नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट (Supreme court) के न्यायमूर्ति एलएन राव और न्यायमूर्ति बीआर गवई की पीठ ने एजी पेरारविलन की रिहाई से संबंधित याचिका पर सुनवाई की, जिन्होंने 30 साल से अधिक जेल की सजा काट ली है. केंद्र की ओर से एएसजी केएम नटराज द्वारा अदालत को सूचित किया गया कि मामला राज्यपाल के बाद राष्ट्रपति के समक्ष लंबित है.
कोर्ट ने सवाल किया कि क्या संविधान वास्तव में इसकी अनुमति देता है, क्योंकि वह अनुच्छेद 161 के तहत मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह से बाध्य है. कोर्ट ने कहा कि राज्यपाल, राष्ट्रपति को याचिका नहीं भेज सकते क्योंकि उनकी यहां कोई भूमिका नहीं है. इस पर एएसजी नटराज ने तर्क दिया कि क्षमा का निर्णय राष्ट्रपति पर छोड़ दिया जाना चाहिए और अदालत को तब तक इंतजार करना चाहिए. हमने सोचा कि कानून की व्याख्या करना हमारा कर्तव्य है न कि राष्ट्रपति का.
जस्टिस राव ने कहा कि अनुच्छेद 161 के तहत अपने कर्तव्य का पालन करने के बजाय अदालत द्वारा तय किया जाना है. न्यायमूर्ति राव ने कहा कि हम संविधान के खिलाफ हो रही किसी चीज के लिए अपनी आंखें बंद नहीं कर सकते हैं. हमें अपने विधेयक, भारत के संविधान का पालन करना होगा. न्यायमूर्ति गवई ने भी केंद्र से यह कहा कि राष्ट्रपति के पास पर्याप्त समय है. यह व्यक्तिगत स्वतंत्रता से संबंधित मामला है. केंद्र ने कहा कि आदमी जमानत पर बाहर है.
फिर जस्टिस राव ने कहा कि लेकिन उसके पास डैमोकल्स की तलवार लटकी हुई है! कोर्ट ने कहा कि पेरारविलन कानून की इन बारीक सवालों में दिलचस्पी नहीं रखता और सिर्फ रिहा होना चाहता है. सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस राव ने यह भी कहा कि वह 30 साल से अधिक समय से जेल में है और ऐसे मामले हैं जहां अदालत ने 20 साल तक जेल काटने वालों को राहत प्रदान की है.
उन्होंने कहा कि पेरारविलन ने अपनी जेल अवधि के दौरान विभिन्न योग्यताएं हासिल की हैं. अच्छा आचरण दिखाया है और यदि केंद्र इच्छुक नहीं है तो अदालत उनकी रिहाई के मामले पर विचार करेगी. अदालत ने मामले को 10 मई को फिर से सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया और कहा कि राष्ट्रपति के फैसले का अदालत पर कोई असर नहीं पड़ेगा. कोई भी कानून से ऊपर नहीं है.