मुंबई : रूस-यूक्रेन के बीच जारी सैन्य संघर्ष के बीच कच्चे तेल की कीमतों में रिकॉर्ड वृद्धि के कारण अंतरबैंक विदेशी मुद्रा विनिमय बाजार में सोमवार को रुपया 76 पैसे टूटकर 76.93 प्रति डॉलर पर बंद हुआ. एक समय यह 77 प्रति डॉलर के अपने सर्वकालिक निचले स्तर पर पहुंच गया था. अमेरिका और यूरोपीय देशों द्वारा रूसी ऊर्जा आयात पर प्रतिबंध लगाने पर विचार करने के बीच वैश्विक स्तर पर कच्चे तेल की कीमत 120 डॉलर प्रति बैरल पर पहुंच गई.
कारोबारियों ने कहा कि विदेशी कोषों की निरंतर निकासी और घरेलू शेयर बाजारों में कमजोरी के रुख का भी निवेशकों की धारणा पर असर पड़ा है. अंतरबैंक विदेशी मुद्रा विनिमय बाजार में रुपया 76.85 प्रति डॉलर पर खुला. कारोबार के दौरान यह 77.01 प्रति डॉलर पर आ गया और बाद में 76.93 के स्तर पर बंद हुआ, जो इससे पिछले बंद भाव की तुलना में 76 पैसे की गिरावट दर्शाता है.
रेलिगेयर ब्रोकिंग लिमिटेड की उपाध्यक्ष जिंस और मुद्रा अनुसंधान सुगंधा सचदेवा ने कहा, 'अमेरिकी मुद्रा के मुकाबले रुपया अपने सर्वकालिक निचले स्तर पर आ गया है. रूस-यूक्रेन संघर्ष ने बाजार में जोखिम उठाने की धारणा को कम कर दिया है, जबकि अमेरिकी डॉलर में सुरक्षित पनाहगाह के रूप में प्रवाह बढ़ा है.' सचदेवा के अनुसार, रुपये का स्तर निकट भविष्य में 77.50 की ओर जा सकता है.
इस बीच, छह मुद्राओं की तुलना में डॉलर का रुख दर्शाने वाला डॉलर सूचकांक 0.46 प्रतिशत मजबूत होकर 99.09 पर कारोबार कर रह था. वहीं वैश्विक मानक ब्रेंट क्रूड वायदा की कीमत 6.55 प्रतिशत उछलकर 125.85 डॉलर प्रति बैरल पर पहुंच गई. बीएसई का 30 शेयरों वाला सेंसेक्स 1,491.06 अंक लुढ़ककर 52,842.75 अंक पर बंद हुआ. नेशनल स्टॉक एक्सचेंज के निफ्टी में 382.20 अंक की गिरावट दर्ज की गई. शेयर बाजार के अस्थायी आंकड़ों के अनुसार, विदेशी संस्थागत निवेशक पूंजी बाजार में शुद्ध बिकवाल रहे. उन्होंने शुक्रवार को 7,631.02 करोड़ रुपये मूल्य के शेयर बेचे.
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रिलायंस सिक्योरिटीज के वरिष्ठ अनुसंधान विश्लेषक श्रीराम अय्यर ने कहा, 'रूस के तेल आयात पर प्रतिबंध के विचार के बाद सोमवार को अमेरिकी डॉलर के मुकाबले भारतीय मुद्रा गिर गई. कच्चे तेल की कीमतें के कई साल के उच्च स्तर पर पहुंचने से मुद्रास्फीति और व्यापक व्यापार घाटे में वृद्धि की आशंका बढ़ गई है.'
वहीं, निवेश परामर्श फर्म मिलवुड केन इंटरनेशनल के संस्थापक और मुख्य कार्यपालक अधिकारी निश भट्ट के अनुसार, कच्चे तेल की कीमतों में वृद्धि से राजकोषीय घाटा प्रभावित होता है और इसका घरेलू मुद्रा पर भी दबाव पड़ता है. एमके ग्लोबल फाइनेंशियल सर्विसेज के अनुसार, वैश्विक अर्थव्यवस्थाओं को इस साल मंदी के बढ़ते जोखिम का सामना करना पड़ रहा है. यूक्रेन पर रूस के आक्रमण ने आपूर्ति श्रृंखलाओं को गंभीर रूप से बाधित कर दिया है और संघर्ष शुरू होने के बाद से जिंसों की कीमतें बढ़ गई हैं.
(पीटीआई-भाषा)