.
- पिंगली वेंकैया आंध्र प्रदेश के थे और स्वतंत्रता संग्राम में उन्होंने हिस्सा लिया था. कहा जाता है कि तिरंगे का डिजाइन जब इनके द्वारा बनाया गया था. उस समय इनकी आयु 45 साल थी.
- ब्रिटेन से स्वतंत्रता मिलने से ठीक पहले 22 जुलाई 1947 को भारतीय ध्वज को अपनाया गया था. पहला भारतीय ध्वज 7 अगस्त, 1906 में कलकत्ता के पारसी बागान स्क्वायर पर फहराया गया था.
- भारत के राष्ट्रीय ध्वज को खादी से बनाया जाता है. तिरंगे में मौजूद केसरिया रंग साहस और बलिदान का प्रतिनिधित्व करता है. सफेद रंग सत्य, शांति और पवित्रता का प्रतिनिधित्व करता है. ध्वज का हरा रंग समृद्धि से जुड़ा है. वहीं अशोक चक्र धर्म के नियमों को दर्शाता है.

भोपाल। आज़ादी के अमृत महोत्सव में देश की आन,बान, शान राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा फहराने के लिए विशेष अभियान चलाया जा रहा है. केंद्र सरकार ने हर घर तिरंगा अभियान के तहत देशभर में तिरंगा झंड़ा लहराए जाने की अपील की है. ऐसे में आज की युवा पीढ़ी को तिरंगे के राष्ट्रीय ध्वज बनने और इसे देश की शासकीय और अर्द्धशासकीय इमारतों पर फहराने जाने के लिए 110 दिन तक तला लंबे संघर्ष के बारे में बताना भी बेहद जरूरी है. पढ़े तिरंगे की पूरी दास्तान..

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तिरंगा सत्याग्रह की कर्मभूमि बना था जबलपुर

आजादी से पहले ही मध्यभारत में हुआ था झंड़ा सत्याग्रह: देशभर में झंडा सत्याग्रह की कर्मभूमि बने थे मध्यभारत के जबलपुर और नागपुर. यहां तिरंग झंड़े को फहराए जाने लिए 1922-23 में आंदोलन हुआ. आंदोलन में कंछेदीलाल जैन, पंडित सुंदरलाल, पंडित बाल मुकुंद त्रिपाठी माखनलाल चतुर्वेदी,सीताराम जाधव, परमानन्द जैन खुशालचंद्र जैन नाम शामिल थे जो झंड़ा सत्याग्रह के नायक बने. जिनके लिए तिरंगे की आन जान से ज्यादा कीमती थी. देश की पहली महिला स्वतंत्रता सेनानी सुभद्राकुमारी चौहान भी झंडा सत्याग्रह में अपने मासूम बच्चों को छोड़कर जेल तक गईं थीं.

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तिरंगा सत्याग्रह की कर्मभूमि बना था जबलपुर

पहली बार जबलपुर के विक्टोरिया टाउन हॉल पर लहराया तिरंगा: वो अक्टूबर 1922 का बरस था. असहयोग आंदोलन की सफलता को लेकर कांग्रेस की एक जांच समिति जबलपुर आई थी. विक्टोरिया टाऊन हॉल में सदस्यों को अभिनंदन पत्र भेंट किए जा रहे थे. इसी दौरान उल्लास और उत्साह में कार्यकर्ताओं ने इमारत पर तिरंगा फहरा दिया गया. ये तिरंगे को देश का झंड़ा बनाने की लड़ाई की केवल एक अंगड़ाई थी. इतिहासकार आनंद सिंह राणा कहते हैं - "खबर इंग्लैंड की संसद तक पहुंच गई. बरतानिया सरकार ने इसे सत्ता और संप्रभुता के लिए बड़ी चुनौती माना. भारतीय मामलों के सचिव विंटरटन ने सरकार को सफाई दी कि अब भारत में किसी भी शासकीय और अर्धशासकीय इमारत पर तिरंगा नहीं फहराया जाएगा. इसी आदेश पर इसी ज़मीन से झंडा आंदोलन उठ खड़ा हुआ था ".

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तिरंगा सत्याग्रह की कर्मभूमि बना था जबलपुर

आजादी का अमृत महोत्सव : नेता बांट रहे तिरंगा, बता रहे डिज़ाइन करने वाले पिंगली वेंकय्या की कहानी

1923 में मांगी गई यूनियन जैक के साथ तिरंगा फहराने की मंजूरी: साल बदल चुका था, लेकिन स्वाधीनता सेनानियों की ज़िद नहीं. 1923 में कांग्रेस की एक और समिति रचनात्मक कार्यक्रमों की जानकारी लेने जबलपुर पहुंची. इस दौरान झंडा आंदोलन के सदस्यों ने डिप्टी कमिश्नर किस्मेट लेलैंड ब्रुअर हैमिल्टन को पत्र लिखकर टाऊन हॉल पर झंडा फहराने की अनुमति मांगी. खास बात यह रही कि अनुमति मिल गई, लेकिन इस शर्त पर कि साथ में यूनियन जैक भी फहराया जाएगा. क्रांतिकारी इस बात पर तैयार नहीं हुए. तय किया गया कि 18 मार्च को तिरंगा फहराया जाएगा. पंडित सुंदरलाल की अगुवाई में बालमुकुंद त्रिपाठी, सुभद्राकुमारी चौहान, बद्रीनाथ दुबे, माखनलाल चतुर्वेदी, सीताराम जाधव, परमानन्द जैन और खुशालचंद्र जैन 350 सदस्यों के साथ टाउन हॉल पहुंचे और तिरंगा फहरा दिया गया. (harghartriranga)

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तिरंगा सत्याग्रह की कर्मभूमि बना था जबलपुर

जबलपुर से बाहर नागपुर पहुंचा आंदोलन: तिरंगा फहराने आए आंदोलन कारियों पर कैप्टन बंबावाले ने लाठीचार्ज करवा दिया. क्रांतिकारियों ने लाठी डंडे खाए, गिरफ्तारियां भी हुईं लेकिन, इससे उनका जज़्बा कहां कमज़ोर पड़ने वाला था. इतिहासकार आनंद सिंह राणा बताते हैं - "यही से झंडा सत्याग्रह ने व्यापक रूप लिया और ये नागपुर तक पहुंच गया. अब आंदोलन की कमान सरदार वल्लभ भाई पटेल संभाले हुए थे. उनके नेतृत्व में 18 जून झंडा दिवस के तौर पर घोषित हुआ". राणा बताते हैं- "सुभद्राकुमारी चौहान भारत की पहली महिला स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थीं, जिन्हें तीन माह की सजा हुई. झंडा सत्याग्रह में उनके पति को भी जेल हुई थी और चार बच्चे घर पर अकेले. 17 अगस्त 1923 को इस सत्याग्रह का समापन हुआ इस शर्त के साथ कि शासकीय एवं अर्द्धशासकीय इमारतों पर तिरंगा फहराया जा सकेगा ". (Azadi Ka Amrit Mahotsav)(Jabalpur Jhanda Satyagraha)(History of Indian Flag)

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तिरंगा सत्याग्रह की कर्मभूमि बना था जबलपुर

21 जुलाई 1931 को रखी गई तिरंगे को राष्ट्रीय ध्वज बनाए जाने की नींव: साल 1931 वो वर्ष है जो राष्‍ट्रीय ध्‍वज के इतिहास में यादगार करार दिया जाता है. तिरंगे ध्‍वज को देश के राष्‍ट्रीय ध्‍वज के रूप में अपनाने के लिए एक प्रस्‍ताव पास किया गया था. इसी ध्‍वज ने वर्तमान में जो तिरंगा है, उसकी आधारशिला तैयार की थी. 21 जुलाई दिन संविधान सभा ने तिरंगे को देश के राष्‍ट्रीय ध्‍वज के तौर पर स्‍वीकार कर, उसे मान्‍यता दी थी. यह झंडा केसरिया, सफेद और बीच में गांधी जी के चलते हुए चरखे के साथ था. इसके बाद 21 जुलाई 1947 को संविधान सभा ने इसी झंडे को भारतीय राष्‍ट्रीय ध्‍वज के तौर पर अपनाया. 15 अगस्‍त 1947 को आजादी मिलने के बाद इसमें बस एक ही बदलाव हुआ. तिरंगे में चरखे की जगह पर अशोक चक्र को दिखाया गया था.

वर्तमान में ऐसा है भारत का तिरंगा झंड़ा: नेशनल फ्लैग में बराबर अनुपात में तीन पट्टियां हैं. केसरिया रंग सबसे ऊपर, सफेद बीच में और हरा रंग सबसे नीचे है. झंडे की लंबाई-चौड़ाई का अनुपात 3:2 है. सफेद पट्टी के बीच में नीले रंग का चक्र है. यह चक्र सम्राट अशोक की राजधानी रही सारनाथ के शेर के स्तंभ पर बना हुआ है. इसका व्यास लगभग सफेद पट्टी की चौड़ाई के बराबर होता है और इसमें 24 तीलियां है. भारत की संविधान सभा ने 22 जुलाई 1947 को राष्ट्रीय ध्वज के इस प्रारूप को अपनाया था.

Har Ghar Tiranga
तिरंगा सत्याग्रह की कर्मभूमि बना था जबलपुर

जानें राष्ट्रीय ध्वज के बारे में कुछ रोचक तथ्य:
- भारत के राष्ट्रीय ध्वज को पिंगली वेंकैया द्वारा डिजाइन किया गया है. साल 1921 में पिंगली वेंकैया ने ध्वज को बनाया था. हालांकि उस समय का तिरंगा आज के तिरंगे से थोड़ा अलग था. तब तिरंगे का रंग लाल, हरा और सफेद था. वहीं साल 1931 में लाल रंग की जगह केसरिया रंग जोड़ा गया.
- पिंगली वेंकैया आंध्र प्रदेश के थे और स्वतंत्रता संग्राम में उन्होंने हिस्सा लिया था. कहा जाता है कि तिरंगे का डिजाइन जब इनके द्वारा बनाया गया था. उस समय इनकी आयु 45 साल थी.
- ब्रिटेन से स्वतंत्रता मिलने से ठीक पहले 22 जुलाई 1947 को भारतीय ध्वज को अपनाया गया था. पहला भारतीय ध्वज 7 अगस्त, 1906 में कलकत्ता के पारसी बागान स्क्वायर पर फहराया गया था.
- भारत के राष्ट्रीय ध्वज को खादी से बनाया जाता है. तिरंगे में मौजूद केसरिया रंग साहस और बलिदान का प्रतिनिधित्व करता है. सफेद रंग सत्य, शांति और पवित्रता का प्रतिनिधित्व करता है. ध्वज का हरा रंग समृद्धि से जुड़ा है. वहीं अशोक चक्र धर्म के नियमों को दर्शाता है.

Last Updated : Aug 3, 2022, 9:34 PM IST
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