भोपाल। गर्भावस्था के दौरान महिलाओं की मानसिक स्थिति भी महत्वपूर्ण पहलू है. यदि गर्भवती महिला की मानसिक स्थिति ठीक नहीं है तो उसका असर गर्भ में पल रहे शिशु पर पड़ता है. ऐसे में हाल ही में हुआ एक सर्वे चिंता बढ़ाने वाला है, जिसमें कहा गया है की कोरोना काल में गर्भवती महिलाओं में डिप्रेशन बढ़ा है. ऐसे में घर वालों और पति की जिम्मेदारी बढ़ जाती है की वह गर्भवती का ज्यादा ध्यान रखे और उसके साथ ज्यादा समय बिताएं.
ईटीवी भारत से बातचीत में मनोचिकित्सक रूमा भट्टाचार्य ने बाताया की पिछले 12 हफ्तों में उनके पास गर्भवती महिलाओं में डिप्रेशन के ज्यादा मामले आए हैं. ऐसा इसलिए क्योंकि महिला अपने होने वाले बच्चे के लिए ज्यादा चिंतित हो जाती है, वहीं इस समय कोरोना ने उनकी चिंता बढ़ा दी है, कहीं बच्चा कोरोना पॉजिटिव हो या फिर हास्पिटल में कोई समस्या न हो. लगातार इस चिंता से गर्भवतियों में डिप्रेशन बढ़ा है.
हारमोंस चेंज से बढ़ता है चिड़चिड़ापन
कोविड-19 के असर से लगभग 30 से 40 परसेंट तक लोग में भावनात्मक या मानसिक तनाव बढ़ा है. उसमें सबसे ज्यादा गर्भवती महिलाएं हैं. क्योंकि प्रेगनेंसी एक ऐसा पीरियड होता है जो जीवन में बहुत ही अहम होता है. महिलाओं में प्रेगनेंसी के दौरान अवसाद और डिप्रेशन होता ही है, उनके पूरे शरीर में बदलाव आता है हारमोंस चेंज होते हैं. जिसके कारण एक तिहाई महिलाओं में बदलाव दिखाई पड़ते हैं. लेकिन कोविड-19 के कारण यह बदलाव देखने को अधिक मिल रहा है.
घर में बंद रहना भी एक कारण
इन दिनों ज्यादातर महिलाएं घर के अंदर ही हैं उन्हें खुले वातावरण में जाना जरूरी है परिवार के साथ समय बिताना भी जरूरी है, लेकिन ऐसा नही हो पा रहा है और न ही वह अपने मायके जा पा रही हैं. इसके चलते भी उनमें अवसाद के लक्षण देखने में आ रहे हैं. जिसके कारण उनमें उदासी घर कर रही है. वह अपने आप को सहज महसूस नहीं कर पा रहीं, नींद की समस्या भी देखने को आ रही है.
डिप्रेशन से निजात पा सकती हैं
मनोचिकित्सक रूमा भट्टाचार्य के अनुसार गर्भावस्था के दौरान और नई मां को इस मानसिक स्थिति से बाहर लाने में परिवार के लोगों का उनकी फीलिंग को समझना महत्वपूर्ण हो सकता है. फॉर्मल और इनफॉर्मल सपोर्ट के साथ वे डिप्रेशन से निजात पा सकती हैं.