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छतरपुर: आंखों से दिव्यांग बलराम अहिरवार चलाते हैं दुकान, जानें कैसे रखते हैं पैसों का हिसाब - tambura

छतरपुर जिले के पठानीपुर गांव में रहने वाले बलराम अहिरवार आंखों से दिव्यांग है, लेकिन बीते 40 सालों से वे एक किराने की दुकान चला रहे हैं. ग्राहक जब उनसे सामान लेने आते हैं तो वे बिना किसी मदद के मांगा हुआ सामान उन्हें दे देते हैं. इसके पीछे उनका 40 सालों का तजुर्बा उनके काम आता है. वहीं देशी वाद्य यंत्र भी वे बखूभी बजा लेते हैं. देखें वीडियो

आंखों से दिव्यांग बलराम अहिरवार
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Published : Mar 30, 2019, 11:42 PM IST

छतरपुर। जिले केपठानीपुर गांव में रहने वाले बलराम अहिरवार इन दिनों खासे चर्चा में हैं. बलराम अहिरवार आंखों से दिव्यांग किराना व्यवसायी है. लेकिन इसके बावजूद वे अपनी किराना दुकान का संचालन बड़ी आसानी से कर लेते है. यही नहीं 54 बर्ष की उम्र में भी उनसे पैसों की लेन-देन को लेकर भी किसी तरह की भूल नहीं होती है, जिसके पीछे वे अपना 40 सालों का दुकान चलाने का तजूर्बा बताते हैं.

आंखों से दिव्यांग बलराम अहिरवार

बलराम के मुताबिक जब वे 3 साल के थे तब आंखों से दिव्यांग हो गए थे. इसी दौरान उनके माता-पिता का भी देहांत हो गया. तभी से वे किराना दुकान चलाकर अपना भरण पोषण कर रहे हैं. बलराम ने बताया कि जब उन्होंने दुकान शुरु की थी तब उसकी लागत कुल 2 रुपए थी, लेकिन आज उनकी दुकान में लाखों रुपए का सामान भरा हुआ है.

बलराम ने इसके आगे बताया कि वे दुकान से हर दिन तकरीबन सौ से दो सौ रुपये कमा लेता हैं. बलराम ठीक वैसे ही किराना की दुकान चलाते है जिसे कोई आम इंसान चलाता है भले ही उनकी आंख न हो, लेकिन कोई भी उन्हें बेवकुफ़ नही बना सकता... रुपये को छूते ही वे बता देते हैं कि उनके हाथ में कितने रुपये का नोट या सिक्का है. इसके अलावा जब कोई ग्राहक भी उनकी दुकान पर सामान लेने आता है, तो उसमें भी उनसे कोई गलती नही होती.

बलराम ने बताया कि उन्होंने शादी भी की थी, लेकिन उनकी पत्नी उन्हें छोड़कर चली गई. अब बलराम ने अकेलापन दूर करने के लिए तामूरा भी सीख लिया है, जिसे वे बजाकर अपना दिल बहला लेते हैं. बलराम के ही गांव के भैयालाल बताते हैं कि 40 सालों से वो दिव्यांग बलराम की दुकान से ही सामान खरीद रहे हैं. बलराम के गांव के लोगों के मुताबिक उन्हें शासन से भी किसी तरह की आज तक कोई सहायता नहीं मिली है.

छतरपुर। जिले केपठानीपुर गांव में रहने वाले बलराम अहिरवार इन दिनों खासे चर्चा में हैं. बलराम अहिरवार आंखों से दिव्यांग किराना व्यवसायी है. लेकिन इसके बावजूद वे अपनी किराना दुकान का संचालन बड़ी आसानी से कर लेते है. यही नहीं 54 बर्ष की उम्र में भी उनसे पैसों की लेन-देन को लेकर भी किसी तरह की भूल नहीं होती है, जिसके पीछे वे अपना 40 सालों का दुकान चलाने का तजूर्बा बताते हैं.

आंखों से दिव्यांग बलराम अहिरवार

बलराम के मुताबिक जब वे 3 साल के थे तब आंखों से दिव्यांग हो गए थे. इसी दौरान उनके माता-पिता का भी देहांत हो गया. तभी से वे किराना दुकान चलाकर अपना भरण पोषण कर रहे हैं. बलराम ने बताया कि जब उन्होंने दुकान शुरु की थी तब उसकी लागत कुल 2 रुपए थी, लेकिन आज उनकी दुकान में लाखों रुपए का सामान भरा हुआ है.

बलराम ने इसके आगे बताया कि वे दुकान से हर दिन तकरीबन सौ से दो सौ रुपये कमा लेता हैं. बलराम ठीक वैसे ही किराना की दुकान चलाते है जिसे कोई आम इंसान चलाता है भले ही उनकी आंख न हो, लेकिन कोई भी उन्हें बेवकुफ़ नही बना सकता... रुपये को छूते ही वे बता देते हैं कि उनके हाथ में कितने रुपये का नोट या सिक्का है. इसके अलावा जब कोई ग्राहक भी उनकी दुकान पर सामान लेने आता है, तो उसमें भी उनसे कोई गलती नही होती.

बलराम ने बताया कि उन्होंने शादी भी की थी, लेकिन उनकी पत्नी उन्हें छोड़कर चली गई. अब बलराम ने अकेलापन दूर करने के लिए तामूरा भी सीख लिया है, जिसे वे बजाकर अपना दिल बहला लेते हैं. बलराम के ही गांव के भैयालाल बताते हैं कि 40 सालों से वो दिव्यांग बलराम की दुकान से ही सामान खरीद रहे हैं. बलराम के गांव के लोगों के मुताबिक उन्हें शासन से भी किसी तरह की आज तक कोई सहायता नहीं मिली है.

Intro:छतरपुर! महाराजपुर नगर के पठानीपुर गांव में रहने वाले बलराम अहिरवार इन दिनों चर्चाओं में है बलराम अहिरवार एक ऐसे अनोखे दुकानदार है जो इस गांव में हमेशा चर्चा में रहते है दरसल बलराम जन्मांध है पठानीपुर गांव में एक छोटी सी किराना की दुकान चलाते है जी हां अंधे होने के बाबजूद भी बलराम न सिर्फ किराना की दुकान का सफलता पूर्वक संचालन करते है बल्कि पैसों का लेनदेन भी सफलता पूर्वक करते है!


Body:बलराम लगभग 54 साल के है और 40 सालों से किराना दुकान चला रहे है बलराम बताते है कि जब वह 3 साल के थे तब अंधे हो गए थे और कुछ समय गुजरने के बाद माँ बाप का देहांत हो गया तब से ही किराना की दुकान चला कर अपना भरण पोषण कर रहा हूँ बलराम बताते है जब यह दुकान सुरु की थी तब कुल लागत दो रुपये की थी और आज लगभग 1 लाख का सामान है रोज सौ से दो सौ रुपये कमा लेता हूँ! बलराम ठीक वैसे ही किराना की दुकान चलाते है जिसे कोई आम इंसान चलाता है भले ही उनकी आंखें न हो लेकिन कोई भी उन्हें बेबकुफ़ नही बना सकता है रुपये हाथ मे आते है कुछ ही सेकंड में बता देते है कि यह नॉट या सिक्का कितने रुपये का है! कोई भी समान अगर तौल कर देना है तो उसमें भी कोई गलती नही होती है खुद से ही समान को तौल ग्राहकों को संतुष्ट कर देते है दुकान की हर चीज मानो उन्होंने मापतौल कर रखी हो समान का नाम बताइये और तुरंत समान हाजिर है| बलराम ने सादी भी की थी लेकिन पत्नी उन्हें छोड़ कर भाग गई अब बलराम अकेले है बलराम अपना अकेला पन दूर करने के लिए तामूरा(देशी वाद्य यंत्र) बजा और गा कर अपना मनोरंजन कर लेते है | बाइट_बलराम गांव के ही रहने वाले भैया लाल बताते है कि लगभग 43 वर्षों से वह किराने का सामान बलराम से ही खरीदते है इतने सालों में उन्होंने कभी कोई गलती नही की हिसाब किताब के अलावा सामान की गुणवत्ता भी ठीक रहती है!उन्होंने बताया कि वह बचपन से ही बलराम के यहां से सामान लेते आ रहे है! बाइट_भैया लाल_स्थानीय बाइट_स्थानीय मनीष कुमार


Conclusion:बलराम रोज सौ से दो सौ रुपये कमा कर अपना जीवन यापन टी कर लेते है लेकिन आज तक न तो उन्हें आवास योजना का लाभ मिला और न ही उनके घर मे शौचालय बना हुआ है!
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