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मन्नू भंडारी का मध्य प्रदेश से रहा है गहरा नाता, मंदसौर को साहित्य के क्षेत्र में दिलाई पहचान - मंदसौर को साहित्य के क्षेत्र में दिलाई पहचान

मंदसौर में जिस मकान में मन्नू भंडारी जन्म हुआ था, वह आज भी अच्छी स्थिति में है. एक चौकीदार इस मकान की रखवाली और देखभाल करता है. मन्नू के जीवन पर उनके पिता का बहुत प्रभाव था. पिता अजमेर के बाद मप्र के इंदौर आ गए थे. तब कांग्रेस का प्रदेश में सबसे पहला कार्यालय 1920 में इनके पिता के निवास पर ही खुला था.

मन्नू भंडारी का मध्य प्रदेश से रहा है गहरा नाता
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Published : Nov 16, 2021, 10:12 PM IST

मंदसौर। हिंदी की मशहूर लेखिका और साहित्यकार मन्नू भंडारी का सोमवार 15 नवंबर को दिल्ली में 90 वर्ष की उम्र में देहांत हो गया. कथाकार मन्नू भंड़ारी का मध्य प्रदेश और मंदसौर से खास रिश्ता रहा है. वे मध्य प्रदेश की बेटी थीं. उनका जन्म मंदसौर जिले के भानपुरा में 3 अप्रैल, 1939 को हुआ था. ‘महाभोज’ और ‘आपका बंटी’ जैसी उनकी कालजयी रचनाओं को लेकर उन्हें हमेशा याद किया जाता रहेगा.

मन्नू भंडारी का मध्य प्रदेश से रहा है गहरा नाता

पुरुषवादी समाज पर चोट करने वाली लेखिका

मैं हार गई, तीन निगाहो की एक तस्वीर, एक प्लेट सेलाब, यही सच है ,आंखों देखा झूठ, और त्रिशंकु जैसी अनेक कहानियों की रचनाकार मन्नू प्रसिद्ध साहित्यकार राजेंद्र यादव की पत्नी थीं. उनकी पहचान पुरुषवादी समाज पर चोट करने वाली लेखिका के तौर पर होती थी. मन्नू ने ने एक से बढ़कर एक बेहतरीन कहानियां और उपन्यास लिखे. उनकी लिखी किताबों पर फिल्में भी बनी हैं. उनकी कहानी ‘यही सच है’ पर 1974 में ‘रजनीगंधा’ फिल्म बनाई गई. उनके माता-पिता ने उन्हें महेंद्र कुमारी नाम दिया था, लेकिन लेखन के क्षेत्र में अपने कदम बढ़ाने के बाद उन्होंने अपना नाम बदलकर मन्नू कर दिया और अपने बचपन के नाम को ही अपना लिया. दिल्ली यूनिवर्सिटी के मिरांडा हाउस कॉलेज से पढ़ी भंडारी की जन सरोकार से जुड़े साहित्य पर अद्भुत पकड़ थी. उनके निधन को साहित्य के क्षेत्र से जुड़े लोग हिन्दी साहित्य की अपूर्ण क्षति बताते हैं.

कई बार भानपुरा आईं मन्नू
मंदसौर जिले में स्थित ऐतिहासिक कस्बे भानपुरा की जगदीश मंदिर गली में स्थित भंडारी निवास में तीन अप्रैल 1939 को उनका जन्म हुआ था, उस घर से भंडारी परिवार आज भी जुड़ा हुआ है. मन्नू भंडारी जब छह वर्ष की थीं तभी उनके पिता सुखसंपतराय भंडारी अपने परिवार को लेकर राजस्थान के अजमेर रहने चले गए थे, लेकिन मन्नू अपने जीवन काल में भानपुरा आती रहीं. 5 अक्टूबर 2002 को वे अपने पति साहित्यकार राजेंद्र यादव के साथ अपने काकाजी के स्वर्ण जयंती समारोह में शामिल होने आई थीं.

अजमेर से इंदौर आकर बस गया परिवार

जिस मकान में मन्नू भंडारी जन्म हुआ था, वह आज भी अच्छी स्थिति में है. एक चौकीदार इस मकान की रखवाली और देखभाल करता है. मन्नू के जीवन पर उनके पिता का बहुत प्रभाव था. पिता अजमेर के बाद मप्र के इंदौर आ गए थे. तब कांग्रेस का प्रदेश में सबसे पहला कार्यालय 1920 में इनके पिता के निवास पर ही खुला था. महात्मा गांधी जब पहली बार इंदौर आए थे, तब मन्नू भंडारी के पिता सुख संपत राय भंडारी स्वागत समिति के अध्यक्ष थे. मप्र में भी मन्नू भंडारी ने अपनी सेवाएं दीं हालांकि वे बहुत कम रही. वे 1992 से 1994 तक उज्जैन स्थित विक्रम विश्वविद्यालय की प्रेमचंद सृजनपीठ की डायरेक्टर रहीं. उन्होंने कई फिल्मों की पटकथा भी लिखी. 1959 में साहित्यकार राजेंद्र यादव से विवाह किया था. उनके उपन्यास 'आपका बंटी' और 'महाभोज से उन्हें सर्वाधिक प्रसिद्धि मिली. उन्होंने रजनीगंधा, निर्मला, स्वामी, दर्पण जैसी फिल्मों की पटकथाएं भी लिखीं. 2008 में उन्हें उपाधिन्यास से सम्मानित भी किया गया.

मंदसौर। हिंदी की मशहूर लेखिका और साहित्यकार मन्नू भंडारी का सोमवार 15 नवंबर को दिल्ली में 90 वर्ष की उम्र में देहांत हो गया. कथाकार मन्नू भंड़ारी का मध्य प्रदेश और मंदसौर से खास रिश्ता रहा है. वे मध्य प्रदेश की बेटी थीं. उनका जन्म मंदसौर जिले के भानपुरा में 3 अप्रैल, 1939 को हुआ था. ‘महाभोज’ और ‘आपका बंटी’ जैसी उनकी कालजयी रचनाओं को लेकर उन्हें हमेशा याद किया जाता रहेगा.

मन्नू भंडारी का मध्य प्रदेश से रहा है गहरा नाता

पुरुषवादी समाज पर चोट करने वाली लेखिका

मैं हार गई, तीन निगाहो की एक तस्वीर, एक प्लेट सेलाब, यही सच है ,आंखों देखा झूठ, और त्रिशंकु जैसी अनेक कहानियों की रचनाकार मन्नू प्रसिद्ध साहित्यकार राजेंद्र यादव की पत्नी थीं. उनकी पहचान पुरुषवादी समाज पर चोट करने वाली लेखिका के तौर पर होती थी. मन्नू ने ने एक से बढ़कर एक बेहतरीन कहानियां और उपन्यास लिखे. उनकी लिखी किताबों पर फिल्में भी बनी हैं. उनकी कहानी ‘यही सच है’ पर 1974 में ‘रजनीगंधा’ फिल्म बनाई गई. उनके माता-पिता ने उन्हें महेंद्र कुमारी नाम दिया था, लेकिन लेखन के क्षेत्र में अपने कदम बढ़ाने के बाद उन्होंने अपना नाम बदलकर मन्नू कर दिया और अपने बचपन के नाम को ही अपना लिया. दिल्ली यूनिवर्सिटी के मिरांडा हाउस कॉलेज से पढ़ी भंडारी की जन सरोकार से जुड़े साहित्य पर अद्भुत पकड़ थी. उनके निधन को साहित्य के क्षेत्र से जुड़े लोग हिन्दी साहित्य की अपूर्ण क्षति बताते हैं.

कई बार भानपुरा आईं मन्नू
मंदसौर जिले में स्थित ऐतिहासिक कस्बे भानपुरा की जगदीश मंदिर गली में स्थित भंडारी निवास में तीन अप्रैल 1939 को उनका जन्म हुआ था, उस घर से भंडारी परिवार आज भी जुड़ा हुआ है. मन्नू भंडारी जब छह वर्ष की थीं तभी उनके पिता सुखसंपतराय भंडारी अपने परिवार को लेकर राजस्थान के अजमेर रहने चले गए थे, लेकिन मन्नू अपने जीवन काल में भानपुरा आती रहीं. 5 अक्टूबर 2002 को वे अपने पति साहित्यकार राजेंद्र यादव के साथ अपने काकाजी के स्वर्ण जयंती समारोह में शामिल होने आई थीं.

अजमेर से इंदौर आकर बस गया परिवार

जिस मकान में मन्नू भंडारी जन्म हुआ था, वह आज भी अच्छी स्थिति में है. एक चौकीदार इस मकान की रखवाली और देखभाल करता है. मन्नू के जीवन पर उनके पिता का बहुत प्रभाव था. पिता अजमेर के बाद मप्र के इंदौर आ गए थे. तब कांग्रेस का प्रदेश में सबसे पहला कार्यालय 1920 में इनके पिता के निवास पर ही खुला था. महात्मा गांधी जब पहली बार इंदौर आए थे, तब मन्नू भंडारी के पिता सुख संपत राय भंडारी स्वागत समिति के अध्यक्ष थे. मप्र में भी मन्नू भंडारी ने अपनी सेवाएं दीं हालांकि वे बहुत कम रही. वे 1992 से 1994 तक उज्जैन स्थित विक्रम विश्वविद्यालय की प्रेमचंद सृजनपीठ की डायरेक्टर रहीं. उन्होंने कई फिल्मों की पटकथा भी लिखी. 1959 में साहित्यकार राजेंद्र यादव से विवाह किया था. उनके उपन्यास 'आपका बंटी' और 'महाभोज से उन्हें सर्वाधिक प्रसिद्धि मिली. उन्होंने रजनीगंधा, निर्मला, स्वामी, दर्पण जैसी फिल्मों की पटकथाएं भी लिखीं. 2008 में उन्हें उपाधिन्यास से सम्मानित भी किया गया.

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