भोपाल। आंकड़ों की बाजीगरी करके नंबर 1 कैसे आया जाता है, यह मध्य प्रदेश में आपको दिखाई दे जाएगा. यहां दिव्यांगों के यूनिवर्सल आईडी कार्ड बनाने में जो डेटा सामने आया है वह होश उड़ा देने वाला है. जनगणना के आंकड़ों के हिसाब से प्रदेश में दिव्यांगों की संख्या 15 लाख थी, लेकिन शुरूआती रजिस्ट्रेशन के दौरान दिव्यांग ही नहीं मिले, इसके चलते प्रदेश में यूनिक डिसएबिलिटी आईडी कार्ड का लक्ष्य 6.60 लाख रखा गया, जबकि कमाल यह हुआ कि तय लक्ष्य से ज्यादा 6 लाख 83 हजार दिव्यांगों के आईडी कार्ड बना चुके हैं. खास बात यह है कि अभी तक।8 लाख 20 हजार दिव्यांग लापता ही हैं.
प्रदेश में हैं 15 लाख दिव्यांग
2011 की जनसंख्या के आंकड़ों के हिसाब से मध्यप्रदेश में दिव्यांगों की संख्या 15 लाख है. केंद्र सरकार ने दिव्यांगों के लिए यूनिक डिसएबिलिटी आईडी कार्ड बनाए जाने का कार्यक्रम शुरू किया. इसका उद्देश्य यह है कि आईडी कार्ड बनने के बाद दिव्यांगों का पूरा रिकाॅर्ड सरकार के पास मौजूद हो ताकि इनके माध्यम से तमाम सरकारी योजनाओं का लाभ उनतक पहुंचाया जा सके. करीब 6 साल पहले यूनिक डिसएबिलिटी आईडी कार्ड बनाने की योजना की शुरूआत की गई, लेकिन प्रदेश सरकार तमाम कोशिशों के बावजूद प्रदेश में मौजूद 15 लाख दिव्यांगों तक नहीं पहुंचा पाई. यही वजह है कि बमुश्किल 6 लाख 83 हजार दिव्यांगों के ही आईडी कार्ड बनाए जा सके हैं.
नहीं मिले दिव्यांग तो बदल दिया लक्ष्य
सरकारी मशीनरी की कई कोशिशों के बाद भी प्रदेश में मौजूद 8 लाख 20 हजार दिव्यांगों को खोलने में सफलता नहीं मिली. जिसके बाद बीच का रास्ता निकालते हुए प्रदेश में यूनिट डिसएबिलिटी आईडी कार्ड का लक्ष्य ही बदल दिया गया. केन्द्र सरकार ने प्रदेश को मिले लक्ष्य को छोटा करते हुए 6 लाख 60 हजार 313 कार्ड डिसएबिलिटी कार्ड बनाए जाने का लक्ष्य दिया. लेकिन कमाल की बात यह रही कि जो विभाग 8 लाख से ज्यादा दिव्यांगों को तलाश नहीं पा रहा था उसने मध्य प्रदेश में लक्ष्य से ज्यादा 6 लाख 83 हजार 551 दिव्यांगों के यूडीआइडी कार्ड बना दिए. इस तरह आंकड़ों के खेल में मध्यप्रदेश देश में अव्वल आ गया.
अब...फिर से चैक होगा डाटा
तय लक्ष्य से ज्यादा आईडी कार्ड बन जाने के बाद सामाजिक न्याय विभाग ने डाटा का दुबारा से वेरिफिकेशन के आदेश दिए हैं. प्रदेश में मौजूद बाकी दिव्यांगों को ढूंढने और उनका रजिस्ट्रेशन कराने के लिए सामाजिक न्याय विभाग ने पिछले दस सालों में जिलों में बने दिव्यांग सर्टिफिकेट समेत सभी डाटा को फिर से चैक करने के निर्देश देते हुए कहा है कि इनके वेरिफिकेशन के बाद ही इन्हें अपलोड किया जाए. हालांकि लापता दिव्यागों को खोजने में अब भी सबसे ज्यादा समस्या ग्रामीण इलाकों में आ रही है, क्योंकि प्रदेश के ग्रामीण इलाकों में ही दिव्यांगों की संख्या 11 लाख है.
मंत्री का दावा प्रदेश में अच्छा काम हुआ है: सामाजिक न्याय विभाग के मंत्री प्रेम सिंह पटेल के मुताबिक प्रदेश के सभी दिव्यांगों का रजिस्ट्रेशन कराया जा रहा है. वे कहते हैं कि इस मामले में प्रदेश में अच्छा काम हुआ है, बाकी जो दिव्यांग बचे हैं, उन्हें भी खोजकर उनका रजिस्ट्रेशन कराया जाएगा, ताकि सभी सरकारी योजनाओं का लाभ उन्हें मिल सके. खास बात यह है कि 10 साल में दिव्यांगों का डाटा दुरुस्त नहीं कर सका सामाजिक न्याय विभाग लापता दिव्यांगों को सरकारी योजनाओं का लाभ कैसे दिलाएगा यह बड़ा सवाल है.