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विंध्य की अमूल्य धरोहर हैं ये कलाकृतियां, देखकर खजुराहो की यादें हो जाएंगी ताज़ा

शहडोल के संभागीय मुख्यालय में विराट शिव मन्दिर स्थित है. ये विराट मंदिर विंध्य की अमूल्य धरोहर है, कलचुरीकालीन ये मंदिर पुरातात्विक धरोहर है.

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Published : May 29, 2019, 2:21 PM IST

विराटेश्वर शिव मन्दिर

शहडोल। जिले को विराट नगर के नाम से भी जाना जाता है. ये नाम विराट शिव मन्दिर से आया है. शहडोल के संभागीय मुख्यालय में विराट शिव मन्दिर स्थित है. ये विराट मंदिर विंध्य की अमूल्य धरोहर है, कलचुरीकालीन ये मंदिर पुरातात्विक धरोहर है. इस मंदिर की कलाकृतियां देखकर कोई भी हैरान रह जाएगा.

विराटेश्वर शिव मन्दिर

इस प्राचीन मंदिर में अद्भुत कलाकृतियां हैं, जो इसे एक अलग ही पहचान दिलाती हैं. इस मंदिर की कलाएं खजुराहो की याद दिलाती है. इस पूरे मंदिर में कला का अनूठा संगम है. मंदिर का इतिहास काफी पुराना है. पुरातत्वविद रामनाथ सिंह परमार बताते है कि ये मंदिर 10वीं-11वीं सदी का है, इस मंदिर का निर्माण कल्चुरी राजाओं ने करवाया था. ये मंदिर पूरी तरह से शिव को समर्पित है. मंदिर का निर्माण आयताकार ऊंची जगती में किया गया है. जिसकी लंबाई लगभग 46 फुट और चौड़ाई 34 फुट है. वहीं मंदिर की ऊंचाई 72 फिट है. मंदिर का तल विन्यास महामंडप अंतराल वर्गाकार गर्भगृह में विभाजित है.

गर्भगृह में विराजमान शिवलिंग आकर्षण का केंद्र
इतने बड़े मंदिर के गर्भगृह में छोटे शिवलिंग हैं, जो आकर्षण का केंद्र हैं. इतने छोटे शिवलिंग के बारे में पुरातत्व के जानकारों का मानना है कि जिस प्रकार इतने बड़े शरीर में आत्मा बहुत सूक्ष्म होता है, ठीक उसी तरह मंदिर में परमात्मा के स्वरूप में शिवलिंग विराजमान हैं. कलचुरिकालीन राजा युवराज देव प्रथम भगवान शिव के उपाशक थे, जिन्होंने इस मंदिर का निर्माण कराया था.

दूर-दूर से आते हैं पर्यटक
विराट मंदिर पर्यटन का बड़ा केन्द्र है. इस मंदिर की कलाकृतियों को देखने, मंदिर के गर्भगृह में विराजे भगवान शिव के दर्शन करने दूर-दूर से पर्यटक आते हैं. जिले में स्थित ये धरोहर खजुराहो की याद भी दिलाता है. ये मंदिर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण भारत सरकार के सरंक्षण में है.

शहडोल। जिले को विराट नगर के नाम से भी जाना जाता है. ये नाम विराट शिव मन्दिर से आया है. शहडोल के संभागीय मुख्यालय में विराट शिव मन्दिर स्थित है. ये विराट मंदिर विंध्य की अमूल्य धरोहर है, कलचुरीकालीन ये मंदिर पुरातात्विक धरोहर है. इस मंदिर की कलाकृतियां देखकर कोई भी हैरान रह जाएगा.

विराटेश्वर शिव मन्दिर

इस प्राचीन मंदिर में अद्भुत कलाकृतियां हैं, जो इसे एक अलग ही पहचान दिलाती हैं. इस मंदिर की कलाएं खजुराहो की याद दिलाती है. इस पूरे मंदिर में कला का अनूठा संगम है. मंदिर का इतिहास काफी पुराना है. पुरातत्वविद रामनाथ सिंह परमार बताते है कि ये मंदिर 10वीं-11वीं सदी का है, इस मंदिर का निर्माण कल्चुरी राजाओं ने करवाया था. ये मंदिर पूरी तरह से शिव को समर्पित है. मंदिर का निर्माण आयताकार ऊंची जगती में किया गया है. जिसकी लंबाई लगभग 46 फुट और चौड़ाई 34 फुट है. वहीं मंदिर की ऊंचाई 72 फिट है. मंदिर का तल विन्यास महामंडप अंतराल वर्गाकार गर्भगृह में विभाजित है.

गर्भगृह में विराजमान शिवलिंग आकर्षण का केंद्र
इतने बड़े मंदिर के गर्भगृह में छोटे शिवलिंग हैं, जो आकर्षण का केंद्र हैं. इतने छोटे शिवलिंग के बारे में पुरातत्व के जानकारों का मानना है कि जिस प्रकार इतने बड़े शरीर में आत्मा बहुत सूक्ष्म होता है, ठीक उसी तरह मंदिर में परमात्मा के स्वरूप में शिवलिंग विराजमान हैं. कलचुरिकालीन राजा युवराज देव प्रथम भगवान शिव के उपाशक थे, जिन्होंने इस मंदिर का निर्माण कराया था.

दूर-दूर से आते हैं पर्यटक
विराट मंदिर पर्यटन का बड़ा केन्द्र है. इस मंदिर की कलाकृतियों को देखने, मंदिर के गर्भगृह में विराजे भगवान शिव के दर्शन करने दूर-दूर से पर्यटक आते हैं. जिले में स्थित ये धरोहर खजुराहो की याद भी दिलाता है. ये मंदिर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण भारत सरकार के सरंक्षण में है.

Intro:note_ एक बाईट पुरातत्वविद रामनाथ सिंह परमार की है।


विंध्य की अमूल्य धरोहर है ये, इसकी कलाकृतियां देखकर खजुराहो की यादें ताज़ा हो जाएंगी

शहडोल- शहडोल के संभागीय मुख्यालय में स्थित है, विराट शिव मन्दिर, जिसे विराट मंदिर के नाम से भी जाना जाता है, शहडोल को विराट नगर के नाम से भी ज्यादातर लोग जानते हैं, जिले का ये विराट मंदिर विंध्य की अमूल धरोहर है, कलचुरिकालीन ये मंदिर पुरातात्विक धरोहर है, इस मंदिर की कलाकृतियां देखकर आप भी हैरान रह जाएंगे, इस प्राचीन मंदिर में अद्भुत कलाकृतियां हैं, जो इसे एक अलग ही पहचान दिलातीं हैं। इस मंदिर की कलाओं को एक बार देखने पर आप को खजुराहो की याद भी आ जायेगी, इस पूरे मंदिर में कला का अनूठा संगम है।




Body:मंदिर का इतिहास

इस मंदिर का इतिहास बहुत पुराना है पुरातत्वविद रामनाथ सिंह परमार बताते हैं कि ये मंदिर 10वीं, 11वीं सदी का है, इस मंदिर का निर्माण कल्चुरी राजाओं ने करवाया था।ये मंदिर पूरी तरह से शिव को समर्पित है।

मंदिर का निर्माण आयताकार ऊंची जगती में किया गया है जिसकी लंबाई लगभग 46 फुट, और चौड़ाई 34 फुट है, वहीं मंदिर की ऊंचाई 72 फिट है। मंदिर का तल विन्यास महामंडप, अंतराल वर्गाकार गर्भगृह में विभाजित है।

मंदिर पूर्वाभिमुख एवं सप्तरथ मंदिर वास्तु विधा पर निर्मित है, इसमें प्रमुख रूप से अर्धमंडप, मंडप, अंतराल, और गर्भ गृह, इस विन्यास में इसका शिल्पन हुआ है, ये मंदिर सप्त रची शैली, वास्तु शिल्पन में शिल्पित किया गया है।

अद्भुत है शिल्पकला

विराट मंदिर की मूर्तिकला अद्भत है, बाह्य भाग के ऊपर बीच में महामंडप के एक किनारे से दूसरे किनारे तक अप्सराओं का कई भाव भंगिमाओं में अंकन है, जो प्रतिमा शास्त्रीय एवं सौंदर्य की दृष्टि से अनुपम है, भद्र रथिकाओं में नीचे की ओर नृत्य मुद्रा में गणेश की प्रतिमा का उल्लेख है जिनके हाथ में सर्प, कमल, परशु, मोदक, है। दूसरे भद्ररथ में कार्तिकेय की प्रतिमा है जो भग्न है।
कोण रथ के तटों पर बाह्य, हयग्रीव, ब्राह्मणी का दृश्य, भद्ररथ के बीच में भिपूरा तक मूर्तियों का शिल्पन है। अर्धनारेश्वर, सरस्वती, अष्ठदिकपाल, दुर्गा इसके अलावा मंदिर में मिथुन दृश्य बहुतायत में है।

इतने बड़े मंदिर में छोटे शिव आकर्षण का केंद्र

इतने बड़े मंदिर में गर्भगृह में छोटे शिवलिंग हैं, जो आकर्षण का केंद्र हैं, और अपने आप में बहुत कुछ समेटे हुए हैं, इतने छोटे शिवलिंग के बारे में पुरातत्व के जानकारों का मानना है कि जिस प्रकार इतने बड़े शरीर में आत्मा बहुत सूक्ष्म होता है ठीक इसी तरह मंदिर में परमात्मा के स्वरूप में शिवलिंग विराजमान हैं। कलचुरिकालीन राजा युवराज देव प्रथम भगवान शिव के उपाशक थे , और उन्होंने ने इस मंदिर का निर्माण कराया था।


दूर दूर से आते हैं पर्यटक

जिले का ये विराट मंदिर पर्यटन का बड़ा केन्द्र है और इस मंदिर की कलाकृतियों को देखने, मंदिर के गर्भगृह में विराजे भगवान शिव के दर्शन करने दूर दूर से पर्यटक आते हैं।




Conclusion:खजुराहो की याद दिलाता है ये मंदिर

जिले में स्थित ये धरोहर खजुराहो की याद भी दिलाता है, ब्रिटिश इतिहासकार बैंगलर ने इस मंदिर को खजुराहो के समकालीन निरूपित किया है। इस मंदिर की उच्च शिल्प कला को देखकर हमें खजुराहो की याद आती है, पुरातत्वविद रामनाथ सिंह के मुताबिक खजुराहो की प्रतिमाओं का जो काम कला का संदर्शन है, उनका छाप यहां के मंदिर में भी नज़र आता है।

अब ये मंदिर भारत सरकार के सरंक्षण में है

शहडोल जिले में स्थित ये विराट मंदिर कलचुरी नरेशों की शैव धर्म के प्रतीक स्तंभ के रूप में अनेकता में एकता लिए आज भी अपने विशाल रूप में अडिग है, अब ये मंदिर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण भारत सरकार के सरंक्षण में है।

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