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सत्ता की चाबी गंवाने के साइड इफेक्ट! बीजेपी को चंदा देने वालों की संख्या भी हुई कम

बीजेपी द्वारा आजीवन सहयोग निधि के नाम पर ली जाने वाली राशि का लक्ष्य 11 करोड़ रूपए है, लेकिन अब तक बमुश्किल 7 लाख रूपए जमा हो पाए हैं, जबकि सत्ता में रहने के दौरान बीजेपी मार्च के अंत तक इस लक्ष्य को पूरा कर लेती थी.

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Published : Mar 11, 2019, 8:06 PM IST

बीजेपी कार्यालय, भोपाल

भोपाल। बीजेपी को प्रदेश से सत्ता गंवाने का साइड इफेक्ट नजर आने लगा है. ये साइट इफेक्ट है पार्टी फंड में चंदे की कमी. चंदे के लिए पार्टी को मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है.

बीजेपी द्वारा आजीवन सहयोग निधि के नाम पर ली जाने वाली राशि का लक्ष्य 11 करोड़ रूपए है, लेकिन बमुश्किल 7 लाख रूपए जमा हो पाए हैं, जबकि सत्ता में रहने के दौरान बीजेपी मार्च के अंत तक इस लक्ष्य को पूरा कर लेती थी.

सत्ता की चाबी गंवाने के साइड इफेक्ट! बीजेपी को चंदा देने वालों की संख्या भी हुई कम

बीजेपी के चंदे में इस बार लक्ष्य से लगभग 94 प्रतिशत कमी आई है. राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक इसकी वजह प्रदेश से बीजेपी की सत्ता का चला जाना है. पार्टी के सांसद और विधायकों की बात की जाए, तो उन्हें भी हर साल एक निश्चित राशि फंड के रूप में जमा करनी होती है, जो वर्तमान में उसके 26 सांसद और 109 विधायक और 8 राज्यसभा सदस्यों के हिसाब से 15 लाख है, लेकिन अभी तक बीजेपी के कई सांसद और विधायकों ने यह राशि उसे नहीं दी है.

माना जा रहा है कि सरकार जाने के बाद बीजेपी को आर्थिक तंगहाली का सामना करना पड़ सकता है. पिछले दिनों राजधानी में एक बैठक में बीजेपी संगठन महामंत्री रामलाल ने भी साफ कहा था कि 'अब सरकार नहीं है, इसलिए संगठन के कार्यक्रमों का खर्च विभिन्न मोर्चे और जिला कार्यकारिणी की टीम स्वयं ही निकाले.' हालांकि इसके इतर बीजेपी कार्यकर्ता तंगहाली की बात से साफ इंकार कर रहे हैं.

गौरतलब है कि बीजेपी के लिए आजीवन सहयोग निधि की शुरुआत कुशाभाऊ ठाकरे ने की थी. इसका मकसद संगठन को चलाने के लिए आर्थिक उपाय करना था. सबसे पहले मध्यप्रदेश से शुरू हुई यह व्यवस्था अब बीजेपी द्वारा देशभर में लागू है, जिसके लिए उसे पार्टी की विचारधार रखने वाले और पार्टी पदाधिकारी सहयोग राशि देते हैं.

भोपाल। बीजेपी को प्रदेश से सत्ता गंवाने का साइड इफेक्ट नजर आने लगा है. ये साइट इफेक्ट है पार्टी फंड में चंदे की कमी. चंदे के लिए पार्टी को मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है.

बीजेपी द्वारा आजीवन सहयोग निधि के नाम पर ली जाने वाली राशि का लक्ष्य 11 करोड़ रूपए है, लेकिन बमुश्किल 7 लाख रूपए जमा हो पाए हैं, जबकि सत्ता में रहने के दौरान बीजेपी मार्च के अंत तक इस लक्ष्य को पूरा कर लेती थी.

सत्ता की चाबी गंवाने के साइड इफेक्ट! बीजेपी को चंदा देने वालों की संख्या भी हुई कम

बीजेपी के चंदे में इस बार लक्ष्य से लगभग 94 प्रतिशत कमी आई है. राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक इसकी वजह प्रदेश से बीजेपी की सत्ता का चला जाना है. पार्टी के सांसद और विधायकों की बात की जाए, तो उन्हें भी हर साल एक निश्चित राशि फंड के रूप में जमा करनी होती है, जो वर्तमान में उसके 26 सांसद और 109 विधायक और 8 राज्यसभा सदस्यों के हिसाब से 15 लाख है, लेकिन अभी तक बीजेपी के कई सांसद और विधायकों ने यह राशि उसे नहीं दी है.

माना जा रहा है कि सरकार जाने के बाद बीजेपी को आर्थिक तंगहाली का सामना करना पड़ सकता है. पिछले दिनों राजधानी में एक बैठक में बीजेपी संगठन महामंत्री रामलाल ने भी साफ कहा था कि 'अब सरकार नहीं है, इसलिए संगठन के कार्यक्रमों का खर्च विभिन्न मोर्चे और जिला कार्यकारिणी की टीम स्वयं ही निकाले.' हालांकि इसके इतर बीजेपी कार्यकर्ता तंगहाली की बात से साफ इंकार कर रहे हैं.

गौरतलब है कि बीजेपी के लिए आजीवन सहयोग निधि की शुरुआत कुशाभाऊ ठाकरे ने की थी. इसका मकसद संगठन को चलाने के लिए आर्थिक उपाय करना था. सबसे पहले मध्यप्रदेश से शुरू हुई यह व्यवस्था अब बीजेपी द्वारा देशभर में लागू है, जिसके लिए उसे पार्टी की विचारधार रखने वाले और पार्टी पदाधिकारी सहयोग राशि देते हैं.

Intro:भोपाल- बीजेपी में प्रदेश से सत्ता गंवाने के साइड इफेक्ट नजर आने लगे हैं पार्टी को इस बार चंदा जुटाने में मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है आजीवन सहयोग निधि के नाम पर ली जाने वाली राशि का लक्ष्य 11 करोड़ रुपए है लेकिन अभी तक बमुश्किल ₹700000 ही जमा हुए हैं जबकि सत्ता में रहने के दौरान पार्टी मार्च के अंत तक इस निधि का लक्ष्य पूरा कर लेती थी इस बार लक्ष्य से लगभग 94 प्रतिशत कम राशि पार्टी के खाते में आई है।


Body:मध्यप्रदेश में बीजेपी से सत्ता छीनी तो चंदा देने वालों की संख्या में भी भारी कमी आई है सांसद विधायकों की बात करें तो सांसद विधायकों को हर साल 10 1000 रुपए जमा करना होता है इस हिसाब से देखा जाए तो मध्य प्रदेश के 26 सांसद और 109 विधायक और 8 राज्यसभा सदस्यों से लगभग 1500000 रुपए एकत्रित होना चाहिए लेकिन अभी तक कई सांसदों और विधायकों ने यह राशि जमा नहीं कराई है माना जा रहा है कि सरकार जाने के बाद आर्थिक रूप से कमजोर ही भाजपा को राशि कम एकत्रित होने से आर्थिक तंगहाली का सामना करना पड़ सत्ता है पिछले दिनों राजधानी में पदाधिकारियों की एक बैठक में भाजपा संगठन महामंत्री रामलाल ने साफ कहा था कि अब सरकार नहीं है इसलिए संगठन के कार्यक्रमों का खर्चा विभिन्न मोर्चे और जिला कार्यकारिणी की टीम स्वयं ही निकाले हालांकि बीजेपी कार्यकर्ता तंगहाली की बात से साफ इंकार कर रहे हैं।

बाइट- रजनीश अग्रवाल, प्रवक्ता, बीजेपी।


Conclusion:आजीवन सहयोग निधि की शुरुआत कुशाभाऊ ठाकरे ने की थी तब विपक्षी भाजपा को संगठन चलाने के लिए पैसों की जरूरत थी ठाकरे ने पार्टी के पदाधिकारियों कार्यकर्ताओं और पार्टी की विचारधारा से सहमति रखने वालों से आजीवन सहयोग निधि लेकर संगठन चलाने की व्यवस्था की मध्य प्रदेश से इसकी शुरुआत हुई और बाद में पूरे देश में यह व्यवस्था लागू की गई लेकिन मध्य प्रदेश से सत्ता जाने के बाद अब कहीं ना कहीं बीजेपी को यह राशि जमा करने में पसीने छूट रहे हैं।
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