खरगोन। हौसले बुलंद हो तो मंजिल दूर नहीं होती... इसी कहावत को चरितार्थ किया हैं प्राथमिक विद्यालय क्रमांक 22 में पदस्थ निर्मला जैन ने, बचपन में आंखें गंवाने के बावजूद हौसले के बल पर आज उन्होंने अपने आपको एक ऐसे मुकाम पर खड़ा किया जो तमाम महिलाओं के लिए किसी मिसाल से कम नहीं हैं.
जिला मुख्यलय में स्थित प्राथमिक विद्यालय क्रमांक 22 में पदस्थ शिक्षिका निर्मला जैन साल 1999 में पदस्थ हुई थीं. जब से अनवरत बच्चों को शिक्षित कर रही हैं. दिव्यांग निर्मला जैन ने अपनी आप बीती बताते हुए कहा कि जब वो कक्षा 6ठीं में थी. तब किसी वजह से उनकी आंखें चली गई थी. लेकिन निर्मला जैन ने हिम्मत नहीं हारी, अपनी किस्मत को कोसने की बजाय उन्होंने आगे बढ़ने की सोची.
आंखें गंवाने के बावजूद उन्होंने आगे की पढ़ाई पूरी की साथ में कम्यूटर का कोर्स भी किया. इतना ही नहीं साल 1999 में शिक्षिका बन कर बच्चों को शिक्षित करने लगी. उन्होंने अपने परिवार के बारे में बताते हुए कहा कि, उनके नौ भाई हैं और सभी नेत्रहीन हैं लेकिन नेत्रहीन होने के बावजूद सभी सेल्फ डिपेंड हैं.
उनकी सह-शिक्षिका का कहना है कि निर्मला जी एक दिव्यांग हैं और उनकी अपने कार्य प्रति सजगता से आम लोगों को प्रेरणा लेनी चाहिए, उधर छात्रों का कहना है कि जैन मैडम अच्छा और सरल शब्दों में पढ़ाती हैं, जो आसानी से समझ में भी आ जाता है.