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लोग गाल में छेद कर पहनते हैं 'बाना', जानें इस अनोखी परंपरा के बारे में

जवारे विसर्जन के समय मां को खुश करने के लिए भक्त लोहे का त्रिशूल गाल में छेदकर पहनते हैं और मां की भक्ति में झूमते हैं. इस परंपरा को बाना पहनना कहते हैं.

अनोखी परंपरा
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Published : Apr 19, 2019, 9:03 AM IST

रायसेन। जिले में एक अनोखी परंपरा है, जिसमें भक्त लोहे का त्रिशूल गाल में छेदकर पहनते हैं और मां की भक्ति में झूमते हैं. इस परंपरा को बाना पहनाना कहते हैं. कुछ भक्त लोहे का 10 फीट लंबा और 10 से 15 किलो का त्रिशूल पहनकर माता को मनाते हैं.

अनोखी परंपरा


भक्त जवारे विसर्जन के समय मां को खुश करने के लिए बाना (त्रिशूल) पहनते हैं. भक्तों का कहना है कि वैसे तो अगर एक कांटा भी चुभ जाए, तो दर्द सहना मुश्किल हो जाता है, लेकिन यह माता की शक्ति ही है, जिसकी वजह से बाना पहनते समय न तो उनके गाल से खून निकलता है और न ही उन्हें दर्द होता है. यहां तक कि बाना निकालने के बाद भी घाव मात्र भभूत यानि धुली लगाने से ठीक हो जाता है.


पंडा और भक्तों ने बताया कि यह प्रथा कई पीढ़ियों से चली आ रही है. भक्त बाना पहने हुए नाचते भी हैं, लेकिन कोई दर्द नहीं होता. कुछ भक्त 10 फीट लंबा और 10 से 15 किलो का त्रिशूल पहनकर माता को मनाते हैं.

नोट: ईटीवी भारत किसी भी तरह के अंध विश्वाश को बढ़ावा नहीं देता है.

रायसेन। जिले में एक अनोखी परंपरा है, जिसमें भक्त लोहे का त्रिशूल गाल में छेदकर पहनते हैं और मां की भक्ति में झूमते हैं. इस परंपरा को बाना पहनाना कहते हैं. कुछ भक्त लोहे का 10 फीट लंबा और 10 से 15 किलो का त्रिशूल पहनकर माता को मनाते हैं.

अनोखी परंपरा


भक्त जवारे विसर्जन के समय मां को खुश करने के लिए बाना (त्रिशूल) पहनते हैं. भक्तों का कहना है कि वैसे तो अगर एक कांटा भी चुभ जाए, तो दर्द सहना मुश्किल हो जाता है, लेकिन यह माता की शक्ति ही है, जिसकी वजह से बाना पहनते समय न तो उनके गाल से खून निकलता है और न ही उन्हें दर्द होता है. यहां तक कि बाना निकालने के बाद भी घाव मात्र भभूत यानि धुली लगाने से ठीक हो जाता है.


पंडा और भक्तों ने बताया कि यह प्रथा कई पीढ़ियों से चली आ रही है. भक्त बाना पहने हुए नाचते भी हैं, लेकिन कोई दर्द नहीं होता. कुछ भक्त 10 फीट लंबा और 10 से 15 किलो का त्रिशूल पहनकर माता को मनाते हैं.

नोट: ईटीवी भारत किसी भी तरह के अंध विश्वाश को बढ़ावा नहीं देता है.

Intro:पैर में कांटा चुभ जाए या कील लग जाए तो उसका दर्द सहना आसान नहीं होता जबकि लोहा का त्रिशूल गाल में छेद कर मां की भक्ति में एक नहीं दर्जनों भक्त भक्ति में झूमते हैं यह है अनोखी परंपरा जिसे बाना पहनाना कहते हैं 9 दिन तक माता को भक्त अलग अलग भक्ति भाव से मानते हैं और कुछ भक्त लोहे का दस फिट लंबा और दस से 15 किलो का त्रिशूल (वाना) पहनकर माता को मनाते हैं यह आस्था है या अंधविश्वास।


Body:रायसेन जिले में भक्त 9 दिनों तक भक्ति में लीन थे और भक्त माता के जवारे विसर्जन करने भक्ति भाव से निकले पर वो क्षण मन को दहलाने वाला था जब भक्त लोहे का बाना (त्रिशूल)अपने गालों और जिव्हा में छेदकर पहनते हैं बाना यह माता की शक्ति है ही तो है कि गाल में न खून आता है और न ही कोई दर्द होता है न ही किसी प्रकार की दवा की आवश्यकता पड़ती है मात्र भावूत यानी धुली लगाने से घाव भर जाता है और निशान मिट जाता है रायसेन जिले के उदयपुरा में प्रतिवर्ष भक्त अंदाज में भक्ति में डूब कर माता का विसर्जन करते हैं पंडा और भक्तों की मानो तो यह मां शक्ति की भक्ति का प्रताप है और यह कई पीढ़ियों से चला आ रहा है भक्त बाना पहने हुए नाश्ते भी है पर कोई दर्द नहीं होता है 9 दिन तक माता को भक्त अलग अलग भक्ति भाव से मानते हैं और कुछ भक्त दस फिट लंबा और दस से पंद्रह किलो का त्रिशूल (वाना) पहनकर माता को मनाते हैं यह आस्था है या अंधविश्वास।

Byte-साहब सिंह।

Byte-संतोष कुमार।

Byte-राकेश कुमार।

Byte-धन्नू लाल।


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