भोपाल। बीजेपी को प्रदेश से सत्ता गंवाने का साइड इफेक्ट नजर आने लगा है. ये साइट इफेक्ट है पार्टी फंड में चंदे की कमी. चंदे के लिए पार्टी को मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है.
बीजेपी द्वारा आजीवन सहयोग निधि के नाम पर ली जाने वाली राशि का लक्ष्य 11 करोड़ रूपए है, लेकिन बमुश्किल 7 लाख रूपए जमा हो पाए हैं, जबकि सत्ता में रहने के दौरान बीजेपी मार्च के अंत तक इस लक्ष्य को पूरा कर लेती थी.
बीजेपी के चंदे में इस बार लक्ष्य से लगभग 94 प्रतिशत कमी आई है. राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक इसकी वजह प्रदेश से बीजेपी की सत्ता का चला जाना है. पार्टी के सांसद और विधायकों की बात की जाए, तो उन्हें भी हर साल एक निश्चित राशि फंड के रूप में जमा करनी होती है, जो वर्तमान में उसके 26 सांसद और 109 विधायक और 8 राज्यसभा सदस्यों के हिसाब से 15 लाख है, लेकिन अभी तक बीजेपी के कई सांसद और विधायकों ने यह राशि उसे नहीं दी है.
माना जा रहा है कि सरकार जाने के बाद बीजेपी को आर्थिक तंगहाली का सामना करना पड़ सकता है. पिछले दिनों राजधानी में एक बैठक में बीजेपी संगठन महामंत्री रामलाल ने भी साफ कहा था कि 'अब सरकार नहीं है, इसलिए संगठन के कार्यक्रमों का खर्च विभिन्न मोर्चे और जिला कार्यकारिणी की टीम स्वयं ही निकाले.' हालांकि इसके इतर बीजेपी कार्यकर्ता तंगहाली की बात से साफ इंकार कर रहे हैं.
गौरतलब है कि बीजेपी के लिए आजीवन सहयोग निधि की शुरुआत कुशाभाऊ ठाकरे ने की थी. इसका मकसद संगठन को चलाने के लिए आर्थिक उपाय करना था. सबसे पहले मध्यप्रदेश से शुरू हुई यह व्यवस्था अब बीजेपी द्वारा देशभर में लागू है, जिसके लिए उसे पार्टी की विचारधार रखने वाले और पार्टी पदाधिकारी सहयोग राशि देते हैं.