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GOGA NAVAMI 2021: हिंदू-मुस्लिम साथ मनाते हैं गोगा नवमी, संतान प्राप्ति के लिए की जाती है पूजा

इस बार मंगलवार 31 अगस्त को गोगा नवमी मनाई जाएगी. संतान प्राप्ति के लिए लोग गोगाजी की धूम-धाम से करते हैं पूजा अर्चना.

गोगा नवमी
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Published : Aug 30, 2021, 8:03 PM IST

हैदराबाद। इस बार मंगलवार 31 अगस्त को गोगा नवमी मनाई जाएगी. गोगाजी राजस्थान के लोक देवता हैं, जिन्हें जाहरवीर गोगा राणा के नाम से भी जाना जाता है. राजस्थान के हनुमानगढ़ जिले का एक शहर गोगामेड़ी है. यहां भादों शुक्ल पक्ष की नवमी को गोगाजी देवता का मेला लगता है. राजस्थान के अलावा मध्य प्रदेश, पंजाब, हरियाणा सहित हिमाचल प्रदेश के कुछ क्षेत्रों में भी इस पर्व को बड़ी ही श्रद्धा और विश्वास के साथ मनाया जाता है. मान्यता के अनुसार, गोगा महाराज की पूजा से सर्पदंश का खतरा नहीं रहता है और संतान प्राप्ति की इच्छा पूरी होती है.

हिंदू-मुस्लिम दोनों धर्म के लोग मनाते हैं गोगा नवमी

राजस्थान के अधिकतर क्षेत्रों में रक्षा बंधन से गोगा नवमी तक राखी का त्योहार मनाया जाता है. इस पर्व को हिन्दू और मुसलमान दोनों धर्म के लोग पूजते हैं. गुजरात में रबारी जाति के लोग गोगा जी को गोगा महाराज के नाम से बुलाते हैं.

अलग-अलग नाम से पूजते हैं हिंदू-मुस्लिम

आज भी सर्पदंश से मुक्ति के लिए गोगाजी की पूजा की जाती है. गोगाजी के प्रतीक के रूप में पत्थर या लकड़ी पर सर्प मूर्ति बनाई जाती है. लोक धारणा है कि सर्प दंश से प्रभावित व्यक्ति को यदि गोगाजी की मेड़ी तक लाया जाए तो वह व्यक्ति सांप के जहर से मुक्त हो जाता है. भादवा माह के शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष की नवमियों को गोगाजी की स्मृति में मेला लगता है. हिंदू इन्हें गोगा वीर और मुसलमान इन्हें गोगा पीर कहते हैं.

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गोगाजी का जन्म ऐसे हुआ था

राजस्थान के महापुरुष कहे जाने वाले गोगाजी का जन्म गुरु गोरखनाथ के आशीर्वाद से हुआ था. गोगाजी की मां बाछल देवी निसंतान थीं. संतान प्राप्ति के सभी प्रयत्न करने के बाद भी उनको कोई संतान नहीं हुई. एक बार गुरु गोरखनाथ गोगामेड़ी पर तपस्या करने आए. बाछल देवी उनकी शरण में गई और गोरखनाथ ने उनको पुत्र प्राप्ति का वरदान दिया. साथ में गुगल नामक अभिमंत्रित किया हुआ फल उन्हें प्रसाद के रूप में दिया. साथ ही आशीर्वाद दिया कि उनका पुत्र वीर और नागों को वश में करने वाला और सिद्धों का शिरोमणि होगा. इस प्रकार रानी बाछल को पुत्र की प्राप्ति हुई जिनका नाम गुग्गा रखा गया.

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पूजा-अर्चना का विधान

गोगा नवमी के दिन स्नान के बाद गोगा देव की मिट्टी की मूर्ति घर पर लाकर या घोड़े पर सवार वीर गोगाजी की तस्वीर को रोली, चावल, पुष्प, गंगाजल आदि से पूजन करना चाहिए. खीर, चूरमा, गुलगुले आदि का प्रसाद लगाएं और चने की दाल गोगाजी के घोड़े पर श्रद्धापूर्वक अर्पित करें. भक्तगण गोगाजी की कथा का श्रवण और वाचन कर नागदेवता की पूजा-अर्चना करते हैं. कुछ इलाकों में सांप की बांबी की भी पूजा की जाती है. ऐसा माना जाता है कि जो भी सच्चे मन से नागों के देव गोगाजी महाराज की पूजा करते हैं, उनकी मनोकामनाएं जरूर पूरी होती हैं.

हैदराबाद। इस बार मंगलवार 31 अगस्त को गोगा नवमी मनाई जाएगी. गोगाजी राजस्थान के लोक देवता हैं, जिन्हें जाहरवीर गोगा राणा के नाम से भी जाना जाता है. राजस्थान के हनुमानगढ़ जिले का एक शहर गोगामेड़ी है. यहां भादों शुक्ल पक्ष की नवमी को गोगाजी देवता का मेला लगता है. राजस्थान के अलावा मध्य प्रदेश, पंजाब, हरियाणा सहित हिमाचल प्रदेश के कुछ क्षेत्रों में भी इस पर्व को बड़ी ही श्रद्धा और विश्वास के साथ मनाया जाता है. मान्यता के अनुसार, गोगा महाराज की पूजा से सर्पदंश का खतरा नहीं रहता है और संतान प्राप्ति की इच्छा पूरी होती है.

हिंदू-मुस्लिम दोनों धर्म के लोग मनाते हैं गोगा नवमी

राजस्थान के अधिकतर क्षेत्रों में रक्षा बंधन से गोगा नवमी तक राखी का त्योहार मनाया जाता है. इस पर्व को हिन्दू और मुसलमान दोनों धर्म के लोग पूजते हैं. गुजरात में रबारी जाति के लोग गोगा जी को गोगा महाराज के नाम से बुलाते हैं.

अलग-अलग नाम से पूजते हैं हिंदू-मुस्लिम

आज भी सर्पदंश से मुक्ति के लिए गोगाजी की पूजा की जाती है. गोगाजी के प्रतीक के रूप में पत्थर या लकड़ी पर सर्प मूर्ति बनाई जाती है. लोक धारणा है कि सर्प दंश से प्रभावित व्यक्ति को यदि गोगाजी की मेड़ी तक लाया जाए तो वह व्यक्ति सांप के जहर से मुक्त हो जाता है. भादवा माह के शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष की नवमियों को गोगाजी की स्मृति में मेला लगता है. हिंदू इन्हें गोगा वीर और मुसलमान इन्हें गोगा पीर कहते हैं.

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गोगाजी का जन्म ऐसे हुआ था

राजस्थान के महापुरुष कहे जाने वाले गोगाजी का जन्म गुरु गोरखनाथ के आशीर्वाद से हुआ था. गोगाजी की मां बाछल देवी निसंतान थीं. संतान प्राप्ति के सभी प्रयत्न करने के बाद भी उनको कोई संतान नहीं हुई. एक बार गुरु गोरखनाथ गोगामेड़ी पर तपस्या करने आए. बाछल देवी उनकी शरण में गई और गोरखनाथ ने उनको पुत्र प्राप्ति का वरदान दिया. साथ में गुगल नामक अभिमंत्रित किया हुआ फल उन्हें प्रसाद के रूप में दिया. साथ ही आशीर्वाद दिया कि उनका पुत्र वीर और नागों को वश में करने वाला और सिद्धों का शिरोमणि होगा. इस प्रकार रानी बाछल को पुत्र की प्राप्ति हुई जिनका नाम गुग्गा रखा गया.

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पूजा-अर्चना का विधान

गोगा नवमी के दिन स्नान के बाद गोगा देव की मिट्टी की मूर्ति घर पर लाकर या घोड़े पर सवार वीर गोगाजी की तस्वीर को रोली, चावल, पुष्प, गंगाजल आदि से पूजन करना चाहिए. खीर, चूरमा, गुलगुले आदि का प्रसाद लगाएं और चने की दाल गोगाजी के घोड़े पर श्रद्धापूर्वक अर्पित करें. भक्तगण गोगाजी की कथा का श्रवण और वाचन कर नागदेवता की पूजा-अर्चना करते हैं. कुछ इलाकों में सांप की बांबी की भी पूजा की जाती है. ऐसा माना जाता है कि जो भी सच्चे मन से नागों के देव गोगाजी महाराज की पूजा करते हैं, उनकी मनोकामनाएं जरूर पूरी होती हैं.

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